मत बंटने से हिंदी नहीं बन पाई देश की राष्ट्रभाषा

 हिंदी हमारे देश की राजभाषा है मगर संविधान का मसौदा तैयार करते वक्त इसे राष्ट्रीय भाषा बनाने की मांग जोर-शोर से उठी थी। लंबे विचार और बहस के बाद अंग्रेजी के साथ हिंदी को देश की राजभाषा का दर्जा मिलना तय हुआ। 10 दिसंबर, 1946 में संविधान सभा की दूसरी ही बैठक में हिंदी का मुद्दा तब गरमा गया जब सदस्य आरवी धुलेकर ने सभापति से कहा कि कहा कि यह कार्यवाही हिन्दुस्तानी में होनी चाहिए और जिसे यह भाषा नहीं आती है, उन्हें देश में रहने का हक नहीं है। 14 सितंबर, 1949 को निर्णय लिया गया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। 

बापू ने की थी हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दुस्तानी को जनमानस की भाषा कहा था। साल 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में उन्होंने हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की बात कही थी। वे वर्षों तक हिन्दुस्तानी और देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार में लगे हुए थे। उन्होंने हरिजन अखबार में लिखा था कि हिन्दुस्तानी भाषा को कठिन संस्कृत वाली हिंदी और फारसी से भरी उर्दू भाषा से अलग होना चाहिए जो कि इन दोनों भाषाओं का मिश्रण हो।  जवाहर लाल नेहरू समेत अन्य नेता भी चाहते थे कि हिन्दुस्तानी को ही भारत की राष्ट्रभाषा बनाया जाए।

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