उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्तियों की जांच कर रही सीबाआइ ने तेजी पकड़ ली है. सीबीआइ ने भर्ती में गड़बड़ियों से जुड़े जिन चार मामलों में प्राइमरी इंक्वायरी दर्ज कराई है उनमें बहुत जल्दी एफआइआर भी हो सकती है. सूबे की सत्ता पर काबिज होने के चंद महीने बाद 20 जुलाई 2017 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग (यूपीपीएससी) की परीक्षाओं की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी. सीबीआइ को 2012 से 2017 तक की सभी परीक्षाओं और जारी हुए रिजल्ट की जांच करनी है. इनकी संख्या लगभग 550 है.
लेकिन, मई 2018 में अज्ञात के नाम एफआइआर दर्ज करने के बाद जांच सुस्त होती गई थी. लगभग 35 महीने की जांच में सीबीआइ किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है. कार्रवाई के नाम पर एक एफआइआर और पांच परीक्षाओं में पीई (प्राइमरी इंक्वायरी) दर्ज कराई जा सकी है. एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह की ओर से पिछले दिनों गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर राज्य लोक सेवा आयोग की जांच कर रही सीबीआइ पर सुस्ती का आरोप लगाया था. इसके बाद सीबीआइ की जांच में तेजी आई है.
सीबीआइ ने जिन परीक्षाओं में पीई और एफआइआर दर्ज कराया है उसमें चयनितों की संख्या लगभग दो हजार है. वहीं, जांच के दायरे में आई सारी भर्तियों में चयनितों की संख्या 30 हजार से अधिक है. अनुमान के अनुसार, चयनित प्रदेश के 44 विभागों में कार्यरत हैं. लेकिन, अभी तक कोई दोषी चिह्नित नहीं हुआ, न ही किसी के खिलाफ कार्रवाई हुई है. सीबीआइ जांच तेज करने की मांग को लेकर हाइकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले अवनीश पांडेय का कहना है कि सरकार को एक टास्क फोर्स बनाने की जरूरत है. सीबीआइ के पास संसाधन सीमित हैं, जबकि काम ज्यादा है. टास्क फोर्स बनने से भ्रष्ट अधिकारियों तक सीबीआइ जल्द पहुंच सकेगी.