माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद (समितियां और उप समितियों का गठन, शक्तियां और कर्तव्य) विनियमावली 2012 को मंजूरी दे दी है। इससे प्रदेश में संस्कृत विद्यालयों को प्रथमा, पूर्व मध्यमा व उत्तर मध्यमा कक्षाओं की मान्यता देने का रास्ता वर्ष साल बाद खुला है। इन कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में भी संशोधन किया जा सकेगा।
नई विनियमावली के मुताबिक प्रथमा, मध्यमा व उत्तर मध्यमा की मान्यता के लिए संस्था के पास ग्रामीण क्षेत्र में 650 वर्ग मीटर जमीन होनी चाहिए, जिसमें से 162 वर्ग मीटर खेल के मैदान के लिए होनी चाहिए। वहीं शहरी इलाके में संस्था के पास 450 वर्ग मीटर भूमि होनी चाहिए जिसमें से 120 वर्ग मीटर खेल के मैदान के लिए हो। प्रत्येक कक्षा के लिए संस्था के पास 300 वर्ग फीट के कमरे, 300 वर्ग फीट का पुस्तकालय व वाचनालय भी होना चाहिए। इसके अलावा 120 वर्ग फीट का प्रधानाध्यापक कक्ष, अध्यापक कक्ष, कार्यालय कक्ष, 150 वर्ग फीट का स्टोर रूम व वैकल्पिक कक्ष और 300 वर्ग फीट की प्रयोगशाला भी होनी चाहिए। विद्यालय में शिक्षकों और छात्रों के लिए प्रसाधन व शौचालयों की अलग-अलग व्यवस्था होनी चाहिए। मान्यता के लिए किराये के भवन पर विचार नहीं किया जाएगा।
प्रथमा कक्षाओं में 30, मध्यमा में 35 और उत्तर मध्यमा में न्यूनतम 40 छात्रों का नामांकन किया जाएगा। पांच किमी के अर्धव्यास में कोई अन्य संस्कृत विद्यालय को मान्यता नहीं दी जाएगी। अगले दो वर्षो तक उन संस्थाओं को उच्चतर कक्षाओं की मान्यता नहीं दी जाएगी जहां पांच प्रतिशत या 25 छात्र (जो भी अधिक हो) अनुचित साधनों के प्रयोग के लिए दंडित किये गए हों। मान्यता के मामलों पर उस वर्ष की 31 मई तक फैसला कर लिया जाएगा। इस तारीख के बाद मान्यता के आवेदन पर विचार नहीं किया जाएगा। प्रथमा, पूर्व मध्यमा और उत्तर मध्यमा की मान्यता अलग-अलग दी जाएगी।
वर्ष 2000 तक प्रदेश में संस्कृत में प्रथमा (कक्षा आठ) से लेकर आचार्य (परास्नातक) तक की शिक्षा के लिए संस्थाओं को मान्यता देने और पाठ्यक्रम निर्धारित करने की जिम्मेदारी वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय पर थी। 2001 में प्रथमा से लेकर उत्तर मध्यमा (इंटर) तक की शिक्षा के लिए संस्थाओं को मान्यता देने, पाठ्यक्रम तय करने और परीक्षाएं कराने का दायित्व उप्र माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद को दिया गया। इन जिम्मेदारियों को अमली जामा पहनाने के लिए परिषद की मान्यता समिति, पाठ्यक्रम समिति और परीक्षा समिति गठित होनी चाहिए थीं जो न हो सकीं। इन समितियों का गठन परिषद की जिस विनियमावली के तहत होना चाहिए था, वह अब तक बन नहीं पाई थी। इस वजह से गुजरे 13 वर्षो में प्रदेश में संस्कृत विद्यालयों को मान्यता देने का काम ठप था।