कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि स्कूल रजिस्टर में दर्ज की गई प्रविष्टियों पर विश्वास नहीं किया जा सकता, जिसमें बच्चे की जन्मतिथि दर्शाई गई और यदि स्कूल हेडमास्टर से गवाह के रूप में जांच करवाकर विवरण साबित कर दिया जाए तो यह स्वीकार्य साक्ष्य है जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार और जस्टिस सी एम जोशी की खंडपीठ ने आरोपी मणिकांत उर्फ पुल्ली की अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(i)(n), 506 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 6 के साथ धारा 5(j)(ii)(l) के तहत अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
दोषसिद्धि आदेश को चुनौती देने वाली अपनी अपील में अभियुक्त द्वारा उठाए गए तर्कों में से यह है कि इस तथ्य के बावजूद कि अभियोजन पक्ष ने एडमिशन रजिस्टर का अंश प्रस्तुत किया। इसे साबित करने के लिए स्कूल के प्रिंसिपल से पूछताछ की, यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन पक्ष घटना के पहले दिन लड़की की उम्र 14 वर्ष साबित करने में सक्षम था।
उन्होंने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने एडमिशन रजिस्टर का मात्र अंश प्रस्तुत किया, जिसे प्रिंसिपल ने लिखा ही नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा एडमिशन रजिस्टर के लेखक से पूछताछ की जानी चाहिए थी।