कोरोना महामारी के दिनों में निर्धनों और कमजोरो के लिए विशेष सहायता की आवश्यकता है

दिनों देश में कोरोना की दूसरी घातक लहर के तूफान में जहां एक ओर स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के पूरी तरह चरमरा जाने से बड़ी संख्या में लोगों की जान जाने का oश्य दिखाई दे रहा है‚ वहीं लॉकडाउन के बीच उद्योग–कारोबार की मुश्किलों के कारण रोजगार अवसरों के घटने के साथ–साथ आम आदमी की आमदनी में कमी संबंधी चिंताएं दिखाई दे रही हैं। कोरोना की महाआपदा के ऐसे त्रासदी के समय में कमजोर वर्ग के लिए बड़ी राहतें आवश्यक दिखाई दे रही हैं॥। निसंदेह इस समय देश और दुनिया में भारत में गरीबी बढ़ने और रोजगार अवसरों में कमी आने से संबंधित रिपोर्टों को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। ७ मई को अजीम प्रेमजी यूनिवÌसटी के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष कोविड–१९ संकट के पहले दौर में करीब २३ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं। ये वे लोग हैं‚ जो प्रतिदिन राष्ट्रीय न्यूनतम पारिश्रमिक ३७५ रु पये से भी कम कमा रहे हैं। इसी तरह अमेरिकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सेंटर के द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में बीते साल २०२० में ७.५ करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है। रिपोर्ट में प्रतिदिन २ डॉलर यानी करीब १५० रु पये कमाने वाले को गरीब की श्रेणी में रखा गया है। उल्लेखनीय है कि सेंटर फॉर मॉनिटिरंग इंडियन एकोनॉमी (सीएमआईई) ने हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा है कि मार्च २०२१ की तुलना में अप्रैल २०२१ महीने में देश ने ७५ लाख नौकरियां गंवाई हैं। इसके कारण बेरोजगारी दर बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड–१९ महामारी बढ़ने के साथ कई राज्यों ने ‘लॉकडाउन’ समेत अन्य पाबंदियां लगाई हैं। इससे आÌथक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ा है और फलस्वरूप नौकरियां प्रभावित हुई हैं। इससे अप्रैल २०२१ में बेरोजगारी दर चार महीने के उच्च स्तर ८ प्रतिशत पर पहुंच गई है। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर ९.७८ प्रतिशत है‚ जबकि ग्रामीण स्तर पर बेरोजगारी दर ७.१३ प्रतिशत है। इससे पहले‚ मार्च २०२१ में बेरोजगारी दर ६.५० प्रतिशत थी और अप्रैल २०२१ की तुलना में ग्रामीण तथा शहरी दोनों जगह यह दर अपेक्षाकृत कम थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोरोना के दूसरे घातक संक्रमण के बीच फिलहाल रोजगार परिoश्य पर स्थिति उतनी बदतर नहीं है‚ जितनी की २०२० में पहले देशव्यापी लॉकडाउन में देखी गई थी। उस समय बेरोजगारी दर २४ प्रतिशत तक पहुंच गई थी। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोविड–१९ से जंग में पिछले वर्ष २०२० में सरकार के द्वारा घोषित किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान और ४० करोड़ से अधिक गरीबों‚ श्रमिकों और किसानों के जनधन खातों तक सीधी राहत पहुंचाई जाने से कोविड–१९ के आÌथक दुष्प्रभावों से देश के कमजोर वर्ग को बहुत कुछ बचाया जा सका है। अब स्थिति यह है कि पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर के कारण देश के जो करोड़ों लोग गरीबी के बीच आÌथक–सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे थे‚ उनके सामने अब कोरोना की दूसरी लहर से निÌमत हो रही नई मुश्किलों से निपटने की बड़ी चिंता खड़ी हो गई है। पिछले माह २३ अप्रैल को केंद्र सरकार ने गरीब परिवारों के लिए एक बार फिर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का ऐलान किया है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार राशनकार्ड धारकों को मई और जून महीने में प्रति व्यक्ति ५ किलो अतिरिक्त अन्न चावल या गेहूं मुफ्त में देगी। इससे ८० करोड़ लाभार्थी लाभान्वित होंगे। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पर २६००० करोड़ रु पये से ज्यादा खर्च होंगे। ॥ कोरोना से अधिक प्रभावित राज्यों की सरकारों के द्वारा भी गरीबों और श्रमिकों के लिए उपयुक्त राहतकारी योजनाएं शीघ्र घोषित की जानी होगी। चूंकि इस समय कई औद्योगिक राज्यों से उद्योग–कारोबार पर संकट होने के कारण फिर से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं‚ ऐसे में मनरेगा को एक बार फिर प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रभावी बनाना होगा। मनरेगा के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने हेतु चालू वित्त वर्ष २०२१–२२ के बजट में मनरेगा के मद पर रखे गए ७३‚००० करोड़ रु पये के आवंटन को बढ़ाया जाना जरूरी दिखाई दे रहा है। यह बात भी महkवपूर्ण है कि गरीब एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के रोजगार से जुड़े हुए सूIम‚ लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) को संभालने के लिए राहत के प्रयासों की जरूरत होगी। हम उम्मीद करें कि कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर से जंग में सरकार गरीबों और श्रमिकों सहित संपूर्ण कमजोर वर्ग को बढ़ती मुश्किलों से अधिकतम राहत देने की डगर पर आगे बढ़ेगी। ॥

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