भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अखिल भारतीय सर्वेक्षण में पता चला है कि ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों की बजाए महिलाएं अधिक बेरोजगार पाई गई हैं। पोस्ट ग्रेजुएट महिलाओं की बेरोजगारी दर 36.8 फीसदी रही है, जबकि पुरुषों की 13.3 फीसदी है…
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देश में भले ही अब नई शिक्षा नीति बन गई है, लेकिन अभी तक चली आ रही शैक्षणिक व्यवस्था में युवाओं को न तो गांधीवादी अध्ययन में रुचि है और न ही धार्मिक पढ़ाई-लिखाई की तरफ कोई रुझान है। इसके विपरित युवाओं को विदेशी भाषा की पढ़ाई सबसे ज्यादा आकर्षित कर रही है। रक्षा क्षेत्र, अपराध विज्ञान और फॉरेंसिक साइंस की पढ़ाई में भी युवाओं का मन नहीं लग रहा।
गांधीवादी अध्ययन में पीएचडी धारकों की संख्या देखें तो वह 61 है। रक्षा अध्ययन में 65 और अपराध विज्ञान की उच्च शिक्षा के लिए 44 युवा आगे आए हैं। विदेशी भाषा में 3694 युवाओं ने पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। धार्मिक अध्ययन में 576 पीएचडी रजिस्ट्रेशन हुए हैं।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अखिल भारतीय सर्वेक्षण में पता चला है कि ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों की बजाए महिलाएं अधिक बेरोजगार पाई गई हैं। पोस्ट ग्रेजुएट महिलाओं की बेरोजगारी दर 36.8 फीसदी रही है, जबकि पुरुषों की 13.3 फीसदी है।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, 2018-19 के तहत पोस्ट ग्रेजुएशन के सामाजिक विज्ञान में 715743 युवाओं ने दाखिला लिया है। इसके करीब कई दूसरे कोर्स भी पहुंच रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों की बजाए महिलाएं अधिक बेरोजगार मिली हैं। पोस्ट ग्रुेजएट महिलाओं की बेरोजगारी दर 36.8 फीसदी रही है, जबकि पुरुषों की 13.3 फीसदी है। शहरी क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की बेरोजगारी दर अधिक है। पोस्ट ग्रेजुएट महिलाओं की बेरोजगारी दर 19.5 और पुरुषों की 8.6 फीसदी है।
कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय देशभर में 2016 से 2020 तक 12 हजार करोड़ रुपये खर्च कर अल्पकालिक प्रशिक्षण एवं पूर्व सीखने को मान्यता, कार्यक्रम चला रहा है। इस योजना को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) का नाम दिया गया है। इसमें अभ्यर्थी के निवास स्थान के जिले अथवा बाहर नियोजन के आधार पर दो व तीन माह के प्रशिक्षण के लिए महिलाओं सहित विशेष समूहों को प्रतिमाह प्रति प्रशिक्षण 1500 रुपये की मदद दी जाती है।
स्कृति, धर्म व दर्शन में रुचि घटने का मतलब नकलची बंदर वाली स्थिति
जेएनयू में समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर आनंद कुमार बताते हैं कि मौजूदा शिक्षा नीति में संस्कृति, धर्म और दर्शन का कोई स्थान नहीं है। इन विषयों में युवाओं की रुचि घट रही है। ये मानव जीवन की जड़े हैं, जब कोई युवा इन्हें नहीं जानेगा तो वह बहुत सी बातों से अनभिज्ञ रहेगा। उनकी हालत नकलची बंदर वाली होगी।
पोस्ट ग्रेजुएशन तक जाने से पहले युवाओं को सभी विषयों का थोड़ा-थोड़ा ज्ञान दिया जाना चाहिए। उन्हें शेक्सपियर के बारे में भी जानना है, तुलसीदास और आइंस्टीन की जानकारी भी होनी चाहिए। रवींद्र नाथ टैगोर और गांधी भी जरुरी हैं।
अमेरिका, जिसके पीछे आज की युवा पीढ़ी भागती है, वहां युवाओं को सोशल सर्विस और आर्मी ट्रेनिंग भी देते हैं। हमारे यहां तो ऐसा कुछ नहीं है। आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान आपको सालाना एक करोड़ रुपये का पैकेज दे देंगे, इसमें कोई शक नहीं है।
सवाल यह है कि वहां काम करने वाला व्यक्ति एकांगी व्यक्ति बन रहा है। उसे जाति और धर्म की रेखा की जानकारी नहीं है। आनंद कुमार के मुताबिक, शिक्षा नीति ऐसी हो, जिसमें भारतीयता और मानवता के बीच संतुलन हो। युवा इन विषयों को पढ़ें, इसके लिए सरकार को रोजगार का परिदृश्य बदलना होगा। बाजारवाद वाली शिक्षा से परे हटकर सोचना होगा।
