सहायता प्राप्त विद्यालय प्रबंधक महासभा उत्तर प्रदेश की प्रमुख मांगे

विद्यालय

अशासकीय असहायता प्राप्त विद्यालय  गरीब, असहाय, निरीह, खेतीहर मजदूर, एवं गरीब किसान व रोजी करने वाले मजदूरो के बच्चे व बच्चियों की शिक्षा का एक मात्र संबल है, जिन अभिभावको की अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल एवं कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाने की क्षमता नही है। उनके लिए राजकीय एवं अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूल संजीवनी बूटी है, इन विद्यालयों की स्थापाना आजादी के पहले या बाद में समाज के प्रबुद्ध समाज सेवको द्वारा क्षेत्र के बच्चों को शिक्षित करने हेतु स्थापना की गई थी। किन्तु आज संस्थाओं में व्याप्त  समस्याओं से समाज के गरीब, असहाय बच्चों के साथ-साथ समाज के अग्रणी प्रबन्धक / प्रबन्ध तंत्र व अभिभावकों में जो असन्तोष व्याप्त है, जिनका लोकहित में समस्याओं का निराकरण किया जाना अति आवश्यक है  प्रबंधकों के संगठन ने जिन समस्याओं के समाधान की अपेक्षा की है वे समस्याएं निम्नवत है-

विद्यालय

 

1.शासन द्वारा  वर्ष 2010 से अब तक छात्रो से लिए जाने वाले शुल्क वृद्धि की न किया जाना।शुल्क में 20रू0 का प्रतिमाह बढ़ोत्तरी की मांग,

2.सत्र समाप्ति के उपरान्त छात्र निधियों में बची हुई धनराशि छात्रों एवं विद्यालय के हित में प्रयोग नही हो पाता है ।प्रधानाचार्यो द्वारा अगले वर्ष खर्च करने पर आडिट आख्या आपत्ति दर्ज की जाती है । बची हुई धनराशि विकास फण्ड में स्थानान्तरित करने की मांग।

3.अध्यापको के रिक्त पदों पद माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड द्वारा नियुक्ति करने में कम से कम दो-तीन साल लग जाते हैं बच्चों का पठन-पाठन उक्त सत्र का बाधित हो जाता है ।  छात्रों का पठन-पाठन सुचारू रूप से संचालित करने के लिए प्रबंधन को 11 माह की अल्पकालिक नियुक्ति या  प्रतिवर्ष अधिकतम 11 माह या आयोग द्वारा चयनित अभ्यर्थी के आने तक के लिए शिक्षक भर्ती का अधिकार प्रबन्ध तंत्र को दिया जाय।

4.सेवानिवृत्त अध्यापको, जिनकी आयु 60 साल से 70 साल के स्थान पर उक्त मानदेय पर भी बेरोजगार योग्यताधारी नवजवानों को अधिकतम 11 माह के लिए नियुक्ति का अधिकार प्रबन्धतंत्र को दिया जाय ।

5.पेट को समाप्त किया जाय। CCC., टाइपिंग के आधार पर लिपिक पद की नियुक्ति हेतु सृजित पद के रिक्ति के प्रति प्रबन्धतंत्र को शासन द्वारा निर्धारित माप-दण्ड पर प्रचलित समाचार पत्रों में विज्ञापन कराकर नियुक्ति करने का अधिकार दिया जाय एवं अनुमोदन के समय समस्त पत्रजात विभागीय स्तर पर अनुमोदन हेतु किसी भी अधिकारी को अधिकृत कर एक ही स्थान पर अनुमोदन के प्रक्रिया का निरीक्षण कर अनुमोदन देकर नियुक्ति प्रक्रिया को सरल किया जाय ।

6.विद्यालयों में 2013 से आउटसोर्सिंग द्वारा परिचारको के नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारम्भ होने के बाद विद्यालयों में परिचारकों की कोई नियुक्ति नही हो पाई है । विद्यालय का कार्य परिचारकों के अभाव में बाधित हो रहे है। स्वीपर, चौकीदार की नियुक्ति तक शासन द्वारा समाप्त कर दिया गया है। यह विद्यालयों के लिए अहितकर है। आउटसोर्सिंग कम्पनियों के द्वारा परिचारको के नियुक्ति की प्रक्रिया को निरस्त कर उतने ही धनराशि के मानदेय पर यदि प्रबन्धतंत्र को सृजित एवं मान्य पदों पर नियुक्ति करने का अधिकार शासन द्वारा प्रदान किया 

7.जिला विद्यालय निरीक्षकों द्वारा चुनाव के अनुमति देने, समाचार पत्र का नाम नामित करने एवं हस्ताक्षर प्रमाणित करने के नाम पर अनावश्यक प्रपत्र की मांग की जाती है, जो कि शासन के कार्य प्रणाली के विरूद्ध है व प्रबन्धतंत्र को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। यह व्यवस्था 1985 के संशोधित प्रशासन योजना के कारण है । इसलिए 1985 के संशोधित प्रशासन योजना को समाप्त किया जाय । विद्यालय प्रबन्ध समिति के चुनाव कराने का अधिकार सोसाईटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के अन्तर्गत नवीनकृत एवं सोसाईटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा-4 में पंजीकृत सोसाईटी द्वारा चुनाव कराया जाता है और चुनाव निर्विवाद होता है तो जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा नवगठित प्रबन्ध समिति को 15 दिनों के अन्दर हस्ताक्षर प्रमाणित करना चाहिए, अन्यथा मान लिया जाय कि पंजीकृत सोसाइटी द्वारा कराया गया चुनाव को जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा मान्यता प्रदान कर दिया गया है । इस तरह की प्रशासन योजना का निर्माण प्रबन्धक सभा के साथ बैठक कर किया जाय। वर्तमान प्रबन्धक चुनाव में यदि चयनित होता है और चुनाव कराकर जिला विद्यालय निरीक्षक, कार्यालय संयुक्त शिक्षा निदेशक कार्यालय को चुनाव कार्यवाही प्राप्त करायी जाती है या पूर्व प्रबन्धक द्वारा हस्ताक्षर प्रमाणित कर दिया जाता है, कोई विवाद नही है तो उस चुनाव को जिला विद्यालय निरीक्षक को मान्यता दे या न दे, मान लिया जाय

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8.प्रभारी प्रधानाचार्य की नियुक्ति वरिष्ठ अध्यापक को ही किये जाने का प्राविधान है। प्रभारी प्रधानाचार्य के नियुक्ति से योग्यतम अध्यापक वंचित हो जाता है एवं विद्यालय को व्यवस्थित करने में प्रबन्धतंत्र को अतिकठिनाई का सामना करना पड़ता है। प्रभारी प्रधानाचार्य हेतु वरिष्ठतम तीन अध्यापकों में से योग्यतम को प्रभारी प्रधानाचार्य चुनने का अधिकार प्रबन्धतंत्र को प्रदान किया जाय

9.नकल के आरोप में विद्यालयों को तीन वर्ष के लिए डिबार कर दिया जाता है। इस में विद्यालय के प्रबन्धतंत्र का और   भवन का कोई दोष  नहीं होता है । इसलिए केन्द्र व्यवस्थापक और वरिष्ठ परीक्षक को तीन वर्ष के लिए डिबार किया जाय।

10.कैमरे, Voice Recorder के मेन्टीनेन्स में प्रतिवर्ष 50 हजार से 1 लाख रूपये तक व्यय होता है। इसके लिए सी०सी० कैमरे शुल्क न्यूनतम् 5/- मासिक लागू किया जाय ।

11.आयोग द्वारा चयनित अध्यापकों को विद्यालय में कार्यभार ग्रहण करने के उपरान्त स्थानान्तरण तभी किया जाय, जब कार्यभार ग्रहण करने पर दूसरा अध्यापक उपलब्ध हो, अन्यथा विद्यालय का पठन-पाठन प्रभावित होता है।

12.आज जब शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन सीधे कर्मचारी के खाते में जा रही है तो वेतन विवरण अधिनियम समाप्त किया।

13.प्रबंध समिति के विरुद्ध सिंगल आपरेशन व धारा 6 ( 3 ) की कार्रवाई को समाप्त किया जाय। यह औचित्यहीन है। इन नियमों से जिला विद्यालय निरीक्षक एवं संयुक्त शिक्षा निदेशक विद्यालय प्रबन्धतंत्र का शोषण कर रहे है।

14.शासन द्वारा विद्यालयों के जनशक्ति निर्धारण हो चुका है । बिना कोई सुनवाई का अवसर दिये मनमाने तौर पर परिचारक पदों को कम किया जा रहा है। इसका प्रबन्धक सभा घोर विरोध करता है  । पूर्व के निर्धारित पद सृजन मान्य करने की मांग करता है।

15.1985 की प्रशासन योजना मूलरूप में लागू किया जाय तथा सभी प्रबन्ध समितियों का कार्यकाल स्वतः 5 वर्ष का कार्यकाल शासनादेश के अन्तर्गत कर दिया जाय ।

16.विद्यालय में कराये गये कार्यो की गुणवत्ता के लिए जनपदीय समिति एवं विशेष रूप से जिला विद्यालय निरीक्षक को उत्तरदायीं बनाया जाय, के स्थान हमारी मांगों को मान लेने के बाद हमें उत्तरदायीं बनाया 

17आय बढ़ाने की योजना सम्बन्धित शासनादेश दिनांक 06.06.2023 स्वीकार नही है,

18.जिला अधिकारी अथवा उसके द्वारा नामित मुख्य विकास अधिकारी या उपजिलाधिकारी स्तर का या उससे उपर का अधिकारी अध्यक्ष |

2. मातृ संस्था का अध्यक्ष

 

उपाध्यक्ष

विद्यालय के मातृ संस्था का सचिव / मंत्री, सचिव अनुपलब्ध के समय विद्यालय का अध्यक्ष |

जिला विद्यालय निरीक्षक – सदस्य वित्त लेखाधिकारी – सदस्य

विद्यालय का प्रबन्धक – सदस्य

एक से अधिक विद्यालय होने पर जिस विद्यालय का प्रकरण हो वही प्रबन्धक सदस्य होगा।

स्वीकार नहीं है, प्रबन्धक / प्रधानाचार्य के स्थान पर मातृसंस्था के अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष के नाम समिति के खाते में जमा की जायेगी। सोसाइटी के प्रस्ताव, विद्यालय प्रबन्ध समिति के प्रस्ताव, अनुसार कार्य स्वीकृती अनुसार धनराशि खर्च की जायेगी ।

प्रबन्ध समिति के प्रस्ताव अनुसार विद्यालय प्रबन्धक के माध्यम से विद्यालय प्रबन्ध समिति के मांग प्रस्ताव व साधारण सभा मातृ संस्था के समिति के द्वारा प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद ही किया जायेगा ।

स्वीकार नही है, सभी की समीक्षा प्रबन्धक सभा के साथ बैठक कर प्रक्रिया को सरल बनाया जाय, जिससे संस्थाओं का विकास हो सके।

सहायता प्राप्त विद्यालय प्रबंधक महासभा उत्तर प्रदेश एक गैर-सरकारी संगठन है जो उत्तर प्रदेश में सहायता प्राप्त विद्यालयों के प्रबंधकों का प्रतिनिधित्व करता है। यह महासभा सहायता प्राप्त विद्यालयों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार से निम्नलिखित प्रमुख मांगे करती है:

मांगे

  • सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन और अन्य भत्तों में वृद्धि: सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन और अन्य भत्ते बहुत कम हैं। इससे उनके जीवन स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। महासभा सरकार से मांग करती है कि सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन और अन्य भत्तों में वृद्धि की जाए।
  • सहायता प्राप्त विद्यालयों के लिए पर्याप्त अनुदान: सहायता प्राप्त विद्यालयों को सरकार से पर्याप्त अनुदान नहीं मिलता है। इससे विद्यालयों का संचालन और रखरखाव करना मुश्किल हो जाता है। महासभा सरकार से मांग करती है कि सहायता प्राप्त विद्यालयों के लिए पर्याप्त अनुदान दिया जाए।
  • सहायता प्राप्त विद्यालयों के लिए नियुक्ति नियमों में संशोधन: सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति के नियम बहुत कठोर हैं। इससे विद्यालयों में योग्य और अनुभवी शिक्षकों और कर्मचारियों की कमी होती है। महासभा सरकार से मांग करती है कि सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति के नियमों में संशोधन किया जाए।
  • सहायता प्राप्त विद्यालयों के लिए भवन और अन्य सुविधाओं में वृद्धि: सहायता प्राप्त विद्यालयों के भवन और अन्य सुविधाएं बहुत पुरानी और जर्जर हैं। इससे छात्रों को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने में बाधा आती है। महासभा सरकार से मांग करती है कि सहायता प्राप्त विद्यालयों के लिए भवन और अन्य सुविधाओं में वृद्धि की जाए।
  • सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। महासभा सरकार से मांग करती है कि सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।

 

निष्कर्ष

सहायता प्राप्त विद्यालयों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार को इन मांगों पर विचार करना चाहिए। इन मांगों को पूरा करने से सहायता प्राप्त विद्यालयों की स्थिति में सुधार होगा और छात्रों को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

विशेष रूप से, सहायता प्राप्त विद्यालय प्रबंधक महासभा उत्तर प्रदेश की प्रमुख मांगों पर निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  • मांगों को स्पष्ट और सटीक रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • मांगों के लिए ठोस आधार प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • मांगों को प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए उचित रणनीति विकसित की जानी चाहिए।

इन बातों पर ध्यान देने से महासभा की मांगों को प्राप्त करने की संभावना बढ़ जाएगी।

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