निजी स्कूल से मोह भंग, सरकारी स्कूल चले बच्चे

कोरोना महामारी (Corona epidemic) की चक्की में पिसने से जब कोई नहीं बच पाया, तो शिक्षा जगत भी कैसे अछूता रहता? कोरोना काल में शिक्षा जगत (Education Sector) में बदलाव और टकराव का जो ट्रेंड देखने को मिल रहा है, वह पहले कभी नहीं देखा गया. यह ट्रेंड केवल मध्यप्रदेश में ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, यूपी, बिहार से लेकर बंगाल, तमिलनाडु तक सब जगह नजर आ रहा है. लोगों का अब निजी स्कूलों (Private Schools)से मोह भंग हो रहा है और उन्हें सरकारी स्कूल रास आ रहे हैं. वजह साफ है कि कोरोना काल में नौकरी जाने, वेतन घटने, धंधा मंदा होने से घरों की अर्थव्यवस्था बिगड़ने से जूझ रहे अभिभावकों के सामने संकट है कि वह निजी स्कूलों की भारी भरकम फीस कैसे चुकाएं, लिहाजा वह इनसे किनारा कर अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला करा रहे हैं. देश के कई राज्यों के सरकारी स्कूलों में तेजी से बढ़ते दाखिलों के आंकड़े यही तस्वीर पेश करते हैं.

वहीं दूसरी ओर निजी स्कूलों के संचालक (Private school operators) आर्थिक तंगी की दुहाई देकर फीस वसूलने को लेकर यह तर्क देते हुए आंदोलन के रास्ते सरकार से टकराव की मुद्रा में हैं कि केन्द्र की गाइडलाइंस के अनुसार उन्हें स्कूल खोलने की अनुमति मिलनी चाहिए. अभी ऑनलाइन शिक्षा तो दे रहे हैं, अगर फीस नहीं मिलेगी, तो शिक्षकों को वेतन कहां से देंगे? पानी, बिजली, सफाई, संपत्तिकर, रखरखाव जैसे दूसरे खर्चे कहां से पूरा करेंगे? मप्र, गुजरात पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में तो निजी स्कूलों के संचालकों के आंदोलन शुरू भी हो चुके हैं.

बता दें कि केन्द्र सरकार ने कोरोना गाइडलाइंस (Corona Guidelines) का पालन करने की शर्त पर 15 अक्टूबर से सभी स्कूल कालेज, कोचिंग खोलने की इजाजत दी थी. साथ ही कोरोना संक्रमण की स्थितियों को देखते हुए इस बारे में राज्य सरकारों को फैसला करने के अधिकार दिए थे. इससे पूर्व कक्षा 9 वीं से कक्षा 12 वीं तक स्कूल आंशिक रूप से पहले ही खोले जा चुके हैं. पहली से आठवीं तक कक्षाओं के संचालन पर बंदिश है और उनके स्कूल खोलने की अनुमति नहीं है. मप्र समेत अधिकांश राज्यों की सरकारों ने निजी स्कूलों को छात्रों से केवल ट्यूशन फीस (Tuition Fees) लेने के आदेश दिए हैं. साथ ही कहा है कि 2020-21 के लिए आगामी आदेश तक स्कूल फीस में बढ़ोतरी न करें. फीस न जमा करने के कारण किसी छात्र-छात्रा का नाम स्कूल से नहीं काटा जाएगा.

क्यों नाराज हैं अभिभावकसरकार के यह फरमान निजी स्कूलों (Private Schools) को कांटे की तरह चुभने लगे. इन स्कूल संचालकों ने यह रास्ता निकाला कि दूसरे तमाम खर्चों को ट्यूशन फीस में जोड़ दिया. इसके बाद अभिभावकों पर फीस भरने का दबाव बनाया जाने लगा. ट्यूशन फीस में भारी भरकम वृदिध से हकबकाए अभिभावक विरोध पर उतर आए. इंदौर के चमेली देवी स्कूल के गेट पर पिछले दिनों पालकों का प्रदर्शन इसका उदाहरण है, जहां पालकों ने हंगामा करते हुए कहा कि कोरोना काल में जब स्कूल पूरी तरह बंद हैं, स्कूल के खर्चों में भी 80 फीसदी तक की कमी हुई है, तो ऑनलाइन पढ़ाई के बहाने ट्यूशन फीस के नाम पर पूरी फीस वसूलना कहां तक जायज है.

क्यों दें पूरे साल की मोटी फीस
दरअसल आनलाइन क्लासेस के बहाने येन-केन प्रकारेण ट्यूशन फीस बढ़ाकर पूरी फीस वसूलने से अभिभावकों(Parents) के मन में अस्वीकार्यता और नाराजगी का भाव है. इसीलिए जो अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने के लिए लालायित रहते थे, आज वह कोरोना काल से पैदा संकट से जूझते हुए दाखिला सरकारी स्कूलों में करा रहे हैं. दूसरा- लोगों को यह साफ लग रहा है कि कोरोना के दौर को खत्म होने में अभी वक्त लगेगा. स्कूलों में नियमित कक्षाएं लगना मुश्किल ही हैं, ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन क्लासेस लगेंगी. यह शिक्षा सत्र ऐसे ही चलने वाला है, तो निजी स्कूलों को पूरे साल की मोटी फीस क्यों दी जाए, इसलिए वह सरकारी स्कूलों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां कम खर्च में पढ़ाई हो जाएगी, बच्चे का साल भी खराब नहीं होगा. बच्चे पर नियमित रूप से स्कूल जाने की बंदिश या दबाव भी नहीं होगा.मप्र में दाखिले की तस्वीर
मप्र मे एमपी बोर्ड के करीब 45 हजार और भोपाल में 1800 निजी स्कूल हैं. मप्र स्कूल शिक्षा विभाग के पोर्टल के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते 30 सितंबर तक बीते साल से कुल 18 लाख कम विद्यार्थियों ने स्कूलों में प्रवेश लिया है . इस सत्र में 81 लाख विद्यार्थियों ने सरकारी और 43 लाख विद्यार्थियों ने निजी स्कूलों में दाखिला लिया है. शिक्षाविद् मानते हैं कि कोरोना महामारी के कारण खराब हुई आर्थिक स्थिति कम दाखिलों के पीछे एक बड़ी वजह है. छिंदवाड़ा, नीमच, उमरिया, धार, बैतूल, झाबुआ, सागर, रतलाम आदि जिलों में निजी के मुकाबले सरकारी स्कूलों में प्रवेश की संख्या ज्यादा है. बताया जाता है कि इन जिलों में 98 फीसदी तक नामांकन हुए. पहली से आठवीं कक्षा में निजी स्कूलों में करीब 33 लाख और सरकारी स्कूलों में करीब 59 लाख एडमीशन हुए, इसी प्रकार 9वीं से 12वीं कक्षा तक निजी स्कूलों में 10 लाख और सरकारी स्कूलों में करीब 20 लाख नामांकन हुए. भोपाल, इंदौर, ग्वालियर जैसे बड़े शहरो में नामांकन का प्रतिशत कम रहा. शिक्षाविद् गोपाल ताम्रकार मानते हैं कि निजी स्कूलों में फीस को लेकर समस्या आ रही है, इस कारण सरकारी स्कूलों को लोग प्राथमिकता दे रहे.

कई राज्यों के सरकारी स्कूलों में बढ़े प्रवेश
हरियाणाः इस सूबे में 2 लाख बच्चों ने निजी स्कूलों से नाता तोड़ते हुए सरकारी स्कूलों में दाखिले लिए. हरियाणा सरकार ने भी इन स्कूलों में आने वाले विद्यार्थियों को नियमों में कई छूट दी है.

चंडीगढ़ः पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी और केन्द्र शासित चंडीगढ़ में जुलाई तक पहली से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले 4985 विद्यार्थी निजी स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूलों में दाखिला ले चुके थे. शिक्षा विभाग का अनुमान है कि अक्टूबर तक यह संख्या 10 हजार के पार पहुंच सकती है. संख्या बढ़ने के पीछे वजह बताई जाती है कि लॉकडाउन की वजह से स्कूल बंद रहे, लेकिन निजी स्कूलों ने फीस कम करने की बजाय बढ़ा दी. नाराज पालकों ने अपने बच्चों को निजी स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में दाखिला दिला दिया.

पंजाबः यहां भी लॉकडाउन के दौरान लोगों का निजी स्कूलों की मनमानी के कारण उनसे मोह भंग हो रहा है. लोग अपने बच्चों को निजी स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूलों में भेज रहे हैं. शिक्षा मंत्री इंदर सिंगला ने खुद इसकी पुष्टि की और बताया कि लाकडाउन के बाद सरकारी स्कूलों में 1.65 लाख दाखिले हो चुके हैं. निजी स्कूलों से मोहभंग के पीछे पंजाब में लाकडाउन के दौरान कामकाज ठप्प होना, नौकरीपेशा लोगों की तनख्वाहों में कटौती होने के साथ ही निजी स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाना और अभिभावकों पर फीस जमा करने के लिए दबाव डालना प्रमुख वजह बताई जाती है. पंजाब में 91,175 सरकारी स्कूल हैं.

राजस्थानः राज्य में भी कोरोना से ऐसी तंगी आई, कि लोग निजी से हटाकर अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिला रहे हैं, क्योंकि वह निजी स्कूलों की फीस भरने में असमर्थ हैं. ऐसे में सरकारी स्कूलों का ग्राफ ऊपर चढ़ रहा है. दूसरी ओर फीस न आने की वजह से निजी स्कूलों ने अपना स्टाफ घटा दिया है या स्टाफ का वेतन 50 फीसदी तक कम कर दिया है.

गुजरातः इस सूबे के सभी शहरों में लोग निजी स्कूलों से किनारा करने लगे हैं. अकेले अहमदाबाद महानगर पालिका में चलने वाले 370 सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में 2106 छात्रों ने निजी स्कूल छोड़ कर प्रवेश लिया. हिन्दी माध्यम के स्कूलों में 300 से ज्यादा छात्र-छात्राओं ने प्रवेश लिया. महानगर पालिका के सभी स्कूलों में 20 हजार से अधिक बच्चों ने प्रवेश लिया.

तमिलनाडुः इस राज्य में हर साल निजी स्कूलों में प्रवेश के लिए भारी मारामारी मचती थी, लेकिन इस बार सरकारी स्कूलों में रिकार्ड एडमीशन हो रहे. यहां भी वजह और निजी स्कूलों से शिकायतें अन्य राज्यों जैसी है. नई बात यह है कि एडमीशन बढ़ने के साथ ही सरकारी स्कूलों में संसाधन और सुविधाएं जुटाने की मांग तेज हुई है. चेन्नई जैसे शहर में जहां अब तक अभिभावक अक्सर अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाने में कतराते रहे हैं तथा निजी स्कूल में प्रवेश को प्राथमिकता देते रहे हैं लेकिन कोरोना महामारी में यह मिथक टूटता नजर आ रहा है. मौजूदा समय में तमिलनाडु में 37,400 सरकारी स्कूल तथा 8,300 सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल हैं. इनमें करीब 66 लाख छात्र पढ़ रहे हैं. लेकिन इस साल सरकारी स्कूलों के प्रति अभिभावकों का जबरदस्त रुझान देखा गया है. बताया जाता है कि करीब 2.2 लाख बच्चों ने कक्षा छह, नवीं, दसवीं व ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश लिया है. सीबीएसई स्कूल में पढ़ रहे करीब 25 हजार बच्चों ने भी इस बार सरकारी स्कूलों में प्रवेश करा लिया है. बताया जाता है कि 31 अक्टूबर तक सीबीएसई स्कूलों के 50 हजार बच्चे सरकारी स्कूलों में दाखिला ले सकते हैं.

आंदोलन पर उतारू निजी स्कूल
मप्र, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, यूपी, तमिलनाडु समेत कई राज्यों में निजी स्कूल एसोसिएशन सरकार के विरोध में खड़े हो गए हैं. बीते 22 अक्टूबर को भोपाल में निजी स्कूल एसोसिएशन ने प्रदेशव्यापी आंदोलन की शुरूआत करते हुए शिवराज सिंह सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया. एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत सिंह का कहना है कि भोपाल जिले में अशासकीय विद्यालयों की स्थिति बहुत खराब है. स्कूलों में कार्यरत समस्त स्टाफ परेशान है. उन्हें वेतन नहीं दिया जा रहा है. निजी स्कूल संचालकों की मांग है कि जब मध्यप्रदेश में सब कुछ खुल गया है तो स्कूलों को भी गाइडलाइन का पालन करते हुए खोला जाना चाहिए. साथ ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम ( आरटीई) के तहत फीस की जल्द से जल्द पूर्ति की जानी चाहिए. निजी स्कूलों को पानी बिल, बिजली बिल, संपत्ति कर आदि सब कुछ देना पड़ रहा है, लेकिन फीस न आने से कई स्कूल बंद होने की कगार पर हैं. एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि अगर 15 दिन में उनकी मांग को पूरा नहीं किया गया तो पूरे मप्र के निजी स्कूल संचालक आमरण अनशन करने के लिए बाध्य होंगे.

उधर राजस्थान में फीस न मिलने के कारण निजी विद्यालय के संचालक धीरे-धीरे आनलाइन क्लासेस बंद कर रहे हैं. राज्य में 35 हजार निजी स्कूल हैं. इनके संचालकों का तर्क है कि कोरोना महामारी के कारण मार्च में लगे लॉकडाउन के बाद अधिकतर निजी स्कूलों ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया. जुलाई में बच्चों की आनलाइन क्लासेस शुरू की, लेकिन कहा जा रहा है कि जब स्कूल संचालकों ने फीस देने का आग्रह किया तो अभिभावकों ने हाथ खड़े कर दिए. ऐसे में बिना फीस कितने दिन आनलाइन क्लासेस जारी रख पाएंगे, कहना मुश्किल है.

गुजरात में 15000 निजी स्कूलों ने 24 जुलाई से अपनी ऑनलाइन कक्षाएं रोक दी हैं. ऐसा राज्य सरकार द्वारा 16 जुलाई को जारी उस आदेश के बाद किया गया है, जिसमें कहा गया था कि जब तक स्कूल फिर से खुल न जाएं, उन्हें छात्रों से फीस नहीं लेनी चाहिए. इसके बाद

स्व-वित्तपोषित स्कूल प्रबंधन संघ के प्रवक्ता दीपक राज्यगुरु ने कहा, ‘अगर सरकार का मानना है कि ऑनलाइन शिक्षा वास्तविक शिक्षा नहीं है, तो हमारे छात्रों को ऐसी शिक्षा देने का कोई मतलब नहीं है. ऑनलाइन शिक्षा तब तक निलंबित रहेगी, जब तक सरकार इस आदेश को वापस नहीं लेती है.

उधर पंजाब सरकार और निजी स्कूल प्रबंधकों में तबसे ठनी हुई है, जबसे मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सरकार के सोशल मीडिया पेज पर लाइव होकर घोषणा की थी, कि सरकारी स्कूलों में 2020-21 के शिक्षण सत्र के लिए किसी तरह की कोई फीस नहीं ली जाएगी. सरकार ने यह भी कहा कि निजी स्कूल ट्यूशन फीस ही लें. इसके बाद अभिभावकों पर फीस के नाम पर दबाव बनाने के मामले सामने आए. यह आरोप भी लगे कि ट्यूशन फीस की आड़ में कई निजी स्कूल दूसरे खर्च भी जोड़कर कई-कई महीने की फीस एक साथ मांग रहे हैं और ऐसा नहीं करने पर बच्चों के नाम तक काट दिए जाने की बातें कही जा रही हैं. तब पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि फीस माफी का आवेदन करने वाले वाले बच्चों का नाम स्कूल ने न काटा जाए. पंजाब सरकार अपने फैसले पर अड़ी है और निजी स्कूल अपने आर्थिक लाभ को लेकर आमने-सामने हैं.

सरकार कोई हल निकाले
यह सच है कि कोरोना की महामारी ने शिक्षा व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर डाला है. निजी स्कूल प्रभावित हुए हैं, उनकी आमदनी शून्य हो गई है. इन निजी स्कूलों में बड़ी संख्या में टीचिंग और नान टीचिंग स्टाफ के रूप में रोजगार मिला हुआ है. यदि ऐसे ही हालात रहे तो बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो सकते हैं. सरकारी स्कूलों में तो शिक्षकों को वेतन भी मिल रहा है, तो अन्य स्रोतों से ऑनलाइन कटेंट भी मिल रहा है, लेकिन निजी स्कूलों को सारी व्यवस्थाएं खुद जुटानी होती हैं, उन्हें भी संसाधन की जरूरत होती है.

दूसरा कड़वा सच यह भी है कि निजी स्कूलों में फीस के नाम पर कई-कई मदों में अभिभावकों से भारी वसूली की जाती है. सरकार की इन पर कोई लगाम नहीं है. कोरोना के ऐसे दौर में जब हर कोई मंदी के दौर गुजर रहा है या बेरोजगार है, तो निजी स्कूल संचालकों को चाहिए कि वह अभिभावकों से भारी भरकम फीस वसूलने के बजाय सहयोगी की मुद्रा में दिखें.

ब्लॉगर के बारे में

सुनील कुमार गुप्तावरिष्ठ पत्रकार

सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.

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