प्रदेश सरकार को यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि अब कोई प्रोन्नति में बाधा न आने पाए।

किसी कर्मचारी या अधिकारी के लिए प्रोन्नति उसके शानदार कार्य-व्यवहार और लंबी सेवाओं का पुरस्कार तो होती ही है, उसकी विभागीय हैसियत को भी बढ़ाती है। यह और बात है कि राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में एलटी ग्रेड के शिक्षकों की प्रवक्ता पद पर प्रोन्नति 13 साल तक अटकी रही। योगी सरकार में यह अब चालू हुई है। पहले चरण में आठ विषयों की 172 महिला शिक्षकों को प्रमोशन भी मिल गया है। हालांकि, प्रोन्नति की गति धीमी है और इससे कतई संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। राजकीय शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने भी उचित ही सुस्त चाल पर सवाल उठाते हुए रफ्तार बढ़ाने का अनुरोध किया है। उनकी यह आशंका भी सही प्रतीत होती है कि मौजूदा गति से प्रदेश में महिला संवर्ग के 1200 और पुरुष संवर्ग के 1800 पदों पर प्रोन्नति करने में एक वर्ष से ज्यादा लग जाएगा। दरअसल, लोक सेवा आयोग ने 22 दिसंबर 2020 को विभागीय प्रोन्नति कमेटी (डीपीसी) की बैठक की थी।

राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में प्रवक्ता के 50 फीसद पद एलटी ग्रेड के शिक्षकों की पदोन्नति से भरे जाते हैं, जबकि शेष 50 फीसद सीधी भर्ती से। यह विडंबना ही है कि एलटी ग्रेड शिक्षकों की 13 वर्ष तक पदोन्नति नहीं हो सकी। हालांकि, सपा सरकार ने नवंबर 2016 में इससे जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए उप्र विशेष अधीनस्थ शैक्षणिक (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा नियमावली, 1992 में संशोधन भी किया था। हो यह रहा था कि उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बावजूद उत्तर प्रदेश में अपर निदेशक शिक्षा (पर्वतीय) का पद होता था। वे एलटी ग्रेड शिक्षकों की पदोन्नति के लिए गठित डीपीसी में भी सदस्य हुआ करते थे। इसी विसंगति के कारण लोक सेवा आयोग डीपीसी की बैठक नहीं करा पा रहा था। संशोधन से अपर निदेशक शिक्षा (पर्वतीय) का पद खत्म किया गया। फिर डीपीसी हुई, मगर वरिष्ठता सूची के नए विवादों ने सब पर पानी फेर दिया। खैर, शिक्षकों की प्रोन्नति में हुई देरी की भरपाई तो संभव नहीं लेकिन, प्रदेश सरकार को यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि अब कोई बाधा न आने पाए।

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