माध्यमिक शिक्षा के सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में मनमाने ढंग से की गई शिक्षकों की नियुक्तियों का पेंच उलझता जा रहा है। साल 2000 से तदर्थ शिक्षकों की नियुक्तियों पर रोक लग गई थी। इसके बाद प्रबंधकों ने नियुक्तियां की। जिले में 125 तदर्थ शिक्षक कार्यरत हैं, जिनको हटाए जाने का निर्णय हुआ था। इसके विरोध में शिक्षक सुप्रीम कोर्ट गए और लंबी सेवाओं को देखते हुए स्थाई किए जाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट से साल 2021 में परीक्षा कराने का आदेश हुआ। जिसमें तदर्थ शिक्षकों को अवसर देकर नियुक्ति के आदेश हुए। इसके बाद हुई परीक्षा में सिर्फ एक तदर्थ शिक्षक ही परीक्षा पास कर सके। ऐसे में अभी 124 तदर्थ शिक्षकों का मामला फंसा हुआ है।
जिले में 42 सहायता प्राप्त इंटर कालेज हैं, शासन के नियमों के तहत 1998 को तैयार हुई नियमावली से माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड को ही शिक्षकों के नियुक्ति का अधिकार दिया गया। साथ ही साल 2000 से पूरी तरह तदर्थ शिक्षकों की नियुक्तियां रोक दी गईं। इसके बाद भी स्कूलों के प्रबंधक नियुक्तियां करते रहे, उनका मत था कि बोर्ड शिक्षक उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। जिससे कालेज के संचालन पर असर पड़ता है। इसी के चलते साल 2000 के बाद भी 125 शिक्षकों की नियुक्तियां हुईं। साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट से परीक्षा में अवसर देने के फैसले के बाद एक शिक्षक ही परीक्षा पास कर सके। इसके बाद अभी 124 तदर्थ शिक्षक कार्यरत हैं। इसका मुद्दा बीते 19 मई को शासन स्तर की बैठक में किसी जिले के डीआईओएस ने उठाया। जिस पर मौखिक ही कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराया जाए। अब विभाग में माथापच्ची हो रही है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानें तो परीक्षा पास करने वाले शिक्षक की सेवाएं ही ली जा सकतीं हैं। वहीं उसी आदेश में यह भी कहा गया है कि अन्य शिक्षकों के बारे में फैसला राज्य सरकार ले। अभी तक शासन से हटाने का कोई आदेश आया ही नहीं है। मौखिक आदेश पर कोई फैसले कैसे ले, इसे लेकर मंथन हो रहा है।
तदर्थ शिक्षकों के बारे में शासन के आदेश पर कार्रवाई की जाएगी। लखनऊ बैठक में हाईकोर्ट में होने के कारण मैं जा नहीं सका था। जानकारी करके जो भी कार्रवाई तय हुई होगी, वह किया जाएगा। राकेश कुमार, डीआईओएस