एक साल में दो डिग्रियों के आधार पर बर्खास्तगी अवैध

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी के पास उस पद पर नियुक्त होने की योग्यता है, जिस पर वह काम कर रहा है तो इस आधार पर बर्खास्त करना गलत है कि उसने एक ही वर्ष में दो डिग्रियां हासिल की हैं। कोर्ट ने इस आधार पर जूनियर हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत याची की बर्खास्तगी को अवैध करार देते हुए बीएसए गोरखपुर के बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है।

कोर्ट ने कहा कि यह जानते हुए नियुक्त अध्यापक पद की निर्धारित योग्यता रखता है, फिर भी बर्खास्त करना गलत है। अधिकारियों को ऐसे मामलों में संवेदनशीलता से निर्णय लेना चाहिए। बीएसए ने एक ही सत्र में हाईस्कूल व समकक्ष दो डिग्री हासिल करने के आरोप में प्रधानाध्यापक को बर्खास्त कर दिया था। इस आदेश को प्रधानाध्यापक ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

एकल न्यायपीठ ने बर्खास्तगी को अवैध मानते हुए रद्द कर दिया तो बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से विशेष अपील दाखिल कर एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई। विशेष अपील पर मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने सुनवाई की। खंडपीठ ने एकल पीठ के प्रधानाध्यापक की बर्खास्तगी को रद्द करने के आदेश को सही माना है और बेसिक शिक्षा परिषद की तरफ से दाखिल विशेष अपील खारिज कर दी है। 

बर्खास्त प्रधानाध्यापक चार जनवरी 2006 को सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त हुए। इसके बाद उनको जूनियर हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति दी गई। सात दिसंबर 19 को उनको निलंबित कर विभागीय जांच बैठा दी गई। 13 जनवरी 20 को आरोप पत्र दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने 1984 में  संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से पूर्व मध्यमा की डिग्री हासिल की और उसी साल यूपी बोर्ड से हाईस्कूल भी पास किया। एक साल में एक साथ दो डिग्री हासिल कीं। 

जांच रिपोर्ट के बाद उनको 11 जून 20 को बर्खास्त कर दिया गया। बीएसए गोरखपुर के इस आदेश को चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया और सेवा बहाली का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अध्यापक को सुनवाई का मौका न देना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। वह पद की निर्धारित योग्यता रखता है और नियुक्ति की गई है तो यह अवैध नहीं मानी जाएगी, जिसे अपील में चुनौती दी गई थी।

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