उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को विफल करने का षड्यंत्र

उत्तर प्रदेश अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में प्रवक्ता एवं सहायक अध्यापक के पदों की भर्ती का अधिकार उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में निहित हैl किंतु विद्यालय प्रबंधन का कार्य विद्यालय के प्रबंधकों जिम्मेदारी में आज भी है ,जिसके कारण वह अपने चहेतों को अपने मनमाफिक मनमाने तरीके से जिला विद्यालय निरीक्षकों को मिलाकर तदर्थ नियुक्तियां कर लेते हैं और रिक्तियों का विवरण चयन बोर्ड भेजने में आनाकानी करते रहतेहैं , उत्तर प्रदेश सरकार के दबाव के बाद प्रबंधकों ने बड़ा खेल खेलते हुए पदोन्नति कोटे के पदों को सीधी भर्ती के रूप में भेज दिया और सीधी भर्ती पर कार्यरत माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से वेतन प्राप्त कर रहे सहायक अध्यापक और प्रवक्ता को बचाने की भरपूर षड्यंत्र रचा, जिसके कारण चयन बोर्ड से चयनित शिक्षक दर-दर भटकने को मजबूर हैं |हाथ में नियुक्ति पत्र होने के बावजूद भी 3 महीने से उन्हें कार्यभार ग्रहण नहीं कराया गया और प्रबंधकों के चहेते तदर्थ शिक्षक बड़े ही मजे से राजकोष से वेतन का आहरण कर रहे हैं और सरकार पर विनियमितीकरण कराए जाने का दबाव बना रहे ,अपने खून पसीने की कमाई से अपने पुत्र और पुत्रियों को पढ़ाने वाले लोगों के लिए यह खेल बहुत ही पीड़ा दाई है उनकी पुत्र और पुत्री वर्षों की मेहनत के पश्चात नियुक्ति चयन होने के पश्चात भी नियुक्ति के लिए दर-दर भटक रहे हैं ,अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों को अनुदान में आने के पश्चात से लेकर आज तक सरकारों द्वारा 6,7 बार तदर्थ शिक्षकों का विनियमितीकरण किया गया और निरंतर उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को विफल करने का षड्यंत्र किया जाता रहा है माननीय उच्च न्यायालय ने संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में तदर्थ शिक्षकों के संबंध में विस्तृत सुनवाई करते हुए इन तदर्थ शिक्षकों के पदों पर चयन बोर्ड से चयनित शिक्षकों को कार्यभार ग्रहण कराए जाने का आदेश दिया है उक्त आदेश के क्रम में चयन बोर्ड ने विज्ञापन भी निकाला था लेकिन विज्ञापन में संशोधन के बहाने 2 महीने से अधिक विज्ञापन को टाला गया प्रतियोगी छात्र दिन रात एक कर के लिए राह देख रहे है, इसके विपरीत तदर्थ शिक्षक विनिमितिकरण कराने के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं, सतयुग का सपना देखने वाली सरकार किसका पक्ष लेगी अभी यह देखना है, हजारों प्रशिक्षित स्नातक शिक्षकों एवं प्रवक्ताओं को दर दर भटकाने वाले प्रबंधको , प्रधानाचार्य और जिला विद्यालय निरीक्षकों कब दस वर्ष की जेल होगी कब उन्हे यह समझाया जायेगा कि सरकार से बड़ा कोई नहीं? कब उन्हें यह उन्हें अहसास कराया जायेगा कि व्यक्तिगत हितों से बढ़कर जनहित है, कब उन्हें यह आभाष कराया जायेगा कि संस्था किसी व्यक्ति की जागीर नही बल्कि जनता के सपनों का महल है!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *