सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि क्या केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षण संस्थाओं व नौकरियों में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे सकती हैं? इंदिरा साहनी केस के 29 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह जानने की कोशिश की है कि इस मामले में नौ सदस्यीय पीठ द्वारा आरक्षण के लिए 50 फीसदी की अधिकतम सीमा तय करने के बाद हुए सांविधानिक संशोधनों और सामाजिक-आर्थिक बदलावों के मद्देनजर फिर से परीक्षण किया जा सकता है? कोर्ट इंदिरा साहनी फैसला (मंडल कमीशन) 1992 को बड़ी पीठ के पास भेजने की संभावना पर विचार करेगी। पीठ 15 मार्च से इस मामले में नियमित सुनवाई करेगी।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या आरक्षण को मौजूदा 50 फीसदी की सीमा को भंग करने की अनुमति दी जा सकती है। पीठ ने मराठा आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्यों से यह सवाल पूछा। पीठ का मानना है कि यह मामला केवल एक राज्य तक सीमित नहीं है, लिहाजा अन्य राज्यों को भी सुनना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस मामले में उसके निर्णय का व्यापक प्रभाव होगा। पीठ आरक्षण समेत जिन मौलिक मुद्दों पर राज्यों की राय जानना चाहती है, उनमें यह भी शामिल है कि क्या 102वां संविधान संशोधन राज्य की विधायिका को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने वाले कानून को लागू करने से वंचित करता है और अपनी सक्षम शक्तियों के तहत ऐसे लोगों को फायदा पहुंचा रहा है।
इंदिरा साहनी केस ही बन रहा कोटा का आधार
1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। इस पर पत्रकार इंदिरा साहनी ने उसे चुनौती दी थी। इस केस में नौ जजों की पीठ ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध रिक्तियों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया है। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा और गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है।
इन राज्यों में इतना आरक्षण
82 फीसदी के साथ देश में सबसे ज्यादा आरक्षण छत्तीसगढ़ में दिया जा रहा है। वहीं, तमिलनाडु में 69. तेलंगाना 62 झारखंड में 60 फीसदी आरक्षण है। राजस्थान में कुल 54 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी, बिहार में 50 फीसदी, मध्य प्रदेश में भी कुल 50 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 35 फीसदी आरक्षण व्यवस्था है। पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड, मिजोरम में 80 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण पर अपना पक्ष बताए केंद्र
अदालत ने संविधान के (103वें संशोधन) अधिनियम, 2019 के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान पर केंद्र सरकार को अपना पक्ष बताने के लिए कहा है। 10 फीसदी आरक्षण का यह मसला अलग संविधान पीठ के समक्ष लंबित है।
यह है 102वां संशोधन
102वें संविधान संशोधन के अनुसार, आरक्षण केवल तभी दिया जा सकता है, जब किसी विशेष समुदाय का नाम राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई सूची में हो। इसका पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 102वां संविधान संशोधन, 2018 राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को सांविधानिक दर्जा प्रदान करता है।