विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) जल्द ही केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षण के लिए पीएचडी अनिवार्यता के नियमों में बदलाव कर सकता है। खबरों के मुताबिक इसके लिए आयोग की ओर से प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस और असोसिएट प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस जैसे विशेष पदों का निर्माण किया जा रहा है। यूजीसी चेयरपर्सन ने बताया कारण
इस मामले पर यूजीसी के चेयरपर्सन प्रोफेसर एम जगदीश कुमार का कहना है कि ऐसे कई विशेषज्ञ हैं जो पढ़ाने के इच्छुक हैं। ऐसे कई लोग हो सकता हैं जिनके पास जमीनी स्तर पर कार्य का अधिक अनुभव हो, कोई बहुत बड़ा नृतक हो सकता है तो कोई अच्छा गायक हो सकता है। लेकिन हम वर्तमान नियमों के तहत इन सब की नियुक्ति नहीं कर सकते। जगदीश कुमार ने बताया कि इन्हीं सब कारणों से विशेष पदों का सृजन किया जा रहा है।पीएचडी की अनिवार्यता जरूरी नहीं
खबरों के अनुसार अब पीएचडी की अनिवार्यता जरूरी नहीं होगी। विशेषज्ञ को संबंधित क्षेत्र में बढ़िया अनुभव होना चाहिए। सृजित किए जा रहे नए पद स्थायी और अस्थायी दोनों ही हो सकते हैं। इसका फैसला विशेषज्ञ और संस्थान की जरूरत पर निर्भर करेगा। ऐसे विशेषज्ञ जिन्होंने अपनी 60 साल की आयु पूरी कर ली है, वह भी 65 वर्ष की आयु तक फुल-टाईम या पार्ट-टाईम फैकल्टी के रूप में अपनी सेवाएं दे सकेंगे। समिति के गठन का फैसला
गुरुवार को केंद्रीय विश्वविद्यालयों के वीसी ने जगदीश कुमार के साथ हुई बैठक में शिक्षक और प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति के नियमों में संशोधन के लिए एक समिति के गठन का फैसला किया है। यह बैठक राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन समेत कई अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी। 10 हजार पद खाली
यूजीसी शिक्षकों के पदों पर जल्द से जल्द नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए एक केंद्रीकृत पोर्टल का निर्माण करने की भी योजना बना रहा है। शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर, 2021 तक केंद्र द्वारा वित्त पोषित संस्थानों में 10 हजार शिक्षकों के पद खाली थे।