यूपी में वर्षों से अस्थायी कर्मियों को स्थायी करने के फरमान, जिन अस्थायी पदों की आवश्यकता नहीं, उन्हें समाप्त करने का निर्देश

लखनऊ। प्रदेश सरकार ने लंब अरसे से सभी विभागों में अस्थायी तौर पर कार्य करने वाले कर्मियों को स्थायी करने का फैसला किया है। साथ ही जिन अस्थायी पदों की आवश्यकता नहीं रह गई है, उसे तत्काल समाप्त करने को कहा गया है।
अपर मुख्य सचिव वित्त एस. राधा चौहान ने शासन के समस्त अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों व सचिवों को इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने कहा है कि यह सूचना प्राथमिकता पर जुटा ली जाए कि विभाग में वर्तमान में कुल कितने अस्थायी पद हैं? यदि इनका स्थायीकरण किया जा सकता है तो तत्काल कर दिया आए इसी तरह ऐसे अस्थायी पद जो लंबी अवधि में चल रहे हैं (3) वर्ष से अधिक) और उनकी विभाग में आवश्यकता नहीं है, उनकी निरंतरता जारी किया जाना बंद कर जाए और उन्हें समाप्त कर दिया जाए।
उन्होंने यह भी निर्देशित किया है। कि ऐसे पद जो 3 वर्ष से अधिक समय से अस्थायी चल रहे हैं और किसी कारण से उनकी निरंतरता नियमित रूप से जारी नहीं हुई है तो इसकी निरंतरता से संबंधित कार्यवाही में दो सवाल के जवाब स्पष्ट रूप से दिए जाएं। पहला, पूर्व की निरंतरता पर कार्योत्तर स्वीकृति / सहमति का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजते समय यह भी बताया जाए कि अब वह पद विभाग के लिए क्यों आवश्यक है तथा क्यों न इनको समाप्त किए जाने पर विचार किया जाए।
नियमों में ये प्रावधान
शासन के वित्त (लेखा) अनुभाग-2 के 25 मई 1987 के एक कार्यालय ज्ञाप के जरिए निश्चित प्रतिबंधों के अधीन अस्थायी पदों को स्थापी करने के अधिकार प्रशासनिक विभागों को दिए गए हैं। शासनादेश से स्पष्ट है कि जो भी पद 3 वर्ष से पूर्व वित्त विभाग की सहमति से सृजित किए गए हैं और वर्षानुवर्ष उनको निरंतरता जारी की गई है उन्हें यदि शासनादेश की अन्य शर्तों के कारण स्थायी किए जाने में कोई बाधा नहीं है तो प्रशासनिक विभाग द्वारा उनका स्थायीकरण कर दिया जाए।

शासनादेश की इस व्यवस्था के बावजूद विभागों में कई वर्षों से अस्थायी पद चल रहे हैं। इनको निरंतरता संबंधी को इसलिए संदर्भित होती रहती है क्योंकि प्रशासकीय विभाग द्वारा न तो इनका स्थायीकरण किया गया है और ना ही इनकी नियमित निरंतरता जारी गई है। अपर मुख्य सचिव विन ने इस स्थिति को अनुि करार दिया है। उन्होंने कहा है कि इससे वित्त विभाग में पत्रावलियों की संख्या अनावश्यक रूप से बढ़ती है।

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