हाईकोर्ट इलाहाबाद ने कहा है कि दैनिक वेतन भोगी कर्मी नियमित कर्मी के लाभ पाने का हकदार नहीं है। नियमानुसार सेवा में नियमित होने की पूर्व की दैनिक वेतनभोगी या तदर्थ सेवाओं की अवधि को वेतन व अन्य लाभों के निर्धारण में शामिल नहीं किया जा सकता।
कर्मचारी की सेवा नियमित होने की तिथि से ही पेंशन के लिए दस साल की नियमित सेवा मानी जायेगी। इससे पूर्व की सेवा अवधि को पेंशन निर्धारण में नहीं शामिल किया जायेगा। कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी कर्मचारी को गलत लाभ दिया गया है तो दूसरे इसका लाभ पाने का हकदार नहीं है।
कोर्ट ने कहा है कि सीजनल, कैजुअल, दैनिक वेतनभोगी व तदर्थ सेवाओं को नियमित सेवा नहीं माना जा सकता। अनुच्छेद 309 के अन्तर्गत बनी सेवा नियमावली के तहत की गयी नियुक्ति ही नियमित सेवा मानी जायेगी। कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग में कार्यरत रहे कनिष्ठ अभियंता को पेंशन के लिए दैनिक वेतन पर की गयी सेवा अवधि को वेतन निर्धारण के लिए शामिल करने की मांग अस्वीकार कर दी है और एकलपीट के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष अपील खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति वी.के.शुक्ला तथा न्यायमूर्ति एम.सी.त्रिपाठी की खण्डपीठ ने रामआसरे यादव की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि उ.प्र. तदर्थ सेवा (लोक सेवा की परिधि में आने वाले पदों) नियमावली 1979 के तहत नियमित किये जाने से पूर्व की सेवा अवधि को वेतन निर्धारण में शामिल नहीं किया जायेगा। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कई निर्णयों पर विचार करते हुए एकलपीठ के फैसले की पुष्टि कर दी हैं। एकलपीठ ने दैनिक वेतन अवधि की सेवा को वेतन निर्धारण में शामिल करने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी थी।