सुप्रीम कोर्ट ने यूपीएससी बनाम अग्नेश कुमार मामले में हाई कोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया जिसके तहत सिविल सर्विसेज परीक्षा में प्राप्त अंक को सार्वजनिक करने को कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिविल सर्विसेज परीक्षा में प्राप्त अंक के विवरण को मेकैनिकली जारी करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। कुछ उम्मीदवार जो कि सिविल सर्विसेज परीक्षा (प्रेलिम्स) में पास नहीं हुए थे उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को सिविल सर्विसेज परीक्षा (प्रेलिम्स) परीक्षा 2010 में प्राप्त अंक को सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने हर विषय में हर उम्मीदवार के कट ऑफ मार्क्स के रूप में स्केलिंग के तरीके, मॉडल उत्तर और पूर्ण परिणाम की जानकारी चाही थी। हाई कोर्ट ने उनकी अपील मान ली और आयोग को 15 दिनों के भीतर यह सूचना देने को कहा। आयोग ने हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट में आयोग ने कहा कि इस सूचना के अन्य सार्वजनिक हितों से टकराने की आशंका है जिसमें सरकार के सक्षम संचालन, वित्तीय संसाधनों के अधिकतम प्रयोग और कुछ संवेदनशील सूचनाओं को गोपनीयता को बचाए रखना शामिल है और सूचना नहीं देने के अधिकार को इस संदर्भ में लागू किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एके गोएल और यूयू ललित की पीठ ने आयोग की उपरोक्त दलील पर गौर करने के बाद कहा, “…हाई कोर्ट ने उपरोक्त मानदंडों को लागू नहीं किया”।
पीठ ने पारदर्शिता और उत्तरदायित्व और वित्तीय संसाधनों के अधिकतम प्रयोग और संवेदनशील सूचनाओं की गोपनीयता बनाए रखने के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत को देखते हुए कहा कि जो सूचनाएं मांगी गई हैं उन्हें मेकैनिकली नहीं दिया जा सकता। पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए कहा, “अन्य अकादमिक निकायों की परीक्षाओं की बात अलग है। कच्चे अंकों के बारे में बताने से, जैसा कि यूपीएससी ने कहा है, मुश्किलें खड़ी होंगी और यह सार्वजनिक हित में नहीं होगा”।
हालांकि पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर नियम और परिपाटी के तहत ऐसा किया जाता है, तो निश्चित रूप से इस तरह के नियम और इस तरह की परिपाटी को लागू किया जा सकता है