किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006

(2006 का अधिनियम संख्यांक 33)

[22 अगस्त, 2006] (ii)

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण)

अधिनियम, 2000 का संशोधन

करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के सतावनवें वर्ष में संसद्‌ द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो: –

1. संक्षिप्त नाम – इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 है ।

2. बृहत्‌ नाम का संशोधन – किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 (2000 का 56) (जिसे इसमें इसके पश्चात्‌ मूल अधिनियम कहा गया है), के बृहत्‌ नाम में, इस अधिनियमिति के अधीन स्थापित विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से उनके अंतिम पुनर्वास के लिए समेकन और संशोधन करने के लिए अधिनियम” शब्दों के स्थान पर, उनके अंतिम पुनर्वास के लिए समेकन और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का संशोधन करने के लिए अधिनियम” शब्द रखे जाएंगे ।

3. धारा 1 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 1 में, –

(i) पार्श्व शीर्ष में, और प्रारंभ” शब्दों के स्थान पर, प्रारंभ और लागू होना” शब्द रखे जाएंगे;

(ii) उपधारा (3) के पश्चात्‌्‌, निम्नलिखित उपधारा अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात्‌: –

(4) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के उपबंध, ऐसे सभी मामलों को लागू होंगे जिनमें ऐसी अन्य विधि के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों का निरोध, अभियोजन, शास्ति या कारावास का दंडादेश अंतर्वलित है ।”।

4. धारा 2 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 2 में, –

(i) खंड (क) के पश्चात्‌, निम्नलिखित खंड अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌: –

(कक) दत्तक ग्रहण” से वह प्रव्रिया अभिप्रेत है जिसके द्वारा दत्तक बालक अपने जैविक माता-पिता से स्थायी रूप से अलग कर दिया जाता है और अपने दत्तक माता-पिता का उन सभी अधिकारों, विशेषाधिकारों और दायित्वों के साथ जो उस नातेदारी के साथ संलग्न हैं, धर्मज संतान बन जाता है;

(ii) खंड (घ) में, –

(i) उपखंड (i) के पश्चात्‌, निम्नलिखित उपखंड अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌: –

(iक) जो भीख मांगते हुए पाया जाता है, या जो आवारा बालक है या श्रमजीवी बालक है;”;

(ii) उपखंड (v) में परित्याग” शब्द के पश्चात्‌ या अभ्यर्पण” शब्द अंतःस्थापित किए जाएंगे;

(iii) खंड (ज) में, सक्षम प्राधिकारी द्वारा” शब्दों के स्थान पर, सक्षम प्राधिकारी की सिफारिश पर राज्य सरकार द्वारा” शब्द रखे जाएंगे;

(iv) खंड (ठ) के स्थान पर, निम्नलिखित खंड रखा जाएगा, अर्थात्‌: –

(ठ) विधि का उल्लंघन करने वाला किशोर” से ऐसा एक किशोर अभिप्रेत है जिसके बारे में यह अभिकथन है कि उसने कोई अपराध किया है और ऐसा अपराध करने की तारीख को उसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है;

(v) खंड (ड) का लोप किया जाएगा ।

5. कतिपय पदों का लोप – मूल अधिनियम में, स्थानीय प्राधिकारी” और या स्थानीय प्राधिकारी” शब्दों का, जहां-जहां वे अतिे हैं, लोप किया जाएगा ।

6. धारा 4 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (1) में राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किसी जिले या जिलों के समूह के लिए” शब्दों के स्थान पर किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के प्रारंभ की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक जिले के लिए” शब्द, कोष्ठक और अंक रखे जाएंगे ।

7. धारा 6 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (1) में या जिलों के समूह” शब्दों का लोप किया जाएगा ।

8. नई धारा 7क का अंतःस्थापन – मूल अधिनियम की धारा 7 के पश्चात्‌ निम्नलिखित धारा अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात्‌: –

7क. – किसी न्यायालय के समक्ष किशोरावस्था का दावा किए जाने पर अनुसरण की जाने वाली प्रव्रिया – (1) जब कभी किसी न्यायालय के समक्ष किशोरावस्था का कोई दावा किया जाता है या न्यायालय की यह राय है कि अभियुक्त व्यक्ति अपराध कारित होने की तारीख को किशोर था तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति की आयु का अवधारण करने के लिए जांच करेगा, ऐसा साक्ष्य लेगा जो आवश्यक हो (किन्तु शपथ-पत्र पर नहीं) और इस बारे में उसकी निकटतम आयु का कथन करते हुए निष्कर्ष अभिलिखित करेगा कि वह व्यक्ति किशोर या बालक है अथवा नहीं :

परंतु किशोरावस्था का दावा किसी न्यायालय के समक्ष किया जा सकेगा और उसे किसी भी प्रव्रम पर, यहां तक कि मामले के अंतिम निपटान के पश्चात्‌ भी, मान्यता दी जाएगी और ऐसे दावे का इस अधिनियम में और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अनुसार अवधारण किया जाएगा, भले ही उसकी किशोरावस्था इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को या उससे पहले समाप्त हो गई हो ।

(2) यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन अपराध कारित करने की तारीख को किशोर था, तो वह उस किशोर को समुचित आदेश पारित किए जाने के लिए बोर्ड को भेजेगा, और यदि न्यायालय द्वारा कोई दंडादेश पारित किया गया है तो यह समझा जाएगा कि उसका कोई प्रभाव नहीं है ।” ।

9. धारा 10 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 10 की उपधारा (1) के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा रखी जाएगी, अर्थात्‌: –

(1) जैसे ही विधि का उल्लंघन करने वाला कोई किशोर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तभी वह विशेष किशोर पुलिस बल एकक या अभिहित पुलिस अधिकारी के प्रभार के अधीन रखा जाएगा जो किशोर को समय नष्ट किए बिना चौबीस घंटे के भीतर किशोर की गिरफ्तारी के स्थान से यात्रा में लिए गए आवश्यक समय को छोड़कर बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करेगा:

परंतु किसी भी दशा में, विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को पुलिस हवालात या जेल में नहीं रखा जाएगा ।”।

10. धारा 12 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (1) में, प्रतिभू सहित या रहित जमानत पर छोड़ दिया जाएगा,” शब्दों के पश्चात्‌ या किसी परिवीक्षा अधिकारी के पर्यवेक्षण के अधीन या किसी उपयुक्त संस्था या किसी उपयुक्त व्यक्ति की देखरेख के अधीन रखा जाएगा” शब्द अंतःस्थापित किए जाएंगे ।

11. धारा 14 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 14 को उसकी उपधारा (1) के रूप में पुनर्संख्यांकित किया जाएगा और इस प्रकार पुनर्संख्यांकित उपधारा (1) के पश्चात्‌, निम्नलिखित उपधारा अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात्‌: –

(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट प्रत्येक छह मास पर बोर्ड के समक्ष लंबित मामलों का पुनर्विलोकन करेगा और बोर्ड को अपनी बैठकों की आवृत्ति बढ़ाने का निदेश देगा या अतिरिक्त बोर्डों का गठन करा सकेगा ।”

12. धारा 15 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 15 की उपधारा (1) के खंड (छ) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखा जाएगा, अर्थात्‌: –

(छ) किशोर को तीन वर्ष की अवधि के लिए विशेष गृह में भेजने के लिए निदेश देने वाला आदेश कर सकेगा:

परंतु यदि बोर्ड का यह समाधान हो जाता है कि अपराध की प्रकृति और मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएं, ऐसा करना समीचीन है, तो बोर्ड रोक आदेश की अवधि को ऐसी अवधि तक घटा सकेगा जो वह ठीक समझे ।” ।

13. धारा 16 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 16 में, –

(i) उपधारा (1) में, या आजीवन कारावास का” शब्दों के स्थान पर, या ऐसे किसी कारावास का जिसकी अवधि आजीवन कारावास तक की हो सकेगी,” शब्द रखे जाएंगे;

(ii) उपधारा (2) के परंतुक के स्थान पर, निम्नलिखित परंतुक रखा जाएगा, अर्थात्‌: –

परंतु इस प्रकार आदिष्ट निरोध की कालावधि किसी भी दशा में इस अधिनियम की धारा 15 के अधीन उपबंधित की गई अधिकतम कालावधि से अधिक नहीं होगी ।” ।

14. धारा 20 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 20 में निम्नलिखित परंतुक और स्पष्टीकरण अंतःस्थापित किए जाएंगे, अर्थात्‌: –

परंतु बोर्ड किसी ऐसे उपयुक्त और विशेष कारण से जो आदेश में वर्णित किया जाए, मामले का पुनर्विलोकन कर सकेगा और ऐसे किशोर के हित में उपयुक्त आदेश पारित कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण – किसी न्यायालय में विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर से संबंधित सभी लंबित मामलों में जिनके अंतर्गत विचारण, पुनरीक्षण, अपील या कोई अन्य दांडिक कार्यवाहियां भी हैं, ऐसे किशोर की किशोरावस्था का अवधारण धारा 2 के खंड (ठ) के निबन्धनानुसार किया जाएगा भले ही किशोर इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को या उससे पहले किशोर न रहा हो और इस अधिनियम के उपबंध ऐसे लागू होंगे मानो उक्त उपबंध सभी प्रयोजनों के लिए और सभी तात्विक समयों पर प्रवर्तन में थे जब ऐसा अभिकथित अपराध किया गया था ।” ।

15. धारा 21 के स्थान पर नई धारा का प्रतिस्थापन – मूल अधिनियम की धारा 21 के स्थान पर निम्नलिखित धारा रखी जाएगी, अर्थात्‌: –

21. इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही में अंतर्वलित विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर या देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक के नाम आदि के प्रकाशन का प्रतिषेध – (1) किसी समाचारपत्र, पत्रिका या समाचार पृष्ठ या दृश्य माध्यम में इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर या देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक के बारे में किसी जांच की कोई रिपोर्ट किशोर या बालक का नाम, पता या विद्यालय या कोई अन्य विशिष्टियां जिनसे किशोर या बालक का पहचाना जाना प्रकल्पित हो, प्रकट नहीं की जाएगी और न ही ऐसे किशोर या बालक का कोई चित्र ही प्रकाशित किया जाएगा :

परंतु जांच करने वाला प्राधिकारी ऐसा प्रकटन ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे तब अनुज्ञात कर सकेगा जब उसकी राय में ऐसा प्रकटन किशोर या बालक के हित में हो ।

(2) उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंघन करने वाला कोई व्यक्ति ऐसी शास्ति के लिए दायी होगा, जो पच्चीस हजार रुपए तक की हो सकेगी ।” ।

16. धारा 29 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 29 की उपधारा (1) में, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अधिसूचना में विनिर्दिष्ट प्रत्येक जिले या जिलों के समूह के लिए” शब्दों के स्थान पर किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के प्रारंभ की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक जिले के लिए” शब्द, कोष्ठक और अंक रखे जाएंगे ।

17. धारा 32 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 32 में, –

(क) उपधारा (1) में, –

(i) खंड (iv) में, राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत” शब्दों का लोप किया जाएगा;

(ii) निम्नलिखित परंतुक अंत में, अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌: –

परंतु बालक को समय नष्ट किए बिना चौबीस घंटे की अवधि के भीतर यात्रा में लिए गए आवश्यक समय को छोड़कर समिति के समक्ष पेश किया जाएगा ।”;

(ख) उपधारा (2) में पुलिस को और” शब्दों का लोप किया जाएगा ।

18. धारा 33 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 33 में, –

(क) उपधारा (1) में, या कोई पुलिस अधिकारी या विशेष किशोर पुलिस एकक या अभिहित पुलिस अधिकारी” शब्दों का लोप किया जाएगा;

(ख) उपधारा (3) के स्थान पर निम्नलिखित उपधाराएं रखी जाएंगी, अर्थात्‌ :-

(3) राज्य सरकार, प्रत्येक छह मास में समिति के समक्ष लंबित मामलों का पुनर्विलोकन करेगी और समिति को अपनी बैठकों की आवृत्ति को बढ़ाने के लिए निदेश देगी या अतिरिक्त समितियों का गठन करा सकेगी ।

(4) जांच के पूरा हो जाने के पश्चात्‌ यदि समिति की यह राय है कि उक्त बालक का कोई कुटुम्ब या उसका कोई दृश्यमान सहारा नहीं है या उसे देखरेख या संरक्षण की लगातार आवश्यकता है, तो वह बालक को तब तक बालगृह या आश्रयगृह में रहने की अनुज्ञा दे सकेगी जब तक उसका उपयुक्त पुनर्वास नहीं हो जाता या जब तक वह अठारह वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है ।” ।

19. धारा 34 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 34 की उपधारा (2) के पश्चात्‌, निम्नलिखित उपधारा अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात्‌: –

(3) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, सभी संस्थाएं, चाहे वे राज्य सरकार द्वारा या स्वैच्छिक संगठनों द्वारा देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों के लिए चलाई जाती हैं, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के प्रारंभ की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर इस अधिनियम के अधीन, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, रजिस्ट्रीकृत की जाएंगी ।” ।

20. धारा 39 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 39 के स्पष्टीकरण के स्थान पर, निम्नलिखित स्पष्टीकरण रखा जाएगा, अर्थात्‌: –

स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए बालक का प्रत्यावर्तन और संरक्षण” से, –

(क) माता-पिता;

(ख) दत्तक माता-पिता;

(ग) पोषक माता-पिता;

(घ) संरक्षक;

(ङ) उपयुक्त व्यक्ति;

(च) उपयुक्त संस्था,

को प्रत्यावर्तन अभिप्रेत हैं । ।

21. धारा 41 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 41 में, –

(i) उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4) के स्थान पर, निम्नलिखित उपधाराएं रखी जाएंगी, अर्थात्‌: –

(2) ऐसे बालकों के पुनर्वास के लिए, जो अनाथ, परित्यक्त या अभ्यर्पित हैं, ऐसे तंत्र के माध्यम से, जो विहित किया जाए, दत्तक ग्रहण का सहारा लिया जाएगा ।

(3) राज्य सरकार या केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन अभिकरण द्वारा समय-समय पर जारी किए गए और केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित दत्तक ग्रहण के लिए विभिन्न मार्गदर्शक सिद्धांतों के उपबंधों को ध्यान में रखते हुए, किसी न्यायालय द्वारा बालकों को, ऐसे बालकों को दत्तक में देने के लिए यथाअपेक्षित किए गए अन्वेषणों के संबंध में अपना समाधान हो जाने के पश्चात्‌, दत्तक गृह में दिया जा सकेगा ।

(4) राज्य सरकार, प्रत्येक जिले में अपनी एक या अधिक संस्थाओं अथवा स्वैच्छिक संगठनों को, विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण अभिकरणों के रूप में, ऐसी रीति में जो उपधारा (3) के अधीन अधिसूचित मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार दत्तक ग्रहण के लिए अनाथ, परित्यक्त या अभ्यर्पित बालकों के नियोजन के लिए विहित की जाए, मान्यता देगी:

परंतु देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों के लिए, जो अनाथ, परित्यक्त या अभ्यर्पित हैं, राज्य सरकार या किसी स्वैच्छिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाले बाल गृह और संस्थाएं यह सुनिश्चित करेंगी कि ये बालक समिति द्वारा दत्तक ग्रहण के लिए उपलब्ध घोषित किए गए हैं और सभी ऐसे मामले, उस जिले में दत्तक ग्रहण अभिकरण को, उपधारा (3) के अधीन अधिसूचित मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार दत्तक ग्रहण में ऐसे बालकों के नियोजन के लिए निर्दिष्ट किए जाएंगे ।”;

(ii) उपधारा (6) के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा रखी जाएगी, अर्थात्‌: –

(6) न्यायालय बालक को दत्तक ग्रहण में, –

(क) किसी व्यक्ति को उसकी वैवाहिक स्थिति को विचार में लाए बिना; या

(ख) जीवित स्वयं से उत्पन्न (जैविक) पुत्रों या पुत्रियों की संख्या को विचार में लाए बिना समान लिंग के बालक को दत्तक ग्रहण के लिए माता-पिता को; या

(ग) निःसंतान दंपत्ति को, दिए जाने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा ।” ।

22. धारा 57 के स्थान पर नई धारा का प्रतिस्थापन – मूल अधिनियम की धारा 57 के स्थान पर निम्नलिखित धारा रखी जाएगी, अर्थात्‌: –

57. अधिनियम के अधीन बालगृहों और भारत के विभिन्न भागों में ऐसी ही प्रकृति के बालगृहों के मध्य अंतरण – राज्य सरकार, यह निदेश दे सकेगी कि कोई बालक या किशोर राज्य के भीतर किसी बालगृह या विशेषगृह से राज्य से बाहर किसी अन्य बालगृह, विशेषगृह या ऐसी ही प्रकृति की संस्था या ऐसी संस्थाओं को संबद्ध राज्य सरकार के परामर्श से, यथास्थिति, समिति या बोर्ड की पूर्व सूचना से अंतरित किया जाए और ऐसा आदेश उस क्षेत्र के समक्ष प्राधिकारी के लिए जहां बालक या किशोर को भेजा जाता है प्रवर्तन में माना जाएगा ।” ।

23. धारा 59 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 59 की उपधारा (2) में, अधिकतम सात दिन के लिए” शब्दों के स्थान पर ऐसी अवधि के लिए जो साधारणतया सात दिन से अधिक न हो,” शब्द रखे जाएंगे ।

24. नई धारा 62क का अंतःस्थापन – मूल अधिनियम की धारा 62 के पश्चात्‌, निम्नलिखित धारा अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात्‌: –

62क. अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी बाल संरक्षण एकक का गठन – प्रत्येक राज्य सरकार, इस अधिनियम के कार्यान्वयन को, जिसके अंतर्गत गृहों की स्थापना और उनका अनुरक्षण, इन बालकों के संबंध में सक्षम प्राधिकारियों की अधिसूचना और उनका पुनर्वास तथा संबद्ध विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी अभिकरणों से समन्वय करना भी है, सुनिश्चित करने की दृष्टि से देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों और विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों से संबंधित मामलों पर विचार करने के लिए राज्य के लिए बालक संरक्षण एकक और प्रत्येक जिले के लिए ऐसे एककों का गठन करेगी, जिसमें ऐसे अधिकारी और अन्य कर्मचारी होंगे, जो उस राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएं ।” ।

25. धारा 64 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 64 में, –

(i) यह निदेश दे सकेगा” शब्दों के स्थान पर, यह निदेश देगा” शब्द रखे जाएंगे;

(ii) निम्नलिखित परंतुक और स्पष्टीकरण अंतःस्थापित किए जाएंगे, अर्थात्‌: –

परंतु, यथास्थिति, राज्य सरकार या बोर्ड किसी ऐसे पर्याप्त और विशेष कारण से जो लेखबद्ध किया जाए, ऐसे कारावास का दंडादेश भोग रहे विधि का उल्लंघन करने वाले ऐसे किशोर के मामले का जो इस अधिनियम के प्रारंभ पर या उससे पूर्व किशोर नहीं रहा है पुनर्विलोकन कर सकेगा और ऐसे किशोर के हित में समुचित आदेश पारित कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण – ऐसे सभी मामलों में जिनमें इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को विधि का उल्लंघन करने वाला किशोर किसी भी प्रव्रम पर कारावास का कोई दंडादेश भोग रहा है, किशोरावस्था के विवाद्यक सहित उसका मामला इस अधिनियम की धारा 2 के खंड (ठ) में अंतर्विष्ट निबंधनों और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्य उपबंधों के अनुसार इस तथ्य के होते हुए भी कि वह ऐसी तारीख को या उससे पूर्व किशोर नहीं रहा है विनिश्चित किया गया माना जाएगा और तद्‌नुसार वह दंडादेश की शेष अवधि के लिए, यथास्थिति, विशेषगृह या उपयुक्त संस्था में भेजा जाएगा किन्तु ऐसा दंडादेश किसी भी दशा में इस अधिनियम की धारा 15 में उपबंधित अधिकतम अवधि से अधिक का नहीं होगा ।” ।

26. धारा 68 का संशोधन – मूल अधिनियम की धारा 68 में, –

(क) उपधारा (1) में निम्नलिखित परंतुक अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌: –

परंतु केन्द्रीय सरकार, उन सभी या किन्हीं विषयों के संबंध में जिनकी बाबत राज्य सरकार, इस धारा के अधीन नियम बना सकेगी, आदर्श नियम बना सकेगी और जहां ऐसे किसी विषय के संबंध में ऐसे आदर्श नियम बनाए गए हैं, वहां वे राज्य को लागू होंगे जब तक कि उस विषय के संबंध में राज्य सरकार द्वारा नियम नहीं बना दिए जाते और कोई ऐसे नियम बनाए जाते समय जहां तक व्यवहार्य हो वे ऐसे आदर्श नियम के अनुरूप होंगे ।”;

(ख) उपधारा (2) में, –

(i) खंड (x) में ली जा सकेगी” शब्दों के पश्चात्‌, निम्नलिखित शब्द, कोष्ठक और अंक अंतःस्थापित किए जाएंगे, अर्थात्‌: –

और उपधारा (3) के अधीन संस्थाओं के रजिस्ट्रीकरण की रीति”;

(ii) खंड (vii) के पश्चात्‌, निम्नलिखित खंड अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌: –

(xiiक) धारा 41 की उपधारा (2) के अधीन दत्तक ग्रहण में पुनर्वास तंत्र का प्रत्यावर्तित किया जाना उपधारा (3) के अधीन मार्गदर्शक सिद्धांतों की अधिसूचना और उपधारा (4) के अधीन विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण अभिकरणों को मान्यता की रीति ।”;

(ग) उपधारा (3) को उसकी उपधारा (4) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया जाएगा और इस प्रकार पुनःसंख्यांकित उपधारा (4) से पहले निम्नलिखित उपधारा अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात्‌: –

(3) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात्‌ यथाशीघ्र, संसद्‌ के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुव्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुव्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात्‌ यह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात्‌ वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।”।

किशोरों के मामलों में अधिकारिता-किसी ऐसे अपराध का विचारण, जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय नहीं है और जो ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है, जिसकी आयु उस तारीख को, जब वह न्यायालय के समक्ष हाजिर हो या लाया जाए, सोलह वर्ष से कम है, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा या किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसे बालक अधिनियम, 1960 (1960 का 60) या किशोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए उपबंध करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन विशेष रूप से सशक्त किया गया है ।

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