सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि किसी कर्मचारी को अपनी पसंद के अनुसार पोस्टिंग या स्थानांतरण का दावा करने का निहित या मौलिक अधिकार नहीं है।
उक्त निर्णय में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने स्थानांतरण और पोस्टिंग से संबंधित निम्नलिखित सिद्धांतों को संक्षेप में उद्घृत किया:-
- कर्मचारियों का स्थानांतरण सेवा की अत्यावश्यकताओं द्वारा नियंत्रित होता है और किसी कर्मचारी को अपनी पसंद के अनुसार पोस्टिंग का दावा करने का मौलिक अधिकार नहीं होता है।
- पोस्टिंग और स्थानान्तरण के संबंध में प्रशासनिक निर्देश और कार्यकारी स्थानांतरण या पोस्टिंग के लिए एक अपरिहार्य अधिकार प्रदान नहीं करते हैं।
- पत्नियों की पोस्टिंग को प्राथमिकता देने वाली नीतियां एक ही स्टेशन पर होनी चाहिए।
- सिविल सेवा अधिकारियों के लिए भर्ती और अनुच्छेद 309 के परंतुक के तहत बनाए गए सेवा शर्तों के संबंध में मानदंड विधायिका द्वारा अधिनियमित कानूनों के रूप में निर्धारित किए जा सकते हैं।
- यदि अनुच्छेद 309 के तहत नियमों और कार्यकारी निर्देशों के बीच कोई विरोध है, तो नियम मान्य होंगे।
- संघ पर संविधान के अनुच्छेद 73 के तहत और राज्य पर अनुच्छेद 162 के तहत प्रदत्त शक्ति के संदर्भ में लिए गए नीतिगत निर्णय, विधायी अधिनियम के तहत या अनुच्छेद 309 के तहत नियमों के अनुसार बनाए गए भर्ती नियमों के अधीन होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं, जिसमें केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने अंतर-आयुक्त स्थानान्तरण को वापस लेने को खारिज कर दिया था।
भले ही सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन उसने विभाग से पति-पत्नी की पोस्टिंग और विकलांगों के अधिकारों के संबंध में अपनी नीति पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया।
शीर्षक: एसके नौशाद रहमान और अन्य बनाम भारत संघ
केस नंबर: सिविल अपील नंबर: 2022 का 1243Read/Download Judgement