राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 भारतीय शिक्षा की पुन कल्पना-बी एस पुरकायस्थ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में एक संबोधन में कहा था- ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति गरीबी से लड़ने और 21वीं सदी की जरूरतों को पूरा करने का एक माध्यम है. 34 वर्षों के बाद, जुलाई 2020 में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य देश की बढ़ती विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करना है. नई नीति में 21वीं सदी की शिक्षा की आकांक्षाओं के अनुरूप नई व्यवस्था के लिए, इसके विनियमन और संचालन सहित शिक्षा संरचना के सभी पहलुओं में संशोधन और सुधार का प्रस्ताव है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आज के युवा स्वयं को उन कौशलों से युक्त कर सकें जो तेजी से बदलती अर्थव्यवस्था में उन्हें रोज़गार योग्य बनाते हैं.

भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा और रोज़गार योग्यता के बीच संबंध महत्वपूर्ण है. हर साल, देशभर के विश्वविद्यालयों से हजारों विद्यार्थी स्नातक होकर निकलते हैं लेकिन उन्हें अपने कौशल से मेल खाने वाला रोज़गार पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. यहां तक कि इंजीनियरिंग स्नातकों के साथ भी ऐसा ही है, क्योंकि उनके पास आवश्यक कौशल न होने के कारण उद्योग उनमें से एक बड़े वर्ग को रोज़गार के योग्य नहीं समझता इसलिए उन्हें उत्पादक बनने के लिए अतिरिक्त प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है. भारतीय उद्योग जगत के दिग्गजों ने बार-बार उद्योग-अकादमिक अंतर की ओर इशारा किया है क्योंकि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में विद्यार्थिर्यों को जो पढ़ाया जाता है वह उद्योग की जरूरतों के अनुरूप नहीं होता है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस दृष्टि से  परिवर्तनकारी साबित हो सकती है क्योंकि इसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव लाना है जो भारत की अगली पीढ़ी को न केवल नौकरी के योग्य बनाने में मदद कर सके, बल्कि उन्हें नौकरी देने वाला भी बना सके और  देश के कार्यबल के लाभ के सही महत्व का अनुभव करा सके. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 देशभर में स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों के लिए एक व्यापक दृष्टि और व्यापक ढांचा प्रदान करती है. चूंकि शिक्षा एक समवर्ती विषय है, इसलिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी. यदि इस नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया गया तो यह भारत के कार्यबल के भविष्य को नया रूप देने में सहायक हो सकती है और नौकरी चाहने वालों की अगली पीढ़ी को अधिक रोज़गार योग्य बनने में मदद कर सकती है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की मुख्य विशेषताएं.

  • 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात के साथ विद्यालय पूर्व से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा का सार्वभौमिकरण.
  • नया 5+3+3+4  स्कूल पाठ्यक्रम जिसमें 12 साल की स्कूली शिक्षा और 3 साल की आंगनवाड़ी/ विद्यालय पूर्व शिक्षा शामिल है.
  • बुनियादी साक्षरता और गणना पर जोर, शैक्षणिक धाराओं- पाठ्येतर गतिविधियों और व्यावसायिक विषयों को पूरी तरह अलग-अलग नहीं रखना और कक्षा 6 से इंटर्नशिप के साथ व्यावसायिक शिक्षा शुरू करना.
  • शिक्षा के परिणामों को हासिल करने के लिए 360-डिग्री समग्र प्रगति कार्ड के साथ मूल्यांकन सुधार और छात्र प्रगति पर नजर रखना. एक राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र – परख (प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा, और समग्र विकास के लिए ज्ञान का विश्लेषण) – मूल्यांकन के रूपांतरण के लिए एक मानक-निर्धारण निकाय के रूप में स्थापित किया जाना है.
  • बुनियादी मानकों (अर्थात् सुरक्षा, बुनियादी ढांचा, विषयों तथा ग्रेड में शिक्षकों की संख्या, वित्तीय ईमानदारी और संचालन की सुदृढ़ प्रक्रियाओं) के आधार पर न्यूनतम मानक स्थापित करने के लिए राज्य स्कूल मानक प्राधिकरण (एसएसएसए) की स्थापना, जिसका पालन सभी स्कूल करेंगे.
  • बहु-विषयक व्यवस्था लागू करने के लिए शिक्षक शिक्षा और 2030 तक स्कूली शिक्षकों के लिए चार वर्षीय बी.एड. को न्यूनतम डिग्री योग्यता बनाना.
  • शत-प्रतिशत युवा और व्यस्क साक्षरता हासिल करना.
  • यह नीति, स्कूलों और उच्च शिक्षा दोनों में बहुभाषावाद को बढ़ावा देती है. जहां भी संभव हो, शिक्षा का माध्यम कम से कम ग्रेड 5 तक, लेकिन अधिमानत: ग्रेड 8 और उससे आगे तक, घर परिवार की भाषा/मातृभाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा होगी. पाली, फारसी और प्राकृत के लिए राष्ट्रीय संस्थान, भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान की स्थापना की जाएगी.
  • उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को वर्ष 2035 तक बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक किया जाना है.
  • उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में विषयों का लचीलापन होगा.
  • एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स के माध्यम से मल्टीपल एंट्री / एक्जिट, और क्रेडिट ट्रांसफर.
  • प्रभावी अनुसंधान संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी.
  • उच्च शिक्षा का हल्का लेकिन सख्त विनियमन, विभिन्न कार्यों के लिए चार अलग-अलग कार्यक्षेत्रों के साथ एकल नियामक- भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई).
  • ग्रेडेड मान्यता की पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से कॉलेजों को ग्रेडेड स्वायत्तता प्रदान करने के लिए चरण-वार तंत्र स्थापित किया जाएगा.
  • समानता के साथ प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना; राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच बनाया जाएगा.
  • वंचित क्षेत्रों और समूहों के लिए जेंडर समावेशन कोष, विशेष शिक्षा क्षेत्रों की स्थापना.

शिक्षा-रोज़गार की खाई को पाटना

एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कई पहलुओं में से कुछ का रोज़गार पर सीधा प्रभाव पड़ता है. सबसे बड़े बदलावों में से एक यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भविष्य के कार्यबल को अपने विषयों/पाठ्यक्रमों को चुनने के लिए अधिक लचीलेपन के साथ सशक्त बनाती है. एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स के माध्यम से  प्रवेश/निकास, और क्रेडिट ट्रांसफर से विद्यार्थी क्रेडिट अर्जित कर सकेंगे और उसे बनाए रख सकेंगे जिससे वे अपनी शिक्षा वहीं से जारी रख सकेंगे जहां से वे बीच में ही पढ़ाई छोड़ेंगे. एक साल के बाद डिग्री कोर्स छोड़ने वाले कॉलेज के विद्यार्थी को सर्टिफिकेट मिलेगा. वह दो साल की पढ़ाई के बाद डिप्लोमा और तीन/चार साल के बाद डिग्री हासिल कर सकता है. यह लचीलापन और स्वायत्तता विद्यार्थियों को उपयोगी साबित न होने वाली डिग्री हासिल करने के बजाय बाजार की मांग के अनुरूप विभिन्न प्रकार के विकल्पों का पता लगाने और कौशल हासिल करने में सक्षम बनाएगी. इस नीति के पीछे पथ-प्रदर्शक विचार यह है कि पाठ्यचर्या, पाठ्येतर या सह-पाठ्यक्रम विषयों या कला, वाणिज्य या विज्ञान विषयों के बीच, या व्यावसायिक या शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के बीच कोई अवरोध न हो. इसका मतलब यह है कि कोई विद्यार्थी एक संस्थान में एक कार्यक्रम के लिए नामांकन कर सकता है और साथ ही ऑफलाइन और/या ऑनलाइन मोड में क्रेडिट अर्जित करने के लिए कई संस्थानों में अपनी पसंद के पाठ्यक्रमों के लिए साइन अप कर सकता है.

व्यावसायिक शिक्षा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 रोज़गारोन्मुखी शिक्षा को एक कदम आगे बढ़ाते हुए, व्यावसायिक प्रशिक्षण पर जोर देती है. यह व्यावसायिक शिक्षा को अकादमिक पाठ्यक्रमों की तुलना में कम महत्व देने वाली और मुख्यधारा की शिक्षा की कठोरता का सामना करने में असमर्थ विद्यार्थियों के लिए अंतिम उपाय के रूप में देखी जाने वाली वर्तमान प्रणाली के विपरीत, मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली के साथ एकीकृत करती है. इस नीति में यह परिकल्पना की गई है कि व्यावसायिक शिक्षा को अगले दशक में चरणबद्ध तरीके से सभी माध्यमिक विद्यालयों के शैक्षिक प्रस्तावों में एकीकृत किया जाएगा. इसके लिए माध्यमिक विद्यालय, व्यावसायिक पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए आईटीआई, पॉलिटेक्निक, स्थानीय उद्योग आदि के साथ सहयोग करेंगे. सभी विद्यार्थी कक्षा 6-8 के दौरान 10-दिवसीय बैगलेस पीरियड में भाग लेंगे, जहां वे स्थानीय व्यावसायिक विशेषज्ञों के साथ इंटर्न करेंगे. कक्षा ९-12 में विद्यार्थियों को व्यावसायिक विषयों की पढ़ाई के लिए समान इंटर्नशिप के अवसर मिलेंगे. यह स्कूल छोड़ने वाले उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो असंगठित क्षेत्र में नौकरी की तलाश करते हैं, या स्वरोज़गार का विकल्प चुनते हैं. माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर वित्तीय साक्षरता, कोडिंग डेटा विज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे वैकल्पिक विषयों की शुरुआत उन विषयों को लाने की इच्छा के संकेत हैं जिनका रोज़गार पर सीधा प्रभाव पड़ता है और जो छात्रों को रोज़गार बाजार के लिए टेक्टोनिक बदलावों के लिए तैयार करते हैं.

समग्र शिक्षा के अंतर्गत सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के विद्यार्थियों को स्थानीय कारखानों, व्यवसायों, कलाकारों, शिल्पकारों आदि के साथ अनुसंधान और इंटर्नशिप के अवसर दिए जाएंगे. इसके साथ ही अपने स्वयं के या अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों/अनुसंधान संस्थानों में संकाय और शोधकर्ताओं के साथ शोध इंटर्नशिप का मौका भी दिया जाएगा ताकि वे सक्रिय रूप से शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष से जुड़ सकें और व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त कर सकें. कौशल की कमी के विश्लेषण और स्थानीय अवसरों के मानचित्रण के आधार पर व्यावसायिक शिक्षा के लिए फोकस क्षेत्रों का चयन किया जाएगा. मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस प्रयास की देख-रेख के लिए व्यावसायिक शिक्षा के एकीकरण के वास्ते एक राष्ट्रीय समिति (एनसीआईवीई) का गठन करेगा, जिसमें व्यावसायिक शिक्षा के विशेषज्ञ और विभिन्न मंत्रालयों तथा उद्योगों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. सभी धाराओं के स्नातकों की रोज़गार योग्यता और व्यावसायिक प्रशिक्षण के संबंध में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में  अपनाया गया व्यावहारिक और सुधारवादी दृष्टिकोण, शिक्षा और रोज़गार को एक- दूसरे के साथ अधिक संबद्ध करने की दिशा में एक बड़ी छलांग है. यह नीति स्नातक पाठ्यक्रमों में नामांकित विद्यार्थियों के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में इंटर्नशिप का प्रस्ताव करती है, ताकि स्नातकों को उद्योग का अनुभव प्रदान किया जा सके. राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनुभवात्मक शिक्षा पर जोर देती है, इस प्रकार 21वीं सदी के कौशल जैसे समस्या समाधान और महत्वपूर्ण विश्लेषण के साथ-साथ व्यावहरिक दक्षताओं- शॉपफ्लोर और बोर्डरूम के लिए आवश्यक कौशल को बढ़ावा देने में मददगार है.

शिक्षा के माध्यम की बात करें तो, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक प्रमुख पहलू, भारत की सभी आधिकारिक भाषाओं का संवर्द्धन है. इसमें सिफारिश की गई है कि स्कूल और उच्च शिक्षा संस्थान विद्यार्थियों को अपनी मातृभाषा में अध्ययन करने का विकल्प दें और यह सुनिश्चित किया जाए कि गैर-अंग्रेजी संस्थानों में पढ़ने वालों को दरकिनार न किया जाए. कुछ राज्यों के स्कूलों ने पहले ही संबंधित भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों के साथ शुरुआत कर दी है. 2021-22 से प्रायोगिक आधार पर कुछ संस्थानों में आठ क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा दी जा रही है. ये क्षेत्रीय भाषाएं हैं- हिंदी, बंाग्ला, तमिल, तेलुगु, मराठी, गुजराती, कन्नड़ और मलयालम.

वर्तमान शिक्षा प्रणाली की व्याख्या में पाठ्यक्रम के दौरान हासिल कौशल और ज्ञान के बजाय परीक्षाओं में प्राप्त अंकों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं पर अनावश्यक ध्यान कम करना है. नतीजतन, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित बोर्ड परीक्षाओं में 2021-2022 शैक्षणिक वर्ष से बहुविकल्पीय और विश्लेषणात्मक प्रश्नों की संख्या अधिक होगी. यदि विभिन्न राज्य बोर्ड इस प्रवृत्ति का पालन करते हैं, तो स्कूली शिक्षा प्रणाली में पाठ्यक्रम सुधार देखे जा सकते हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में शिक्षित व्यक्तियों की बेरोज़गारी दर 11.4 प्रतिशत थी. यह देखते हुए कि भारत की आधी आबादी 25 वर्ष से कम आयु के लोगों की है और लगभग 66 प्रतिशत 35 वर्ष से कम उम्र के हैं, यह वास्तव में बहुत बड़ी संख्या है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2027 तक भारत वैश्विक कार्यबल के लगभग पांचवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करेगा, जो कि दुनिया में सबसे अधिक होगा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करते हुए भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना है. इस अवसर का पूरा लाभ उठाना, भारत के नागरिकों और विशेष रूप से युवाओं पर निर्भर है.

(लेखक दिल्ली के पत्रकार हैं और उनसे ideainksreply@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.

(चित्र: गूगल के सौजन्य से)

 

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