आंतरिक मूल्यांकन का प्रावधान ही क्यों बनाया गया है ?

माध्यमिक शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश में शिक्षक वर्ग जोकि शिक्षा व्यवस्था का सबसे सम्मानित एवं सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होना चाहिए उसे अतार्किक प्रधानाचार्यों , क्लर्क , प्रबंधकों एवं अन्य लोगों द्वारा अपमानित करने के लिए छोड़ दिया गया है । कक्षा 9 एवं कक्षा 10 के विद्यार्थियों के परीक्षा अंक वितरण के अनुसार विद्यार्थियों को प्रति वर्ष 30 अंक का आंतरिक मूल्यांकन करना होता है । जिसमें 15 अंक practical के एवं 15 अंक प्रोजेक्ट के हैं लेकिन मैं दो विद्यालयों में कार्य कर चुका हूं कहीं भी कक्षा 9 एवं कक्षा 10 के लिए विज्ञान की laboratory नही है । intermediate कक्षाओं की laboratory में उन्हें कार्य कराया नही जाता है । ऐसे में 30 अंक की आंतरिक परीक्षा का प्रावधान ही क्यों बनाया गया है ?? क्या सभी लोग सोए हुए हैं ?? क्या किसी को कुछ दिखाई नही देता है ?? मैंने इस विषय में अपने जिले की जिला विद्यालय निरिक्षिका जी से मार्गदर्शन मांगा तो उन्होंने कक्षा 10 के विद्यार्थियों के लिए तो व्यवस्था बनाने की बात कही लेकिन कक्षा 09 के लिए कुछ नही कहा ( पत्र संलग्न है ) । जब ऐसा ही है तो फिर क्या कक्षा 9 के छात्रों को बिना कोई कार्य किये ही 30 अंक दे दिए जाएं ?? यदि ऐसा है तो फिर सभी छात्रों को 30 में से 30 अंक दिए जाने चाहिए क्योंकि जब उन्हें कोई प्रायोगिक कार्य कराने की व्यवस्था स्वम् विभाग के अधिकारी नही दे रहे तो फिर छात्रों के अंक क्यों काटे जाएं ??
मैं स्वम् राणा शिक्षा शिविर इण्टर कॉलेज धौलाना हापुड़ में कार्यरत हूँ । मैंने जब कक्षा 10 के छात्रों को practical कराने के लिए रसायन विज्ञान प्रयोगशाला में छात्रों को बुलाया तो रसायन विज्ञान की प्रवक्ता श्रीमती संगीता छोंकर ने laboratory का दरवाजा खोलने से ही इंकार दिया । जिसका छात्रों ने विरोध किया ( वीडियो देखें ) । मेरे द्वारा practical कराए जाने के कारण प्रवक्ता इतनी ज्यादा खफा हो गईं की उन्होंने उसी दिन मेरे विरुद्ध झूठी शिकायत दर्ज कर दी । अब तो मुझे लग रहा है कि वह निश्चित रूप से मेरे विरुद्ध झूठ के आधार पर FIR भी करा सकती हैं । उन्हें विद्यालय के कुछ अन्य लोगों का भी सहयोग मिल रहा है । मेरा आप सभी से अनुरोध है कि आप इस पोस्ट को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा दें ताकि यह बात हमारे शिक्षा मंत्री एवं मुख्यमंत्री तक भी पहुंचे और छात्र हित में सही निर्णय लिए जा सकें तथा झूठ के आधार पर मेरे विरुद्ध एक षड्यंत्र के तहत मुझे फंसाने की जो साजिश रची जा रही है उससे भी मुझे सुरक्षित किया जा सके । मेरे जैसे शिक्षक जोकि छात्र हित को स्वम् के हित से भी ऊपर रखते हैं उन्हें यदि यह व्यवस्था बर्बाद करने पर लगी है तो फिर इस व्यवस्था को अवश्य ही बदला जाना चाहिए । लेखक मनोज कुमार

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