पदोन्‍नति में मुहर बन्‍द लिफाफे की प्रक्रियाभारत संघ बनाम के.बी. जानकी रमन (ए.आई.आर. 1991 एस.सी. 2010) के मामले में, विभागीय प्रोन्‍नति समिति द्वारा प्रोन्‍नति के मामलों में “मुहरबन्‍द लिफाफा” की प्रक्रिया अपनाने के विषय में, उच्‍चतम न्‍यायालय के समक्ष निम्‍नलिखित प्रश्‍न उत्‍पन्‍न हुये थे:- 

(1) सरकारी सेवक के विरुद्ध किस तिथि से अनुशासनिक/आपराधिक कार्यवाही लम्‍बित होनी मानी जाएगी 

(2) जब अनुशासनिक/आपराधिक कार्यवाही में सेवक को दोषी पाया जाये तथा पदच्‍युति से भिन्‍न कोई दण्‍ड दिया जाये तब उसकी प्रोन्‍नति पर किस प्रकार विचार किया जायेगा 

(3) जब सेवक को, पूर्णत: या अंशत:, आरोप मुक्‍त कर दिया जाये तो वह किन लाभों को, किस तिथि से, पाने का हकदार होगा 

प्रश्‍न-1 पर निर्णय- सरकारी सेवक की प्रोन्‍नति पर विचार करते मुहरबन्‍द लिफाफा की प्रक्रिया सिर्फ तभी अपनायी जायेगी जब वह सेवक निलम्‍बित हो अथवा उसे आरोप-पत्र निर्गत कर दिया गया हो। 

प्रश्‍न-2 पर निर्णय- अनुशासनिक कार्यवाही में दुराचरण के लिए दोषी पाये गये सरकारी सेवक का मामला, कलंक रहित सरकारी सेवक के मामले के समान व्‍यवहृत नहीं किया जाएगा, अपितु दोषसिद्ध सेवक का मामला भिन्‍न ढंग से व्‍यवहृत किया जाएगा। 

प्रश्‍न-3 पर निर्णय- जब आरोपित सेवक को, पूर्णत:, दोष मुक्‍त कर दिया गया हो, उस पर कोई कलंक न लगा हो, यहां तक कि उसे सेंसर का भी दण्‍ड न दिया गया हो, तब उसे उसी तिथि से प्रोन्‍नति, एवं उच्‍च पद का वेतनमान आदि, लाभ दिया जाएगा जिस तिथि को, यदि अनुशासनिक आपराधिक कार्यवाही लम्‍बित न रही होती तो, सामान्‍य दशा में उसे पदोन्‍नत किया गया होता। परन्‍तु कुछ मामले ऐसे भी हो सकते हैं जिनमें सक्षम प्राधिकारी को यह विनिश्‍चय करना पड़ सकता है कि क्‍या वह सेवक बीच की अवधि का वेतन पाने योग्‍य है यदि हाँ, तो किस सीमा तक 

ऐसा मामला भी हो सकता है जहां आरोपित सेवक के कृत्‍यों के परिणामस्‍वरूप साक्ष्‍य की अनुपलब्‍धता के कारण अथवा संदेह लाभ के कारण उसे दोषमुक्‍त किया गया हो अथवा उस सेवक ने जानबूझकर अनुशासनिक/आपराधिक कार्रवाई को विलम्‍बित किया हो। इन परिस्‍थितियों पर विचार करके सक्षम प्राधिकारी द्वारा बीच की अवधि का वेतन देने के विषय में विनिश्‍चय किया जाना चाहिए। 

मुहरबन्‍द लिफाफा की प्रक्रिया अपनाने के संदभर् में एक महत्‍वपूर्ण विचारणीय प्रश्‍न यह है कि आरोप-पत्र कब “निर्गत” हुआ माना जाएगा इसका विनिश्‍चय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिल्‍ली विकास प्राधिकरण बनाम एच.सी. खुराना (1993 (2) एस.एल.आर. 509 (उच्‍चतम न्‍यायालय)। 

उच्‍चतम न्‍यायालय (दिल्‍ली विकास प्राधिकरण बनाम एच. सी. खुराना, 1993 (2) एस.एल.आर. 509) ने अवधारणा किया कि अनुशासनिक कार्यवाही आरम्‍भ करने का निर्णय लेने के संदभर् में आरोप-पत्र निर्गत करने का तात्‍पर्य यह है कि आरोप-पत्र विरचित करके इसे आरोपित सेवक के पास भेजने की आवश्‍यक कार्रवाई कर ली गयी है। आरोप-पत्र “निर्गत” होने में आरोप-पत्र का तामिल होना सम्‍मिलित नहीं है। 

भारत संघ बनाम केवल कुमार (1993 (2) एस.एल.आर. 554) के मामले में यद्यपि आरोप-पत्र निर्गत नहीं हुआ था फिर भी विभागीय प्रोन्‍नति समिति द्वारा अपनायी गयी मुहरबन्‍द लिफाफा की प्रक्रिया को उचित माना गया। उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि जब सक्षम प्राधिकारी किसी सरकारी सेवक के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही आरम्‍भ करने का निर्णय लेता है अथवा उसके विरुद्ध अभियोजन संस्‍थित करने की कार्रवाई करता है तब उस सेवक को तब तक पदोन्‍नति नहीं दी जा सकती है जब तक कि वह दोषमुक्‍त न हो जाए, भले ही विभागीय प्रोन्‍नति समिति ने उस सेवक की प्रोन्‍नति की संस्‍तुति, अन्‍यथा उपयुक्‍त पाते हुए, किया हो। 

भारत संघ बनाम डा. श्रीमती सुधा सल्‍हन (जे.टी. 1998 (1) एस.सी. 622) के मामले में डा. सुधा की प्रोन्‍नति पर विचार करने हेतु दिनांक 8.3.89 को विभागीय प्रोन्‍नति समिति की बैठक हुई एवं उनका मामला मुहरबन्‍द लिफाफा में रख लिया गया। उसके उपरान्‍त दिनांक 16.4.91 को डा. सुधा को निलम्‍बित किया गया एवं दिनांक 8.5.91 को उन्‍हें आरोप-पत्र दिया गया। डा. सुधा ने केन्‍द्रीय प्रशासनिक अधिकरण में याचिका स्‍वीकार कर लिया, जिसके विरुद्ध भारत संघ ने उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील किया। उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि यह प्रकरण के.बी. जानकी रमन में दिए गए निर्णय से आच्‍छादित है। जिस तिथि को विभागीय प्रोन्‍नति समिति किसी व्‍यक्‍ति को उच्‍च पद पर प्रोन्‍नति करने के बारे में विचार करे, यदि उस तिथि को वह व्‍यक्‍ति न तो निलम्‍बित हो, न ही उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही आरम्‍भ की गयी हो, तो उसके मामले में मुहरबन्‍द लिफाफा की प्रक्रिया नहीं अपनायी जा सकती है। विभागीय प्रोन्‍नति समिति की संस्‍तुति को सिर्फ तभी मुहरबन्‍द लिफाफा में रखा जा सकता है जब प्रोन्‍नति के लिए उसके नाम पर विचार करने की तिथि को अनुशासनिक कार्यवाही प्रारम्‍भ की जा चुकी है या लम्‍बित हो। उच्‍चतम न्‍यायालय ने अधिकरण के निर्णय को उचित माना एवं भारत संघ की अपील खारिज कर दिया। 

बैंक आफ इंडिया बनाम देगाल सूर्यनारायण (बैंक आफ इंडिया बनाम देगाल सूर्यनारायण, (1999) 5 एस.सी.सी. 762) के मामले में श्री देगाल सूर्यनारायण (बैंक आफ इंडिया बनाम देगाल सूर्यनारायण, (1999) 5 एस.सी.सी. 762) की प्रोन्‍नति वर्ष 1981-82 में होनी थी किन्‍तु केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो द्वारा दुर्विनियोग के अभियोग का अन्‍वेषण कर रहे होने के आधार पर प्रोन्‍नत के लिए, उसके साक्षात्‍कार का परिणाम रोक लिया गया। 

उच्‍चतम न्‍यायालय (बैंक आफ इंडिया बनाम देगाल सूर्यनारायण, (1999) 5 एस.सी.सी. 762) ने कहा कि सन् 1986-87 में जब श्री देगाल सूर्य नारायण की प्रोन्‍नति होनी थी तब उसके विरुद्ध कोई विभागीय जांच लम्‍बित नहीं थी। सन् 1991 के अन्‍त में आरम्‍भ की गयी अनुशासनिक जांच के कारण सन् 1986-87 में देय प्रोन्‍नति के संबंध में मुहरबन्‍द लिफाफा की प्रक्रिया नहीं अपनायी जा सकती थी और न ही प्रोन्‍नति रोकी जा सकती थी। उसे सन् 1986 से प्रोन्‍नति का लाभ देने से वंचित नहीं किया जा सकता है। 

उच्‍चतम न्‍यायालय (बैंक आफ इंडिया बनाम देगाल सूर्यनारायण, (1999) 5 एस.सी.सी. 762; आन्‍ध्र प्रदेश राज्‍य बनाम एन. राधाकिशन, (1998) 4 एस.सी.सी. 154) ने कहा है कि यदि विभागीय प्रोन्‍नति समिति ने किसी कार्मिक के प्रोन्‍नति के मामले पर विचार कर लिया हो किन्‍तु उसके विरुद्ध अनुशासनिक जाँच लम्‍बित होने के कारण समिति की संस्‍तुतियां मुहरबन्‍द लिफाफा में रख ली गयी हो जब उस अनुशासनिक जाँच में उसके पक्ष में निर्णय होने पर वह व्‍यक्‍ति समिति की संस्‍तुतियों का लाभ पाने का हकदार है, भले ही उस तिथि तक उसके विरुद्ध कोई अन्‍य अनुशासनिक जाँच लम्‍बित हो गयी हो। 

दिल्‍ली जल बोर्ड बनाम महिन्‍दर सिंह (2000)7 एस.सी.सी. 210) के मामले मे, उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा है कि यदि कोई व्‍यक्‍ति अर्ह हो एवं पात्रता क्षेत्र में आता हो तो विभागीय प्रोन्‍नति समिति द्वारा उसकी प्रोन्‍नति के मामले पर विचार किये जाने का उसे संविधान के अनुच्‍छेद-16 के अधीन मूल अधिकार प्राप्‍त होता है। मुहरबन्‍द लिफाफा की प्रक्रिया उसकी प्रोन्‍नति को लम्‍बित अनुशासनिक जाँच के परिणाम तक अस्‍थगित रखने की अनुमति देती है।

1987 (5) एस.एल.आर. 281; एम.बी. जोशी बनाम सतीश कुमार पांडे, 1992 (5) एस.एल.आर. 611)

27. किसी संवर्ग में कर्मचारियों की ज्‍येष्‍ठता नियमों के अनुरूप अवधारित की जाएगी यदि उन नियमों में ज्‍येष्‍ठता के बारे में उपबन्‍ध हो; अन्‍यथा डायरेक्‍ट रिक्रूट क्‍लास-2 इंजीनियिरंग आफिसर्स एसोशिएशन बनाम महाराष्‍ट्र राज्‍य (1990) 2 एस.सी.सी. 715 में प्रतिपादित सिद्धान्‍तों पर ज्‍येष्‍ठता अवधारित की जा सकती है। (भारत संघ बनाम ललिता एस. राव एवं अन्‍य, (2001) 5 एस.सी.सी. 384)

28. किसी कर्मचारी को संवर्ग अपनी ज्‍येष्‍ठता, अपनी नियुक्‍ति की तिथि को प्रवृत्‍त नियमों के अनुसार, अवधारित कराने का अधिकार प्राप्‍त होता है। (भारत संघ बनाम एम. रवि वर्मा, ए.आई.आर. 1972 एस.सी. 670; मेर्विन कांटिन्‍हो बनाम कस्‍टम कलेक्‍टर, ए.आई.आर. 1967 एस.सी. 52; डी.पी. शर्मा बनाम भारत संघ, ए.आई.आर. 1989 एस.सी. 1071 ; पी. मोहन रेड्डी बनाम ई. ए.ए. चार्ल्‍स, ए.आई.आर. 2001 एस.सी. 1210; निरंजन प्रसाद सिन्‍हा बनाम भारत संघ, (2001) 5 एस.सी.सी. 564) कर्मचारीगण की ज्‍येष्‍ठता, बार-बार, जब कभी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण का मानदंड परिवर्तित होवे, पुनर्निर्धारित नहीं की जाएगी।

29. ज्‍येष्‍ठता में मनमाना परिवर्तन करने से संविधान के अनुच्‍छेद 16 एवं सरकारी सेवक के सिविल अधिकार का अतिक्रमण होता है। (एस.के.घोष बनाम भारत संघ, 1968 एस.एल.आर. 741)

30. यदि किसी सेवा-संवर्ग में, कोटा के आधार पर भर्ती के दो स्रोत हों तो कार्मिकों को पारस्‍परिक ज्‍येष्‍ठता का निर्धारण कोटा के अनुरूप किया जायेगा। (सोनल बनाम कर्नाटक राज्‍य, ए.आई.आर. 1987 एस.सी. 2359)

31. उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि भर्ती बोर्ड द्वारा तैयार किया गया मेरिटक्रम बनाये रखना चाहिए तथा चयनित अभ्‍यर्थियों की पारस्‍परिक ज्‍येष्‍ठता उसी के अनुसार बनायी रखी जानी चाहिए। अत: पहले प्रशिक्षण प्राप्‍त कर लेने मात्र से चयन सूची में नीचे अवस्‍थित अभ्‍यर्थी, मेरिटक्रम में ऊपर अवस्‍थित अभ्‍यर्थियों से ज्‍येष्‍ठ नहीं होंगे।

अत: यह विधि सुप्रतिष्‍िठत है कि आयोग अथवा चयन समिति द्वारा जिस मेरिटक्रम में चयनित अभ्‍यर्थियों की चयन सूची तैयार की गयी है उसी क्रमानुसार उन अभ्‍यर्थियों की पारस्‍परिक ज्‍येष्‍ठता अवधारित की जाएगी।

32. देवेन्‍द्र प्रसाद शर्मा बनाम मिजोरम राज्‍य (1997) 4 एस.सी.सी. 422) के मामले में तथ्‍य इस प्रकार थे कि अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्‍नति हेतु विचार के लिए विभागीय प्रोन्‍नति समिति की बैठक दिनांक 6.10.88 को हुई थी। जिसमें श्री शर्मा को अनुपयुक्‍त पाया गया था, उससे कनिष्‍ठ अधिकारियों को पदोन्‍नति के लिए उपयुक्‍त पाया गया एवं उन्‍हें दिनांक 20.10.88 को अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्‍नत कर दिया गया। उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि यदि श्री शर्मा किसी पश्‍चातवर्ती चयन में पदोन्‍नति के लिए उपयुक्‍त पाए जाएं तो भी वह उन अधिकारियों से ज्‍येष्‍ठ नहीं हो सकते जिन्‍हें पूर्ववर्ती चयन में उपयुक्‍त पाने के उपरान्‍त प्रोन्‍नत किया जा चुका है। उच्‍च पद पर पदोन्‍नत होने के उपरान्‍त निचले पद की ज्‍येष्‍ठता महत्‍वहीन हो जाती है।

33. राम गनेश त्रिपाठी बनाम उत्‍तर प्रदेश राज्‍य (1997) 1 एस.सी.सी. 621) में उच्‍चतम न्‍यायालय ने उत्‍तर प्रदेश पालिका (केन्‍द्रीयकृत) सेवा नियमावली, 1966 के संगत नियमों के संदभर् में अवधारणा किया है कि ऐसे तदर्थ कर्मचारियों को, जिन्‍हें लोक सेवा आयोग से चयनित अभ्‍यर्थियों की नियुक्‍ति के उपरान्‍त विनियमित किया जाए, नियमित ढंग से नियुक्‍त व्‍यक्‍तियों से ज्‍येष्‍ठ नहीं किया जा सकता है। तदर्थ कर्मचारियों की ज्‍येष्‍ठता उनके विनियमितीकरण की तिथि से अवधारित की जाएगी।

तदर्थ नियुक्‍ति नियमानुसार की गयी नियुक्‍ति नहीं होती है अत: ऐसी नियुक्‍ति के आधार पर की गयी अस्‍थायी सेवा को ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं किया जा सकता है। (वी. श्रीनिवास रेड्डी बनाम आन्‍ध्र प्रदेश राज्‍य, 1994 (5) एस.एल.आर. 715)

उच्‍चतम न्‍यायालय (बी.पी. श्रीवास्‍तव बनाम मध्‍य प्रदेश राज्‍य,1996 (1) एस.एल.आर. 819) ने कहा कि सीधी भर्ती द्वारा नियुक्‍त किए गए व्‍यक्‍ति, तदर्थ रूप से प्रोन्‍नत किए गए व्‍यक्‍तियों से, ज्‍येष्‍ठ होंगे।

34. भारतीय खाद्य निगम बनाम थानेश्‍वर कालिता एवं अन्‍य (1995 (2) एस.एल.आर. 425 (उच्‍चतम न्‍यायालय) में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा है कि यदि नियुक्‍तियां नियमानुसार की गयी हों, भले ही आरम्‍भ में तदर्थ आधार पर की गयी हो, एवं लम्‍बी अवधि तक जारी रखी गयी हों तो उनकी सेवा का विनियमितीकरण करने पर अस्‍थायी सेवा की सम्‍पूर्ण अवधि, ज्‍येष्‍ठता के लिए आगणित की जाएगी। यदि विहित कोटा से अधिक नियुक्‍तियां की गयी हों तब अस्‍थायी/स्‍थानापन्‍नता की अवधि को ज्‍येष्‍ठता के लिए आगणित नहीं किया जाएगा तथा जो व्‍यक्‍ति विहित कोटा से अधिक संख्‍या में नियुक्‍त किये गये हैं वे ज्‍येष्‍ठता के लिए, सम्‍पूर्ण सेवा अवधि की गणना कराने के हकदार नहीं होंगे।

35. केशव देव बनाम उत्‍तर प्रदेश राज्‍य (जे.टी. 1998(7) एस.सी. 216) के मामले में श्री केशव देव एवं अन्‍य लोक निर्माण विभाग में अवर अभियन्‍ता के पद पर नियुक्‍त किये गये थे। दिनांक 30.5.79 को उन्‍हें तदर्थ आधार पर, प्रोन्‍नति के लिए विहित कोटा के अन्‍दर, सहायक अभियन्‍ता के पद पर प्रोन्‍नत किया गया था। विभागीय प्रोन्‍नति समिति द्वारा चयन कराने के उपरान्‍त उनकी उक्‍त चर्चित पदोन्‍नति की गयी थी। आयोग के माध्‍यम से चयनित अभ्‍यर्थियों को दिनांक 9.8.79 को सीधे सहायक अभियन्‍तागण को वर्ष 1980 में आयोग के समक्ष साक्षात्‍कार हेतु बुलाया गया था किन्‍तु केशव देव को नहीं बुलाया गया। जब वर्ष 1984 में साक्षात्‍कार हुआ तब उन्‍हें बुलाया गया एवं आयोग ने उनकी प्रोन्‍नति को अनुमोदित करके उन्‍हें चयनित कर लिया। तत्‍पश्‍चात् उन्‍हें सहायक अभियन्‍ता के रूप में स्‍थायी कर दिया गया। ऐसे परिस्‍थिति में उच्‍चतम न्‍यायालय ने इन प्रोन्‍नत सहायक अभियन्‍तागण को उक्‍त चर्चित प्रोन्‍नतियों की आरम्‍भिक तिथि से अर्थात् निरन्‍तर स्‍थानापन्‍नता की अवधि को जोड़ते हुए ज्‍येष्‍ठता अवधारण को उचित ठहराया।

अत: यदि पदोन्‍नति, विहित कोटा के अन्‍दर अन्‍तरिम व्‍यवस्‍था के लिए या तदर्थ रूप से, नियमानुसार चयन के उपरान्‍त की गयी हो एवं उसके पश्‍चात उसे आयोग द्वारा अनुमोदित कर दिया गया हो तो उस व्‍यक्‍ति की ज्‍येष्‍ठता उसकी तदर्थ प्रोन्‍नति की तिथि से आगणित की जाएगी, अर्थात् निरन्‍तर स्‍थानापन्‍न की अवधि को भी जोड़ा जाएगा, जब तक कि नियमों में अन्‍यथा व्‍यवस्‍था न हो।

36. एल. चन्‍द्र किशोर सिंह बनाम मणिपुर राज्‍य (1999) 8 एस.सी.सी.287) में प्रोन्‍नति एवं सीधी भर्ती से नियुक्‍त पुलिस अधिकारीगण की ज्‍येष्‍ठता का विवाद था, जिसके संदभर् में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि स्‍थानापन्‍न या परिवीक्षा पर की गयी नियुक्‍तियों को संपुष्‍ट कर देने पर निरन्‍तर स्‍थानापन्‍न अवधि की सेवा की, ज्‍येष्‍ठता निर्धारण करते समय, उपेक्षा नहीं की जा सकती है, जब तक कि सेवा नियमों में इसके प्रतिकूल उपबन्‍ध न हों। जहां विहित प्रक्रिया का अनुसरण किये बगैर प्रथम नियुक्‍ति कर ली गयी हो एवं बाद में ऐसी नियुक्‍ति को अनुमोदित कर दिया जाए, अथवा संपुष्‍ट कर दिया जाए, तब सम्‍पूर्ण सेवा अवधि को ज्‍येष्‍ठता निर्धारण करते समय आगणित किया जाएगा।

37.सूरज प्रकाश गुप्‍ता बनाम जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य (जे.टी. 2000 (5) एस.सी. 413) में उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दी गयी नवीनतम निर्णयजविधि से यह स्‍पष्‍ट है कि तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत सेवकों की नियमित प्रोन्‍नति होने पर, सीधी भर्ती से नियुक्‍त किये गये सेवकों के साथ, ज्‍येष्‍ठता निर्धारण निम्‍नलिखित ढंग से किया जाएगा:-

(1) जब प्रोन्‍नत कोटा के सापेक्ष तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत सेवकों की लोक सेवा आयोग के माध्‍यम से नियमित प्रोन्‍नति कर दी जाए अथवा विभागीय चयन समित के माध्‍यम से उनकी तदर्थ प्रोन्‍नति को विनियमित कर दिया जाए तब ऐसी नियमित प्रोन्‍नति को उस पूर्ववर्ती तिथि से जोड़ा जा सकता है जिस तिथि को प्रोन्‍नत कोटा में रिक्‍ति हुई थी। इस प्रकार प्रोन्‍नत सेवकों की ज्‍येष्‍ठता उनकी नियमित प्रोन्‍नति की उक्‍त चर्चित पूर्ववर्ती तिथि से आगणित की जाएगी। सीधी भर्ती से नियुक्‍त सेवकों की ज्‍येष्‍ठता उनकी नियमित अर्थात् अधिष्‍ठायी नियुक्‍ति की तिथि से आगणित की जाएगी।

(2) जब प्रोन्‍नत कोटा से अधिक सेवकों को तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत किया गया हो तब प्रोन्‍नत कोटा में उनके लिए हुई पश्‍चातवर्ती रिक्‍ति के सापेक्ष उनका विनियमितीकरण किया जाएगा। प्रोन्‍नत कोटा में जिस तिथि को रिक्‍ति हुई हो उससे पूर्व की सेवा अवधि जोड़ी नहीं जाएगी अर्थात ज्‍येष्‍ठता के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

(3) यद्यपि प्रोन्‍नत कोटा के सापेक्ष तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नति की गयी हो किन्‍तु वह सेवक प्रोन्‍नति के लिए अर्ह ही न रहा हो तब प्रोन्‍नति की ऐसी सेवा अवधि भी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

(4) तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत सेवक जितनी अवधि तक नियमित प्रोन्‍नति के लिए उपयुक्‍त न पाया गया हो वह सेवा अवधि भी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

(5) सीधी भर्ती के कोटा के सापेक्ष प्रोन्‍नत सेवक की नियमित सेवा भी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

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