स्कूलों में दंड के प्रतिबंध बच्चों को पीटना तो दूर डराया भी तो हो जाएगी मुश्किल; शासन ने जारी किया ये आदेश बच्चों को पीटना तो दूर उन्हें डांटने, फटकारने और यहां तक कि डराने पर भी और सख्ती से रोक लगाई जाएगी। बच्चों को स्कूलों में दंड देने पर प्रतिबंध को लेकर अक्तूबर-2007 और जनवरी 2024 में जारी शासनादेशों के हवाले से सोमवार को महानिदेशक स्कूल शिक्षा ने एक विस्तृत दिशा निर्देश प्रदेश भर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को जारी किए हैं।
इसमें जोर दिया गया है कि अधिकारी और शिक्षक इसे लेकर बच्चों और अभिभावकों को अधिक से अधिक जागरूक बनाएं।
महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को भेजे पत्र में निर्देशित किया है कि वे जून में मुख्यमंत्री द्वारा जारी टोल फ्री नंबर को हर स्कूल के नोटिस बोर्ड, मुख्य प्रवेश द्वार पर अंकित कराएं। इन नंबरों पर आने वाली शिकायतों की मॉनीटरिंग अब प्रदेश स्तर पर की जा रही है। इतना ही बेसिक शिक्षा अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वे पूर्व में दंड को लेकर जारी किए गए निर्देशों का कड़ाई से पालन कराएं और ब्लाक और जिला स्तर पर होने वाली मासिक समीक्षा बैठकों में इसे एक एजेंडा बिंदु के तौर पर शामिल करें।
स्कूलों में शारीरिक दंड पर है पूर्ण प्रतिबंध अक्तूबर-2007 के शासनादेश के अनुसार स्कूलों में बच्चों के प्रति हिंसा पर पूर्णतया प्रतिबंध है। इसके तहत बच्चों को डांटने, फटकारने, परिसर में दौड़ाने, चिकोटी काटने, छड़ी से पीटने, चांटा मारने, चपत जमाने, घुटनों के बल बिठाने, यौन शोषण, प्रताड़ना, क्लासरूम में अकेले बंद कर देने, बिजली के झटके देना या ऐसे किसी भी दंड पर पूरी तरह से रोक है जिसके कारण बच्चे को शारीरिक या मानसिक आघात पहुंचे। बच्चे को अपमानित करने, नीचा दिखाने को भी इसी श्रेणी में रखा गया है। निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत भी किसी बालक को शारीरिक दंड नहीं दिया जा सकता है। साथ ही उनका मानसिक उत्पीड़न भी नहीं किया जाएगा। इसका उल्लंघन करने वाले पर सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी।
बाल संरक्षण आयोग ने भी दिए थे निर्देश बच्चों को स्कूलों में दंड पर पूर्व में जारी शासनादेशों में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निर्देश भी शामिल किए गए हैं। आयोग का जोर निम्न बिंदुओं पर है-
बच्चों को व्यापक प्रचार-प्रसार के माध्यम से बताया जाए कि उन्हें शारीरिक दंड के विरोध में बात कहने का अधिकार है। इसे संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में भी लाया जाए।
ऐसे सभी स्कूलों जिसमें छात्रावास, जेजे होम्स, बाल संरक्षण गृह एवं अन्य सार्वजनिक संस्थाए भी सम्मिलित हैं, में एक ऐसा फोरम बनाया जाए जहां बच्चे अपनी बात रख सकें।
स्कूलों में एक शिकायत पेटिका भी होनी चाहिए, जिसमें छात्र शिकायती पत्र बिना नाम के भी डाल सकें।
अभिभावक शिक्षक समिति अथवा समान प्रकृति की कोई अन्य समिति नियमित रूप से प्राप्त शिकायतों एवं कृत कार्यवाही की मासिक समीक्षा करें।अभिभावक शिक्षक समिति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे प्राप्त शिकायतों पर बिना समय गंवाए कार्रवाई करें ताकि कोई गंभीर स्थिति न उत्पन्न हो सके।अभिभावकों के साथ-साथ बच्चों को भी शारीरिक दंड के विरोध में भयमुक्त होकर आवाज उठाने के लिए अधिकृत किया जाए।
ये हैं बच्चों के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न शारीरिक उत्पीड़नः पंच मारना, नोचना, धक्का देना, लात मारना, थप्पड़ मारना, कान ऐंठना, हाथ, छड़ी व लोहे की राड से मारना, अंगुली के पोर पर मारना, बच्चे की पीठ पर मारना, एक बच्चे के सिर को दूसरे बच्चे के सिर से लड़ाना, बच्चे को किताब कॉपी न लाने के लिए खड़ा करना, उठक-बैठक कराना आदि। भावनात्मक उत्पीड़नः मौखिक उत्पीड़न, मानसिक उत्पीड़न, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, बच्चे को गंभीरव्य वहारात्मक भावात्मक या मानसिक सदमा पहुंचाना, बंद व अंधेरे कमरे में बंद करन देना, बच्चे को कुर्सी से बांध देना आदि।
सामाजिक उत्पीड़नः जातिगत भेदभाव, लैंगिक भेदभाव, रंग के आधार पर भेदभाव आदि।
यौन क्षेत्र में सुरक्षा एवं सरंक्षाः बच्चों को अश्लील सामग्री दिखाना, बच्चों के निजी अंगों को छूना, बच्चों की आपत्तिजनक तस्वीर लेना, वीडियो बनाना, दुपट्टा खींचना आदि।