केंद्र और राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट से प्रोमोशन में आरक्षण के मानदंडों के बारे में भ्रम के कारण कई नियुक्तियां रुकी हुई हैं।

प्रोमोशन में आरक्षण से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट नेफैसला सुनाया। केंद्र और राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट से प्रोमोशन में आरक्षण के मानदंडों के बारे में भ्रम को दूर करने का आग्रह करते हुए कहा था कि अस्पष्टता के कारण कई नियुक्तियां रुकी हुई हैं।

जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने जरनैल सिंह बनाम लच्छमी नारायण गुप्ता मामले में 2018 में 5 जजों की बेंच द्वारा दिए गए संदर्भ के बाद मामले की सुनवाई के बाद पीठ ने निम्नलिखित घोषणाएं कीं: 1. प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए न्यायालय कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकता। 2. राज्य प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता के संबंध में मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य है। 3. आरक्षण के लिए मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए कैडर एक इकाई के तौर पर होना चाहिए।

संग्रह पूरे वर्ग/वर्ग/समूह के संबंध में नहीं हो सकता, लेकिन यह उस पद के ग्रेड/श्रेणी से संबंधित होना चाहिए जिससे प्रोमोशन मांगा गया है। कैडर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की इकाई होना चाहिए। यदि डेटा का संग्रह पूरी सेवा के लिए किया जाएगा तो ये अर्थहीन होगा। Also Read – जजों पर काम का भारी बोझ, अदालत की छुट्टियों के खिलाफ आलोचना अनुचित : सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल 4. 2006 के नागराज फैसले का संभावित प्रभाव होगा। 5. बीके पवित्रा (द्वितीय) में समूहों के आधार पर आंकड़ों के संग्रह को मंज़ूरी देने का निष्कर्ष, न कि कैडर के आधार पर, जरनैल सिंह में फैसले के विपरीत है।

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