नई दिल्ली, पीटीआइ। केंद्र सरकार जिस महत्वाकांक्षी श्रम सुधार कानून को लागू करना चाहती है, उसके बेहद महत्वपूर्ण हिस्से ‘कोड ऑन वेजेज, 2019’ का क्रियान्वयन इस वर्ष सितंबर से शुरू हो जाने की उम्मीद है। श्रम व रोजगार मंत्रालय ने श्रम सुधारों की दिशा में इस बेहद महत्वपूर्ण कानून के मसौदे को आम लोगों की प्रतिक्रिया के लिए जारी कर दिया है। यह वेतन कोड सभी कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारण समेत वेतन भुगतान में देरी जैसी सभी दिक्कतों को खत्म कर देगा।
कोड ऑन वेजेज यानी वेतन कोड का मसौदा 7 जुलाई को केंद्र सरकार के गजट में प्रकाशित किया गया है, जिस पर आम लोगों से 45 दिनों के भीतर राय मांगी गई है। श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अगर सारी चीजें उम्मीद के मुताबिक होती हैं तो आम लोगों से राय मिलने के बाद यह कानून इस वर्ष सितंबर से लागू कर दिया जाएगा।
कोड ऑन वेजेज बिल, 2019 को संसद में पेश करते वक्त श्रम संतोष गंगवार का कहना था कि इस बिल के पारित होने से देश में 50 करोड़ से अधिक कामगारों को सीधा फायदा मिलेगा। इस बिल को लोकसभा पिछले वर्ष 30 जुलाई और राज्यसभा दो अगस्त को पारित कर चुकी है। इस कोड में वेतन, बोनस और उनसे जुड़े सभी मुद्दों को व्यापक रूप दिया गया है।
इसके अस्तित्व में आ जाने के बाद न्यूनतम वेतन कानून, वेतन भुगतान कानून, बोनस भुगतान कानून और समान वेतन कानून खत्म हो जाएंगे और उनकी जगह यही एक कोड अस्तित्व में रहेगा।गौरतलब है कि सरकार 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार कोड में समेटने पर काम कर रही है। इनमें कोड ऑन वेजेज, कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशंस, कोड ऑन सोशल सेक्योरिटी एवं कोड ऑन ऑक्यूपेशनल हेल्थ एंड सेफ्टी शामिल हैं।क्या है कोड ऑन वेजेज में वेतन में महिला, पुरुष या अन्य कामगारों के वेतन में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा एक ही कंपनी के कर्मचारियों में वेतन मिलने की तिथि में अंतर नहीं होगा कर्मचारी रोजाना आठ घंटे ही काम करेंगे और काम के घंटों में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी न्यूनतम वेतन का निर्धारण एक केंद्रीय सलाहकार बोर्ड करेगा
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘वेतन संहिता विधेयक (कोड ऑन वेजेज बिल) 2019’ को मंजूरी दे दी है. इस विधेयक के लागू हो जाने के बाद केंद्र सरकार देशभर के कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन तय करेगी, जिससे कम वेतन राज्य सरकारें नहीं दे पाएंगी.
कोड ऑन वेजेज बिल के संसद के इसी सत्र में पेश किए जाने की संभावना है. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि सरकार की योजना पुराने कई श्रम कानूनों को सरल कर उनकी जगह सिर्फ चार कानून बनाने की है जिसमें यह पहला कानून होगा.
श्रम सुधारों की दिशा में इस विधेयक को मील का पत्थर माना जा सकता है. विधेयक में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार रेलवे और खनन समेत कुछ क्षेत्रों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय करेगी, जबकि राज्य अन्य श्रेणी के रोजगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे. इस विधेयक के पास होने के बाद केंद्र सरकार को कुछ विशेष सेक्टर के लिए सभी लोगों को न्यूनतम समान वेतन देने का अधिकार मिल जाएगा.
न्यूनतम मजदूरी में हर पांच साल में संशोधन किया जायेगा. वेतन संहिता विधेयक में कर्मचारियों के पारिश्रमिक से जुड़े मौजूदा सभी कानूनों को एक साथ करने और केंद्र सरकार को पूरे देश के लिये एक न्यूनतम मजदूरी तय करने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया है.
सरकार ने देश में कारोबार सुगमता को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने के लिये श्रम क्षेत्र में चार संहिता का प्रस्ताव किया है जो मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा और कल्याण तथा औद्योगिक संबंधों से जुड़ी होंगी। मजदूरी संहिता उनमें से एक है।
सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा, ”मोदी मंत्रिमंडल ने मजदूरी संहिता पर विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है.” सरकार का इसे संसद के मौजूदा सत्र में पारित कराने का इरादा है.
मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में 10 अगस्त 2017 को मजदूरी संहिता विधेयक को लोकसभा में पेश किया था. इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया. समिति ने 18 दिसंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, हालांकि, मई 2019 में 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ विधेयक निरस्त हो गया.
मजदूरी संहिता मजदूरी भुगतान कानून, 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948, बोनस भुगतान कानून 1965 और समान पारिश्रमिक कानून 1976 का स्थान लेगा.
विधेयक में प्रावधान है कि केंद्र सरकार रेलवे और खान समेत कुछ क्षेत्रों के लिये न्यूनतम मजदूरी तय कर सकती है जबकि राज्य अन्य श्रेणी के कर्मचारियों के लिये न्यूनतम मजदूरी तय करने को स्वतंत्र हैं.
संहिता में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने का प्रावधान है. केंद्र सरकार विभिन्न क्षेत्रों या राज्यों के लिये अलग से न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है. कानून के मसौदे में यह भी कहा गया है कि न्यूनतम मजदूरी की समीक्षा हर पांच साल में की जाएगी.