अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत 40 शिक्षकों को अगले माह से वेतन नहीं मिलेगा। अपर मुख्य सचिव आराधना शुक्ला के निर्देश पर मई माह में आए वेतन बिल पर तदर्थ शिक्षकों का वेतन रोका गया तो उनकी नौकरी पर संकट गहरा गया है।
जिले में 35 अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालय में से 12 में 43 शिक्षकों की तैनाती तदर्थ के रूप में की गई थी। इसमें तीन की सेवाकाल के दौरान मौत हो चुकी है। इसमें कुछ विद्यालय ऐसे हैं जहां पर तदर्थ शिक्षक ही प्रधानाचार्य की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित केस सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुका है। इसके बाद हुई तदर्थ शिक्षकों को वेटेज के रूप में अतिरिक्त अंक दिए गए थे। इसके बावजूद जिले का कोई भी तदर्थ शिक्षक माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग की परीक्षा पास नहीं कर सका।
जो शिक्षक इस परीक्षा में चयनित हुए उनको माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग ने सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भेजा। मगर, पहले से तदर्थ शिक्षकों के तैनात होने को लेकर आयोग से आए शिक्षकों की ज्वाइनिंग में दिक्कत उत्पन्न हुई। हालांकि जिले में ऐसा कोई केस सामने नहीं आया। आयोग से जो 39 शिक्षक चयन होकर आए सभी की ज्वाइनिंग करा दी गई। मगर, अन्य जिलों मेेें आई दिक्कत के बाद अपर मुख्य सचिव आराधना शुक्ला के निर्देश के बाद तदर्थ शिक्षकों को लेकर कार्रवाई शुरू कर दी है।
अगर वेतन रुका तो जिले के 12 अशासकीय विद्यालयों में तैनात 40 तदर्थ शिक्षक नौकरी से वंचित हो जाएंगे। तदर्थ शिक्षकों के वेतन रोकने के शासन के आदेश के बाद विभाग में हड़कंप मच गया है। डीआईओएस राजेश कुमार वर्मा ने बताया कि इस संबंध में कोई लिखित आदेश नहीं मिला है। अपर मुख्य सचिव के निर्देश के क्रम में वेतन पर रोक लगाई जाएगी।
20-20 साल से नौकरी कर रहे शिक्षक
अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ शिक्षक के रूप में 20-20 साल से लोग नौकरी कर रहे हैं। कई तो जहां रिटायर्ड हो गए वहीं कई की सेवाकाल के दौरान मौत हो गई। इन्हें नियमित शिक्षकों की भांति वेतन भत्ता भले मिल रहा हो। मगर, अब उनकी नौकरी पर संकट गहरा गया है। क्योंकि शासन ने वर्ष 2000 के बाद तदर्थ शिक्षक के रूप में नियुक्त होने वालों का वेतन रोकने का आदेश दिया है।
प्रबंधतंत्र करता था तदर्थ शिक्षक के नियुक्ति
अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति का खेल पुराना है। जिस विषय का शिक्षक नहीं होता था प्रबंधतंत्र तदर्थ शिक्षक के रूप में उसकी नियुक्ति कर लेता था। नियम था कि संबंधित विषय का शिक्षक आयोग से आने पर तदर्थ शिक्षक की नौकरी स्वत: समाप्त हो जाएगी।
यह व्यवस्था वर्ष 2000 से शासन ने खत्म कर दी। वहीं नियुक्त शिक्षकों को विनियमित कर दिया। बावजूद इसके माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति का सिलसिला प्रबंधतंत्र व जिम्मेदार विभाग के अधिकारियों के गठजोड़ से जारी रहा। नौकरी के बाद लोग कोर्ट जाकर वेतन का आदेश पारित करा लेते थे। इसके आदेश पर जिला विद्यालय निरीक्षक को वेतन देना पड़ता था।