जबरन सेवानिवृत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, नियोक्ता को उस अवधि का वेतन भी देना होगा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गलत तरीके से नौकरी से निकालने या जबरन सेवानिवृत्ति देने पर नियोक्ता को उस अवधि का वेतन भी देना होगा, जिस दौरान कामगार बर्खास्त रहा काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत अवैध बर्खास्तगी पर लागू नहीं होता।विवेक वाष्ण्रेय/एसएनबीनई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कर्मचारी की बर्खास्तगी या जबरन सेवानिवृत्ति अवैध पाई जाती है तो नियोक्ता को उस समय का वेतन भी कामगार को देना होगा, जिस दौरान वह बर्खास्त रहा। सुप्रीम कोर्ट का मत है कि कर्मचारी ने अपनी इच्छा से नौकरी नहीं छोड़ी, बल्कि उसे काम न करने के लिए मजबूर किया गया। अगर उसे बर्खास्त नहीं किया गया होता तो वह निश्चित रूप से अपनी सेवाएं अपने नियोक्ता को देता। इस तरह की परिस्थितियों पर काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत कर्मचारी पर लागू नहीं होता।सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई पुराने निर्णयों से हटकर है। शीर्ष अदालत के कई फैसले बर्खास्तगी को नाजायज ठहराने के बावजूद बैक वेजेस के पक्ष में नहीं थे। जस्टिस जगदीश सिंह केहर और रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने शोभा राम रतूड़ी के मामले में यह निर्णय दिया।हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड ने कुरुक्षेत्र के रतूड़ी को 31 दिसंबर, 2002 को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया था जबकि उनका रिटायरमेंट तीन साल बाद होना था। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने विद्युत निगम के आदेश को अवैध करार दिया था।हाई कोर्ट ने उसकी नौकरी अनवरत जारी रखी तथा कहा कि उसे सेवानिवृत्ति के सभी लाभ दिए जाएं। लेकिन उन तीन वर्षो का वेतन न दिया जाए जिस अवधि में उसने काम नहीं किया। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने यह निर्णय 14 सितंबर, 2010 को दिया था।रतूड़ी ने एकल पीठ के फैसले को हाई कोर्ट की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी। खंडपीठ ने 26 मई, 2011 को दिए निर्णय में याची को काई राहत नहीं दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याची के तर्क से सहमति व्यक्त की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेवानिवृत्ति का आदेश अवैध करार दिए जाने के परिणामस्वरूप कर्मचारी को नौकरी के सभी लाभ दिए जाने चाहिए। गलती नियोक्ता की है कि उसने अपने कर्मचारी की सेवाओं का इस्तेमाल नहीं किया। अगर याची को नौकरी पर बरकरार रखा गया होता तो कोई ऐसा कारण नहीं है कि वह अपनी सेवाएं नियोक्ता को नहीं देता। इन परिस्थितियों में हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं कर सकता।सुप्रीम कोर्ट ने एक जनवरी, 2003 से 31 दिसंबर, 2005 तक का तीन साल का वेतन कर्मचारी को देने का आदेश दिया। हरियाणा विद्युत निगम से कहा गया है कि वह तीन माह के अंदर सभी बकाया राशि का भुगतान करे। कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभ की गणना भी दोबारा की जाए।

IN THE SUPREME COURT OF INDIA
                 CIVIL APPELLATE JURISDICTION
                 CIVIL APPEAL NO. 11325 OF 2011
Shobha Ram Raturi                                       ..Appellant
                       versus
Haryana Vidyut Prasaran Nigam Limited and others  ..Respondents
         O R D E R

            It is not a matter of dispute, that the  appellant  was  retiredfrom service on 31.12.2002, even though  he  would  have,  in  the  ordinarycourse,  attained  his  date  of  retirement  on  superannuation,  only   on31.12.2005.  The appellant  assailed  the  order  of  his  retirement  dated31.12.2002 by filing writ petition no. 751 of 2003.  The  same  was  allowedby a learned  Single  Judge  of  the  Punjab  and  Haryana  High  Court,  on14.09.2010.  The operative part of the order is extracted hereunder:“Accordingly the present writ petition is allowed;  order  dated  31.12.2002(Annexure P-4) is  quashed.  The  petitioner  would  be  treated  to  be  incontinuous service with all consequential benefits. However it is  clarifiedthat since the petitioner has not worked on the post maxim of “no  work,  nopay” shall apply and the consequential benefits  shall  only  be  determinedtowards terminal benefits.  However there will be no order as to costs.”

            The denial of back wages to the  appellant  by  the  High  Courtvide its order dated 14.09.2010 was assailed  by  the  appellant  by  filingLetters Patent Appeal No. 489 of 2011.  The High Court  rejected  the  claimof the appellant, while dismissing the Letters Patent Appeal  on  26.5.2011.The orders dated 14.09.2010 and 26.5.2011 passed by the High  Court  limitedto the issue of payment of back  wages,  are  subject  matter  of  challengebefore this Court.
            Having given our thoughtful consideration  to  the  controversy,we are  satisfied,  that  after  the  impugned  order  of  retirement  dated31.12.2002 was set aside, the appellant was entitled  to  all  consequentialbenefits.  The fault lies with the respondents in not  having  utilised  theservices of the appellant for the period from 1.1.2003 to  31.12.2005.   Hadthe appellant been allowed to continue in service,  he  would  have  readilydischarged his duties.  Having restrained him from  rendering  his  serviceswith effect from 1.1.2003 to 31.12.2005, the respondent  cannot  be  allowedto press the self serving plea of  denying  him  wages  for  the  period  inquestion, on the plea of the principle of “no work no pay”.
            For the reasons recorded hereinabove,  we  are  satisfied,  thatthe impugned order passed by the  High  Court,  to  the  limited  extend  ofdenying wages to the appellant, for the period from 1.1.2003  to  31.12.2005deserves to be set aside. The same is accordingly hereby set aside.            The appellant shall be paid wages for the  above  period  withinthree months from today.  His retiral benefits, if necessary, shall  be  re-calculated on the basis thereof, and shall  be  released  to  him  within  afurther period of three months.
            The instant appeal is allowed in the above terms.
                      J. JAGDISH SINGH KHEHAR           J.ROHINTON FALI NARIMAN

         DECEMBER 09, 2015.                           ITEM NO.116               COURT NO.3               SECTION IV
               S U P R E M E  C O U R T  O F  I N D I A
              RECORD OF PROCEEDINGS
             Civil Appeal  No(s).  11325/2011
SHOBHA RAM RATURI                                  Appellant(s)
 VERSUS
HARYANA VIDYUT PRASARAN NIGAM LTD.& ORS            Respondent(s)

Date : 09/12/2015 This appeal was called on for hearing today.
CORAM :         HON’BLE MR. JUSTICE JAGDISH SINGH KHEHAR         HON’BLE MR. JUSTICE ROHINTON FALI NARIMAN

For Appellant(s) Ms. V.S. Lakshmi, Adv.                    for Mr. A. Venayagam Balan, AOR
For Respondent(s)      Mr. Sanjay Kumar Visen,Adv.
          UPON hearing the counsel the Court made the following      O R D E R
            The appeal is allowed in terms of the signed order.

(Renuka Sadana)                        (Parveen Kr. Chawla) Court Master                                     AR-cum-PS            [signed order is placed on the file]

Order of Haryana High Court in above case

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