Saturday, April 20, 2024
Secondary Education

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय अधिनियम, 1985

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय अधिनियम, 1985

(1985 का अधिनियम संख्यांक 50)

[2 सितम्बर, 1985]

देश की शिक्षा व्यवस्था में मुक्त विश्वविद्यालय और दूर-शिक्षा पद्धति

के प्रारम्भ और सवंधर्न के लिए तथा ऐसी पद्धतियों में स्तरमानों

के समन्वय और अवधारण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर

मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना

और निगमन के लिए

अधिनियम

                भारत गणराज्य के छत्तीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय अधिनियम, 1985 है ।

(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में और इसके अधीन बनाए गए सभी परिनियमों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) विद्या परिषद्” से विश्वविद्यालय की विद्या परिषद् अभिप्रेत है ;

(ख) प्रबन्ध बोर्ड” से विश्वविद्यालय का प्रबन्ध बोर्ड अभिप्रेत है ;

(ग) मान्यता बोर्ड” से विश्वविद्यालय का मान्यता बोर्ड अभिप्रेत है ;

(घ) महाविद्यालय” से विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित या चलाया गया या विश्वविद्यालय के विशेषाधिकार प्राप्त महाविद्यालय या अन्य शैक्षणिक संस्था अभिप्रेत है ;

(ङ) दूर-शिक्षा पद्धति” से संचार के किसी भी साधन, जैसे प्रसारण, दूरदर्शन, पत्राचार पाठ्यक्रम, विचार गोष्ठियों, संपर्क कार्यक्रमों या ऐसे साधनों में से किन्हीं दो या अधिक के समुच्चय द्वारा शिक्षा देने की पद्धति अभिप्रेत है ;

(च) कर्मचारी” से विश्वविद्यालय द्वारा नियुक्त कोई व्यक्ति अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत विश्वविद्यालय के शिक्षक और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द हैं ;

(छ) वित्त समिति” से विश्वविद्यालय की वित्त समिति अभिप्रेत है ;

(ज) किसी महाविद्यालय के सम्बन्ध में शासी निकाय” से ऐसा निकाय (उसका चाहे जो नाम हो) अभिप्रेत है,  जिस पर महाविद्यालय के कार्यकलाप के प्रबन्ध का भार है और जो विश्वविद्यालय द्वारा उस रूप में मान्यता प्राप्त है ;

(झ) योजना बोर्ड” से विश्वविद्यालय का योजना बोर्ड अभिप्रेत है ;

(ञ) प्रादेशिक केन्द्र” से ऐसा केन्द्र अभिप्रेत है जो विश्वविद्यालय द्वारा किसी प्रदेश में अध्ययन केन्द्रों के कार्य का समन्वय और पर्यवेक्षण करने के प्रयोजन के लिए और ऐसे अन्य कृत्यों का निष्पादन करने के लिए, जो प्रबंध बोर्ड द्वारा ऐसे केन्द्र को प्रदत्त किए जाएं स्थापित किया गया है या चलया जा रहा है ;

(ट) विनियम” से इस अधिनियम के अधीन विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण द्वारा बनाए गए ऐसे विनियम अभिप्रेत हैं, जो तत्समय प्रवृत्त हैं ;

(ठ) विद्यापीठ” से विश्वविद्यालय में अध्ययन का विद्यापीठ अभिप्रेत है ;

(ड) परिनियम” और अध्यादेश” से क्रमशः विश्वविद्यालय के तत्समय प्रवृत्त परिनियम और अध्यादेश अभिप्रेत हैं ;

(ढ) छात्र” से विश्वविद्यालय का कोई छात्र अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत कोई ऐसा व्यक्ति भी है, जिसने स्वयं को विश्वविद्यालय के किसी अध्ययन पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए नामांकित कराया है ;

(ण) अध्ययन केन्द्र” से ऐसा केन्द्र अभिप्रेत है जो छात्रों को ऐसी सलाह देने, परामर्श देने या कोई अन्य सहायता देने के प्रयोजन के लिए, जो उनके द्वारा अपेक्षित हो, विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित किया गया है या चलाया जा रहा है या मान्यता प्राप्त है ;

(त) शिक्षक” से आचार्य, उपाचार्य, प्राध्यापक और ऐसे अन्य व्यक्ति अभिप्रेत हैं जो विश्वविद्यालय में शिक्षण देने के लिए या विश्वविद्यालय का कोई पाठ्यक्रमानुसार अध्ययन करने के लिए छात्रों का मार्गदर्शन करने या उन्हें सहायता देने के लिए अध्यादेशों द्वारा उस रूप में पदाभिहित किए जाएं ;

(थ) विश्वविद्यालय” से इस अधिनियम के अधीन स्थापित इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय अभिप्रेत है ;

(द)  कुलपति” और प्रति-कुलपति” से क्रमशः विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रति-कुलपति अभिप्रेत हैं ;

3. विश्वविद्यालय की स्थापना और निगमन-(1) इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय” के नाम से एक विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा ।

(2) विश्वविद्यालय का मुख्यालय दिल्ली में होगा और वह अपनी अधिकारिता के भीतर ऐसे अन्य स्थानों पर, जो वह ठीक समझे, महाविद्यालय, प्रादेशिक केन्द्र और अध्ययन केन्द्र भी स्थापित कर सकेगा या उन्हें चला सकेगा :

 [परंतु विश्वविद्यालय, कुलाध्यक्ष के पूर्वानुमोदन से, भारत के बाहर भी अध्ययन केन्द्र स्थापित कर सकेगा ।]

(3) प्रथम कुलपति, प्रथम प्रतिकुलपतियों और प्रबंध बोर्ड, विद्या परिषद् और योजना बोर्ड के प्रथम सदस्यों तथा उन सभी व्यक्तियों को जो आगे चलकर ऐसे अधिकारी या सदस्य बनें, जब तक वे ऐसे अधिकारी या सदस्य बने रहें, मिलाकर इसके द्वारा इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय” के नाम से एक निगमित निकाय गठित किया जाता है ।

(4) विश्वविद्यालय का शाश्वत् उत्तराधिकार होगा और उसकी सामान्य मुद्रा होगी तथा उक्त नाम से वह वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा ।

4. विश्वविद्यालय के उद्देश्य-विश्वविद्यालय के उद्देश्य विभिन्न साधनों द्वारा, जिनके अंतर्गत किसी संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग है, विद्या और ज्ञान की अभिवृद्धि और प्रसार करना, जनता के बड़े भाग के लिए उच्चतर शिक्षा के अवसर प्रदान करना, और साधारणतया समुदाय के शैक्षणिक कल्याण का उन्नयन करना, देश की शिक्षा पद्धति में मुक्त विश्वविद्यालय तथा दूर शिक्षा पद्धति को प्रोत्साहित करना और ऐसी पद्धति के स्तरमानों का समन्वय और अवधारण करना, होंगे और विश्वविद्यालय अपने कार्यकलापों को संचालित करने में पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट उद्देश्यों का सम्यक् ध्यान रखेगा ।

5. विश्वविद्यालय की शक्तियां-(1) विश्वविद्यालय की निम्नलिखित शक्तियां होंगी, अर्थात् :-

(i) ज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यवसाय और वृत्तियों की ऐसी शाखाओं में, जो विश्वविद्यालय समय-समय पर अवधारित करे, शिक्षण की व्यवस्था करना तथा अनुसंधान के लिए व्यवस्था करना ;

(ii) उपाधियों, डिप्लोमाओं, प्रमाणपत्रों और किसी अन्य प्रयोजन के लिए, अध्ययन पाठ्यक्रमों की योजना बनाना और उन्हें विहित करना ;

(iii) परीक्षाएं लेना और उन व्यक्तियों को, जिन्होंने परिनियमों और अध्यादेशों द्वारा अधिकथित रीति से पाठ्यक्रमानुसार अध्ययन किया है या अनुसंधान किया है, उपाधियां, डिप्लोमें, प्रमाणपत्रों या अन्य विद्या संबंधी विशिष्टताएं या मान्यताएं प्रदान करना ; 

(iv) परिनियमों द्वारा अभिकथित रीति से सम्मानिक उपाधियां या अन्य विशिष्टताएं प्रदान करना ;

(v) उस रीति का अवधारण करना जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षा कार्यक्रमों के संबंध में दूर शिक्षा आयोजित की जा सकेगी ;

(vi) शिक्षण देने के लिए या शैक्षणिक सामग्री तैयार करने के लिए या ऐसे अन्य शैक्षणिक कार्यकलापों का संचालन करने के लिए जिनके अंतर्गत पाठ्यक्रमों के लिए मार्गदर्शन, उनकी रूपरेखा तैयार करना और उनका प्रस्तुतीकरण भी है, और छात्रों द्वारा किए गए कार्य के मूल्यांकन के लिए आचार्य, उपाचार्य, प्राध्यापक से संबंधित पद और अन्य शैक्षणिक पद संस्थित करना और ऐसे आचार्य, उपाचार्य, प्राध्यापक और अन्य शैक्षणिक पदों पर व्यक्तियों को नियुक्त करना ;

(vii) अन्य विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षा संस्थाओं, वृत्तिक निकायों और संगठनों के साथ ऐसे प्रयोजनों के लिए, जो विश्वविद्यालय आवश्यक समझे, सहयोग करना और उनका सहयोग प्राप्त करना ; 

(viii) अध्येतावृत्ति, छात्रवृत्ति, पुरस्कार और योग्यता की मान्यता के लिए ऐसे अन्य पारितोषिक संस्थित करना और देना, जो विश्वविद्यालय ठीक समझे ;

(ix) ऐसे प्रादेशिक केन्द्र स्थापित करना और बनाए रखना जो विश्वविद्यालय द्वारा समय-समय पर अवधारित   किए जाएं ;

(x) परिनियमों में अधिकथित रीति से अध्ययन केन्द्र स्थापित करना, उन्हें बनाए रखना या मान्यता देना ;

(xi) शिक्षा सामग्री, जिसके अंतर्गत फिल्में, कैसेट, टेप, वीडियो कैसेट और अन्य मृदु सामग्री है, तैयार करने के लिए व्यवस्था करना ;

(xii) अध्यापकों, पाठ लेखकों, मूल्यांककों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के लिए पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, कर्मशालाएं, विचारगोष्ठियां और अन्य कार्यक्रम आयोजित करना और उनका संचालन करना ; 

(xiii) अन्य विश्वविद्यालयों, संस्थाओं या उच्चतर शिक्षा के अन्य स्थानों से परीक्षाओं या अध्ययन की अवधियों को (चाहे पूर्णतः या भागतः) विश्वविद्यालय में परीक्षाओं या अध्ययन की अवधियों के समतुल्य रूप में मान्यता देना और किसी भी समय ऐसी मान्यता को वापस लेना ;

(xiv) शैक्षणिक प्रौद्योगिकी और संबंधित विषयों में अनुसंधान और विकास के लिए व्यवस्था करना ; 

(xv) प्रशासनिक, अनुसचिवीय और अन्य आवश्यक पदों का सृजन करना और उन पर नियुक्तियां करना ;

(xvi) विश्वविद्यालय के प्रयोजनों के लिए उपकृति, दान और संदान प्राप्त करना और किसी स्थावर या जंगम संपत्ति को, जिसके अन्तर्गत न्यास और विन्यास संपत्ति है अर्जित करना, धारण करना, बनाए रखना और उसका व्ययन   करना ;

(xvii) केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से, चाहे विश्वविद्यालय की संपत्ति की प्रतिभूति पर या अन्यथा, विश्वविद्यालय के प्रयोजनों के लिए धन उधार लेना ; 

(xviii) संविदाएं करना, उन्हें निष्पादित करना, उनमें परिवर्तन करना या उन्हें रद्द करना ;

(xix) ऐसी फीसों और अन्य प्रभारों की जो अध्यादेशों द्वारा अधिकथित किए जाएं मांग करना और उन्हें प्राप्त  करना ;

(xx) छात्रों और सभी प्रवर्गों के कर्मचारियों के बीच अनुशासन की व्यवस्था करना, नियंत्रण करना और उसे बनाए रखना और ऐसे कर्मचारियों की सेवा शर्तों को, जिनके अन्तर्गत उनकी आचरण संहिताएं भी हैं, अधिकथित करना ;

(xxi) उच्चतर विद्या या अध्ययन की किसी संस्था को ऐसे प्रयोजनों के लिए, जो विश्वविद्यालय अवधारित करे, मान्यता देना और ऐसी मान्यता को वापस लेना ; 

 (xxii) संविदा पर या अन्यथा अभ्यागत आचार्यों, प्रतिष्ठित आचार्यों, परामर्शियों, अध्येताओं, विद्वानों, कलाकारों, पाठ्यक्रम लेखकों और ऐसे अन्य व्यक्तियों को, जो विश्वविद्यालय के उद्देश्यों की अभिवृद्धि में योगदान कर सकें, नियुक्त करना ;

(xxiii) अन्य विश्वविद्यालयों, संस्थाओं या संगठनों में कार्यरत व्यक्तियों को विश्वविद्यालय के शि्क्षकों के रूप में ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर जो अध्यादेशों द्वारा अधिकथित की जाएं, मान्यता देना ;

(xxiv) विश्वविद्यालय के अध्ययन पाठ्यक्रमों में छात्रों के प्रवेश के लिए स्तरमान अवधारित करना और शर्तें विनिर्दिष्ट करना जिनके अन्तर्गत परीक्षा, मूल्यांकन और परीक्षण की कोई अन्य रीति है ;

(xxv) कर्मचारियों के साधारण स्वास्थ्य और कल्याण की अभिवृद्धि के लिए प्रबन्ध करना ;  

(xxvi) परिनियमों द्वारा अधिकथित रीति से किसी महाविद्यालय या किसी प्रादेशिक केन्द्र को स्वायत्त प्रास्थिति प्रदान करना ;

(xxvii) ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो परिनियमों द्वारा अधिकथित की जाएं, भारत में अथवा भारत के बाहर किसी महाविद्यालय को विश्वविद्यालय के विशेषाधिकार देना :

परन्तु किसी भी महाविद्यालय को ऐसे विशेषाधिकार कुलाध्यक्ष के पूर्व अनुमोदन के बिना नहीं दिए जाएंगे ; 

(xxviii) ऐसे सभी कार्य करना जो विश्विद्यालय की ऐसी सभी या किन्हीं शक्तियों के, जो आवश्यक हैं,  प्रयोग से आनुषंगिक हों और विश्वविद्यालय के सभी या किन्हीं उद्देश्यों के संप्रवर्तन में सहायक हों ।

                (2) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु उपधारा (1) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना विश्वविद्यालय का यह कर्तव्य होगा कि वह मुक्त विश्वविद्यालय और दूर-शिक्षा पद्धति के संवर्धन के लिए और ऐसी पद्धति में शिक्षा, मूल्यांकन और अनुसंधान के स्तरमानों के अवधारण और उन्हें बनाए रखने के लिए ऐसे उपाय करे जो वह ठीक समझे और इस कृत्य के निष्पादन करने के प्रयोजन के लिए विश्वविद्यालय को ऐसी शक्तियां होंगी, जिनके अन्तर्गत महाविद्यालयों को, चाहे उन्हें उसके विशेषाधिकार दिए गए हों या नहीं या किसी अन्य विश्वविद्यालय या उच्चतर शिक्षा के संस्था को, अनुदान आबंटित करना और वितरित करना है ।

6. अधिकारिता-विश्वविद्यालय की अपनी शक्तियों के प्रयोग में  [अधिकारिता संपूर्ण भारत पर और भारत के बाहर के अध्ययन केन्द्रों पर होगी ।]

7. विश्वविद्यालय का सभी वर्गों, जातियों और पंथों के लिए खुला होना-(1) विश्वविद्यालय सभी स्त्रियों और पुरुषों के लिए खुला होगा चाहे वह किसी भी मूलवंश, पंथ, जाति या वर्ग के हों, और विश्वविद्यालय के लिए उस किसी व्यक्ति को विश्वविद्यालय के शिक्षक के रूप में नियुक्त किए जाने या उसमें कोई अन्य पद धारण करने या विश्वविद्यालय में छात्र के रूप में प्रवेश प्राप्त करने या उसमें उपाधि प्राप्त करने या उसके किसी विशेषाधिकार का उपभोग करने या प्रयोग करने का हकदार बनाने के लिए कोई भी धार्मिक विश्वास या मान्यता का मानदंड अपनाना उस पर अधिरोपित करना विधिपूर्ण नहीं होगा ।

(2) उपधारा (1) की कोई बात विश्वविद्यालय को स्त्रियों या समाज के दुर्बल वर्गों और विशिष्टतया अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों या व्यक्तियों को नियुक्ति या प्रवेश के लिए विशेष उपबंध करने से निवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी ।

8. कुलाध्यक्ष-(1) भारत का राष्ट्रपति विश्वविद्यालय का कुलाध्यक्ष होगा ।

(2) उपधारा (3) और उपधारा (4) के उपबंधों के अधीन रहते हुए कुलाध्यक्ष को ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा, जिन्हें वह निदेश दे, विश्वविद्यालय, उसके भवन, प्रयोगशालाओं और उपस्कर का और किसी भी महाविद्यालय, प्रादेशिक केन्द्र या अध्ययन केन्द्र का, और विश्वविद्यालय द्वारा संचालित या ली गई परीक्षा, शिक्षण और अन्य कार्य का भी निरीक्षण करने का तथा विश्वविद्यालय के प्रशासन और वित्त से संबंधित किसी मामले की बाबत उसी रीति से जांच कराने का अधिकार होगा ।

                (3) कुलाध्यक्ष प्रत्येक दशा में निरीक्षण या जांच कराने के अपने आशय की सूचना विश्वविद्यालय को देगा और विश्वविद्यालय को, ऐसी सूचना की प्राप्ति पर, सूचना की प्राप्ति की तारीख से तीस दिन के भीतर या ऐसी अन्य अवधि के भीतर जो कुलाध्यक्ष अवधारित करे, कुलाध्यक्ष को ऐसा अभ्यावेदन करने का अधिकार होगा, जो वह आवश्यक समझे ।

(4) विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अभ्यावेदनों पर, यदि काई हों, विचार करने के पश्चात्, कुलाध्यक्ष ऐसा निरीक्षण या जांच करा सकेगा जो उपधारा (2) में निर्दिष्ट है । 

                (5) जहां कुलाध्यक्ष द्वारा कोई निरीक्षण या जांच कराई गई है वहां विश्वविद्यालय एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का हकदार होगा जिसे ऐसे निरीक्षण या जांच में स्वयं उपस्थित होने और सुने जाने का अधिकार होगा ।

(6) कुलाध्यक्ष ऐसे निरीक्षण या जांच के परिणामों के संदर्भ में, उन पर की जाने वाली कार्रवाई के संबंध में सलाह सहित अपने विचारों को, जो कुलाध्यक्ष देना चाहे, कुलपति को सम्बोधित कर सकेगा और कुलाध्यक्ष द्वारा किए गए सम्बोधन की प्राप्ति पर कुलपति प्रबन्ध बोर्ड को ऐसे निरीक्षण या जांच के परिणाम और कुलाध्यक्ष के विचार ऐसी सलाह के साथ तुरंत संसूचित करेगा जो कुलाध्यक्ष उस पर की जाने वाली कार्रवाई के संबंध में दे ।

                (7) प्रबन्ध बोर्ड कुलपति के माध्यम से कुलाध्यक्ष को वह कार्रवाई, यदि कोई हो, संसूचित करेगा जो ऐसे निरीक्षण या जांच के परिणाम स्वरूप करने की प्रस्थापना है या जो की गई है ।

(8) जहां प्रबन्ध बोर्ड कुलाध्यक्ष के समाधानप्रद रूप में कोई कार्रवाई उचित समय के भीतर नहीं करता है, वहां कुलाध्यक्ष प्रबंध बोर्ड द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण या अभ्यावेदन पर विचार करने के पश्चात् ऐसे निदेश जारी कर सकेगा, जो वह ठीक समझे और प्रबंध बोर्ड ऐसे निदेशों का पालन करने के लिए आबद्ध होगा ।

                (9) इस धारा के पूर्वगामी उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कुलाध्यक्ष विश्वविद्यालय की ऐसी किसी कार्यवाही को, जो इस अधिनियम, परिनियमों या अध्यादेशों के अनुरूप नहीं हैं, लिखित आदेश द्वारा, निष्प्रभाव कर सकेगा :

परन्तु ऐसा आदेश करने से पहले वह विश्वविद्यलय से इस बात का कारण दर्शित करने की अपेक्षा करेगा कि ऐसा आदेश क्यों नहीं किया जाए और यदि उचित समय के भीतर कोई कारण दर्शित कर दिया जाता है तो वह उस पर विचार करेगा ।

(10) कुलाध्यक्ष को अन्य ऐसी शक्तियां होंगी जो परिनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं ।

9. विश्वविद्यालय के अधिकारी-विश्वविद्यालय के निम्नलिखित अधिकारी होंगे :-

                (1) कुलपति ;

                (2) प्रतिकुलपति ;

                (3) निदेशक ;

                (4) कुलसचिव ;

(5) वित्त अधिकारी ; और

                (6) ऐसे अन्य अधिकारी जो परिनियमों द्वारा विश्वविद्यालय के अधिकारी घोषित किए जाएं ।

10. कुलपति-(1) कुलपति की नियुक्ति कुलाध्यक्ष द्वारा ऐसी रीति से और ऐसी अवधि के लिए और ऐसी उपलब्धियों और सेवा की अन्य शर्तों पर की जाएंगी जो परिनियमों द्वारा विहित की जाएं ।

(2) कुलपति विश्वविद्यालय का प्रधान शैक्षणिक और कार्यपालक अधिकारी होगा और विश्वविद्यालय के कार्यकलापों पर पर्यवेक्षण और नियंत्रण रखेगा और विश्वविद्यालय के सभी प्राधिकरणों के विनिश्चयों को कार्यान्वित करेगा ।

(3) यदि कुलपति की यह राय है कि किसी मामले में तुरन्त कार्रवाई करना आवश्यक है तो वह किसी ऐसी शक्ति का प्रयोग कर सकेगा जो विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण को इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त है और अपने द्वारा उस मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट उस प्राधिकरण को देगा :

परन्तु यदि संबंधित प्राधिकरण की यह राय है कि ऐसी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए थी तो वह कुलाध्यक्ष को ऐसा मामला निर्देशित कर सकेगा, जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा :

परन्तु यह और कि विश्वविद्यालय की सेवा में के किसी ऐसे व्यक्ति को, जो कुलपति द्वारा इस उपधारा के अधीन की गई कार्रवाई से व्यथित है, यह अधिकार होगा कि जिस तारीख को ऐसी कार्रवाई का विनिश्चय उसे संसूचित किया जाता है, उससे नब्बे दिन के भीतर वह उस कार्रवाई के विरुद्ध अपील प्रबंध बोर्ड से करे और प्रबन्ध बोर्ड कुलपति द्वारा की गई कार्रवाई की पुष्टि कर सकेगा, उसे उपांतरित कर सकेगा या उसे उलट सकेगा ।

(4) यदि कुलपति की यह राय है कि किसी प्राधिकरण का विनिश्चय इस अधिनियम, परिनियमों या अध्यादेशों के उपबंधों द्वारा प्रदत्त प्राधिकरण की शक्तियों के परे है या यह कि किया गया कोई विनिश्चय विश्वविद्यालय के हित में नहीं है तो वह संबंधित प्राधिकरण को ऐसे विनिश्चय के साठ दिन के भीतर अपने विनिश्चय का पुनर्विलोकन करने के लिए कह सकेगा और यदि प्राधिकरण अपने विनिश्चय का पूर्णतः या भागतः पुनर्विलोकन करने से इन्कार करता है या साठ दिन की उक्त अवधि के भीतर उसके द्वारा कोई विनिश्चय नहीं किया जाता है तो मामला कुलाध्यक्ष को निर्दिष्ट किया जाएगा, जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा :

परन्तु संबंधित प्राधिकरण का विनिश्चय, यथास्थिति, प्राधिकरण या कुलाध्यक्ष द्वारा इस उपधारा के अधीन, ऐसे विनिश्चय के पुनर्विलोकन की अवधि के दौरान निलंबित रहेगा ।

(5) कुलपति ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करेगा, जो परिनियमों या अध्यादेशों द्वारा विहित   किए जाएं ।

11. प्रतिकुलपति-प्रत्येक प्रतिकुलपति की नियुक्ति ऐसी रीति से और ऐसी उपलब्धियों तथा सेवा की अन्य शर्तों पर की जाएगी और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कृत्यों का पालन करेगा जो परिनियमों द्वारा विहित किए जाएं ।

12. निदेशक-प्रत्येक निदेशक की नियुक्ति ऐसी रीति से और ऐसी उपलब्धियों तथा सेवा की अन्य शर्तों पर की जाएगी और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कृत्यों का पालन करेगा जो परिनियमों द्वारा विहित किए जाएं ।

13. कुलसचिव-(1) प्रत्येक कुलसचिव की नियुक्ति ऐसी रीति से और ऐसी उपलब्धियों तथा सेवा की अन्य शर्तों पर की जाएगी, जो परिनियमों द्वारा विहित की जाएं ।

(2) प्रबन्ध बोर्ड द्वारा सशक्त कुलसचिव को विश्वविद्यालय की ओर से करार करने और उन पर हस्ताक्षर करने की तथा अभिलेखों को अधिप्रमाणित करने की शक्ति होगी ।

(3) प्रत्येक कुलसचिव ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन करेगा, जो परिनियमों द्वारा विहित किए जाएं ।

14. वित्त अधिकारी-वित्त अधिकारी की नियुक्ति ऐसी रीति से और ऐसी उपलब्िधयों और सेवा की शर्तों पर की जाएगी और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन करेगा जो परिनियमों द्वारा विहित किए जाएं ।

15. अन्य अधिकारी-विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की रीति उनकी उपलबधियां, शक्तियां और कर्तव्य परिनियमों द्वारा विहित किए जाएंगे ।

16. विश्वविद्यालय के प्राधिकरण-विश्वविद्यालय के निम्नलिखित प्राधिकरण होंगे :-

                (1) प्रबन्ध बोर्ड ;

                (2) विद्या परिषद् ;

                (3) योजना बोर्ड ;

                (4) मान्यता बोर्ड ;

                (5) अध्ययन विद्यापीठ ;

                (6) वित्त समिति ; और

                (7) अन्य ऐसे  प्राधिकरण, जो परिनियमों द्वारा विश्वविद्यालय के प्राधिकरण घोषित किए जाएं ।

17. प्रबन्ध बोर्ड-(1) प्रबन्ध बोर्ड विश्वविद्यालय का प्रधान कार्यपालक निकाय होगा ।

(2) प्रबन्ध बोर्ड का गठन, उसके सदस्यों की पदावधि और उसकी शक्तियां और कर्तव्य, परिनियमों द्वारा विहित किए जाएंगे ।

18. विद्या परिषद्-(1) विद्या परिषद् विश्वविद्यालय की प्रधान शैक्षणिक निकाय होगी और इस अधिनियम, परिनियमों और अध्यादेशों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, विश्वविद्यालय के भीतर विद्या, शिक्षा, शिक्षण, मूल्यांकन और परीक्षा के स्तरमानों का नियत्रंण और साधारण विनियमन करेगी और उनको बनाए रखने के लिए उत्तरदायी होगी और ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग और ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करेगी जो परिनियमों द्वारा उसे प्रदत्त या उस पर अधिरोपित किए जाएं ।

(2) विद्या परिषद् का गठन, उसके सदस्यों की पदावधि और उसकी शक्तियां परिनियमों द्वारा विहित की जाएंगी ।

19. योजना बोर्ड-(1) विश्वविद्यालय के योजना बोर्ड का गठन किया जाएगा, जो विश्वविद्यालय का प्रधान योजना निकाय होगा और विश्वविद्यालय के उद्देश्यों में उपदर्शित आधारों पर, विश्वविद्यालय के विकास को मोनीटर करने के लिए भी उत्तरदायी होगा ।

(2) योजना बोर्ड का गठन और उसके सदस्यों की पदावधि और उनकी शक्तियां तथा कृत्य विश्वविद्यालय द्वारा विहित किए जाएंगे ।

20. मान्यता बोर्ड-(1) मान्यता बोर्ड महाविद्यालयों को विश्वविद्यालय के विशेषाधिकार देने के लिए उत्तरदायी होगा ।

(2) मान्यता बोर्ड का गठन और उसकी शक्तियां तथा कृत्य परिनियमों द्वारा विहित किए जाएंगे ।

21. अध्ययन विद्यापीठ-(1) अध्ययन विद्यापीठ इतनी संख्या में होंगे जितनी विश्वविद्यालय समय-समय पर अवधारित करे ।

(2) अध्ययन विद्यापीठों का गठन और अन्य शक्तियां और कृत्य ऐसे होंगे जो परिनियमों द्वारा विहित किए जाएं ।

22. वित्त समिति-वित्त समिति का गठन, शक्तियां और कृत्य परिनियमों द्वारा विहित किए जाएंगे ।

23. अन्य प्राधिकरण-अन्य प्राधिकरणों का, जो परिनियमों द्वारा विश्वविद्यालय के प्राधिकरण घोषित किए जाएं, गठन, उनकी शक्तियां और कृत्य परिनियमों द्वारा विहित किए जाएंगे ।

24. परिनियम-इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन हुए, परिनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात्:-

(क) कुलपति की नियुक्ति की रीति, उसकी नियुक्ित की अवधि, उपलब्िधयां और सेवा की अन्य शर्तें तथा शक्तियां और कृत्य, जिनका उसके द्वारा प्रयोग और पालन किया जा सकेगा ; 

(ख) प्रतिकुलपतियों, निदेशकों, कुलसचिवों, वित्त अधिकारी और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की रीति, उपलब्धियां और उनकी सेवा की शर्तें तथा शक्तियां और कृत्य जिनका उक्त अधिकारियों में से प्रत्येक के द्वारा प्रयोग और पालन किया जा सकेगा ;

(ग) प्रबन्ध बोर्ड और विश्वविद्यालय के अन्य प्राधिकरणों का गठन, ऐसे प्राधिकरणों के सदस्यों की पदावधियों और शक्तियां तथा कृत्य जिनका प्रयोग और पालन ऐसे प्राधिकरणों द्वारा किया जा सकेगा ;

(घ) शिक्षकों और विश्वविद्यालय के अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति उनकी उपलब्िधयां तथा सेवा की अन्य शर्तें ;

(ङ) विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के फायदे के लिए पेंशन या भविष्य निधि का गठन और किसी बीमा स्कीम की स्थापना ;

(च) विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की सेवा में ज्येष्ठता को शासित करने वाले सिद्धांत ;

(छ) विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी या प्राधिकरण की कार्रवाई के विरुद्ध विश्वविद्यालय के किसी कर्मचारी या छात्र द्वारा किसी अपील या पुनर्विलोकन के लिए किसी आवेदन के सम्बन्ध में प्रक्रिया, जिसके अन्तर्गत वह समय है, जिसके भीतर ऐसी अपील या पुनर्विलोकन के लिए आवेदन किया जाएगा ;

(ज) विश्वविद्यालय के कर्मचारियों या छात्रों और विश्वविद्यालय के बीच विवादों के निपटारे के लिए प्रक्रिया ;

(झ) महाविद्यालयों और अध्ययन केन्द्रों को स्वायत्त प्रास्थिति प्रदान करना ;

(ञ) मुक्त विश्वविद्यालय, दूर-शिक्षा पद्धति में स्तरमानों का समन्वय और अवधारण तथा महाविद्यालयों और अन्य विश्वविद्यालय और संस्थाओं को अनुदानों का आबंटन और संवितरण ;

(ट) वे शर्तें जो, महाविद्यालयों को विश्वविद्यालय के विशेषाधिकार देने के लिए पूरी की जाने के लिए अपेक्षित हैं ;

(ठ) सभी अन्य विषय जो अधिनियम के अधीन परिनियमों द्वारा उपबंधित किए जाने हैं या किए जाएं ।

25. परिनियम कैसे बनाए जाएंगे-(1) प्रथम परिनियम वे हैं जो दूसरी अनुसूची में उपवर्णित हैं ।

                (2) प्रबन्ध बोर्ड नए और अतिरिक्त परिनियम समय-समय पर बना सकेगा या उपधारा (1) में निर्दिष्ट परिनियमों का संशोधन या निरसन कर सकेगा :

                परन्तु प्रबन्ध बोर्ड विश्वविद्यालय के प्राधिकरण की प्रास्थिति, शक्तियों या गठन पर प्रभावित करने वाला कोई परिनियम तब तक नहीं बनाएगा, उसका संशोधन नहीं करेगा, या उसका निरसन नहीं करेगा जब तक ऐसे प्राधिकरण को प्रस्थापित परिवर्तनों पर अपनी राय लिखित रूप में अभिव्यक्त करने का युक्तियुक्त अवसर नहीं दे दिया गया है और यदि इस प्रकार अभिव्यक्त राय पर प्रबन्ध बोर्ड द्वारा विचार नहीं किया गया है ।

                (3) प्रत्येक नए परिनियम या किसी परिनियमों के परिवर्धन या उनके किसी संशोधन या निरसन के लिए कुलाध्यक्ष का अनुमोदन अपेक्षित होगा, जो उस पर अनुमति दे सकेगा या अनुमति रोक सकेगा या प्रबन्ध बोर्ड को उसके द्वारा किए गए संप्रेक्षणों को, यदि कोई हो, ध्यान में रखते हुए पुनःविचार करने के लिए प्रेषित कर सकेगा ।

                (4) कोई नया परिनियम या किसी विद्यमान परिनियम का संशोधन या निरसन करने वाला कोई परिनियम तब तक विधिमान्य नहीं होगा जब तक कुलाध्यक्ष द्वारा उसकी अनुमति नहीं दे दी गई है ।

                (5) पूर्वगामी उपधाराओं में किसी बात के होते हुए भी कुलाध्यक्ष इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पश्चात् तीन वर्ष की अवधि के दौरान नए या अतिरिक्त परिनियम बना सकेगा या उपधारा (1) में निर्दिष्ट परिनियमों का संशोधन या निरसन कर सकेगा ।

                (6) पूर्वगामी उपधाराओं में किसी बात के होते हुए भी, कुलाध्यक्ष अपने द्वारा विनिर्दिष्ट किसी विषय के संबंध में परिनियमों में उपबन्ध करने के लिए विश्वविद्यालय को निदेश दे सकेगा और यदि प्रबन्ध बोर्ड निदेश की प्राप्ति के साठ दिन के भीतर ऐसे निदेश को कार्यान्वित करने में असमर्थ है तो कुलाध्यक्ष, प्रबन्ध बोर्ड द्वारा ऐसे निदेश का पालन करने में अपनी असर्मथता के लिए संसूचित किए गए कारणों पर, यदि कोई हों, विचार करने के पश्चात् परिनियम बना सकेगा या उनका यथोचित रूप में संशोधन कर सकेगा ।

26. अध्यादेश-(1) इस अधिनियम और परिनियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अध्यादेशों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-

(क) छात्रों का प्रवेश, पाठ्यक्रम और उसके लिए फीसों, उपाधियों, डिप्लोमाओं, प्रमाणपत्रों और अन्य पाठ्यक्रमों से संबंधित अर्हताएं, अध्येतावृत्तियों, पारितोषकों और वैसी ही अन्य बातों की मंजूरी के लिए शर्तें ; 

(ख) परीक्षाओं का संचालन जिनके अन्तर्गत परीक्षकों के निबन्धन, शर्तें और उनकी नियुक्ति भी हैं ;

(ग) विश्वविद्यालय के विशेषाधिकार प्राप्त महाविद्यालयों और संस्थाओं का प्रबन्ध ;

(घ) कोई अन्य विषय, जो इस अधिनियम के अधीन परिनियमों या अध्यादेशों द्वारा उपबन्ध किया जाना है, या किया जाए । 

                (2) प्रथम अध्यादेश केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से कुलपति द्वारा बनाए जाएंगे और इस प्रकार बनाए गए अध्यादेश परिनियमों द्वारा विहित रीति से प्रबन्ध बोर्ड द्वारा किसी भी समय संशोधित, निरसित या परिवर्तित किए जा सकेंगे । 

27. विनियम-विश्वविद्यालय के प्राधिकरण स्वयं अपने और अपने द्वारा नियुक्त की गई समितियों के कार्य संचालन के लिए, जिसका इस अधिनियम, परिनियमों या अध्यादेशों द्वारा उपबन्ध नहीं किया गया है, परिनियमों द्वारा विहित रीति से ऐसे विनियम बना सकेंगे, जो इस अधिनियम, परिनियमों और अध्यादेशों से संगत हैं ।

28. वार्षिक रिपोर्ट-(1) विश्वविद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट प्रबन्ध बोर्ड के निदेशों के अधीन तैयार की जाएगी जिसके अन्तर्गत अन्य विषयों के साथ, विश्वविद्यालय द्वारा उसके उद्देश्यों की पूर्ति की दशा में किए गए उपाय होंगे ।

(2) इस प्रकार तैयार की गई वार्षिक रिपोर्ट कुलाध्यक्ष को ऐसी तारीख को या उसके पूर्व प्रस्तुत की जाएगी जो परिनियमों द्वारा विहित की जाए ।

(3) उपधारा (1) के अधीन तैयार की गई वार्षिक रिपोर्ट की एक प्रति केन्द्रीय सरकार को भी प्रस्तुत की जाएगी, जो यथाशीघ्र उसे संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी ।

29. वार्षिक लेखे आदि-(1) विश्वविद्यालय के वार्षिक लेखे और तुलनपत्र प्रबन्ध बोर्ड के निदेशों के अधीन तैयार किए जाएंगे और भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा या ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा जो वह इस निमित्त प्राधिकृत करे, प्रत्येक वर्ष में कम से कम एक बार और पन्द्रह मास से अनधिक के अन्तरालों पर उनकी लेखा परीक्षा की जाएगी ।

(2) लेखाओं की एक प्रति उन पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट सहित प्रबन्ध बोर्ड के संप्रेक्षणों के साथ, यदि कोई हों, कुलाध्यक्ष को प्रस्तुत की जाएगी ।

(3) वार्षिक लेखाओं पर कुलाध्यक्ष द्वारा किए गए संप्रेक्षण प्रबन्ध बोर्ड के ध्यान में लाए जाएंगे और ऐसे संप्रेक्षणों पर प्रबन्ध बोर्ड के विचार यदि कोई हों कुलाध्यक्ष को प्रस्तुत किए जाएंगे ।

(4) कुलाध्यक्ष को प्रस्तुत किए गए रूप में लेखा परीक्षा की रिपोर्ट के साथ लेखाओं की एक प्रति केन्द्रीय सरकार को भी प्रस्तुत की जाएगी जो यथाशीघ्र उसे संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी ।

(5) परीक्षित वार्षिक लेखे संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखे जाने के पश्चात् भारत के राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे ।

30. कर्मचारियों की सेवा की शर्तें-(1) विश्वविद्यालय का प्रत्येक कर्मचारी लिखित संविदा के अधीन नियुक्त किया जाएगा और ऐसी संविदा इस अधिनियम, परिनियमों और अध्यादेशों के उपबन्धों से असंगत नहीं होगी ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट संविदा विश्वविद्यालय में रखी जाएगी और उसकी एक प्रति संबंधित कर्मचारी को दी जाएगी ।

31. माध्यस्थम् अधिकरण-(1) विश्वविद्यालय और किसी कर्मचारी के बीच धारा 30 में निर्दिष्ट नियोजन की किसी संविदा से पैदा होने वाला कोई विवाद किसी भी पक्षकार के अनुरोध पर, माध्यस्थम् अधिकरण को निर्देशित किया जाएगा जिसमें प्रबन्ध बोर्ड द्वारा नामनिर्दिष्ट एक सदस्य, संबंधित कर्मचारी द्वारा नामनिर्दिष्ट एक सदस्य और कुलाध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाने वाला अधिनिर्णायक होगा । 

(2) प्रत्येक ऐसा निर्देश माध्यस्थम् अधिनिमय, 1940 (1940 का 2) के अर्थ में इस धारा के निबंधनों पर माध्यस्थम् के लिए निवेदन समझा जाएगा और उस अधिनियम के सभी उपबन्ध, उसकी धारा 2 को छोड़कर तद्नुसार लागू होंगे ।

(3) माध्यस्थम् अधिकरण के कार्य को विनियमित करने के लिए प्रक्रिया परिनियमों द्वारा विहित की जाएगी ।

(4) माध्यस्थम् अधिकरण का विनिश्चय अंतिम होगा और पक्षकारों पर आबद्धकर होगा तथा अधिकरण द्वारा विनिश्चित मामलों के संबंध में कोई वाद किसी न्यायालय में नहीं होगा ।

32. भविष्य और पेंशन निधियां-(1) विश्वविद्यालय अपने कर्मचारियों के फायदे के लिए ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो परिनियमों द्वारा विहित की जाएं, ऐसी भविष्य या पेंशन निधियों का गठन करेगा या ऐसी बीमा स्कीमों की व्यवस्था करेगा जो वह ठीक समझे ।

                (2) जहां ऐसी भविष्य या पेंशन निधि का इस प्रकार गठन किया गया है, वहां केन्द्रीय सरकार यह घोषित कर सकेगी कि भविष्य निधि अधिनियम, 1925 (1925 का 19) के उपबन्ध ऐसी निधि को इस प्रकार लागू होंगे मानो वह सरकारी भविष्य निधि हो ।

33. विश्वविद्यालय के प्राधिकरणों और निकायों के गठन के बारे में विवाद-यदि यह प्रश्न उठता है कि क्या कोई व्यक्ति विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण या अन्य निकाय के सदस्य के रूप में सम्यक् रूप से निर्वाचित या नियुक्त किया गया है या उसका सदस्य होने का हकदार है तो वह विषय कुलाध्यक्ष को निर्देशित किया जाएगा, जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा ।

34. आकस्मिक रिक्तियों का भरा जाना-विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण या अन्य निकाय (पदेन सदस्यों से भिन्न) सदस्यों में सभी आकस्मिक रिक्तियां यथाशीघ्र सुविधानुसार ऐसे व्यक्ति या निकाय द्वारा भरी जाएंगी जिसने उस सदस्य को जिसका स्थान रिक्त हुआ है, नियुक्त, निर्वाचित या सहयोजित किया था और आकस्मिक रिक्ति में नियुक्त, निर्वाचित या सहयोजित व्यक्ति ऐसे प्राधिकरण या निकाय का सदस्य उस अवशिष्ट अवधि के लिए होगा, जिसके दौरान वह व्यक्ति जिसका स्थान वह भरता है, सदस्य रहता ।

35. विश्वविद्यालय के प्राधिकरणों या निकायों की कार्यवाहियों का रिक्तियों के कारण अविधिमान्य न होना-विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण या अन्य निकाय की कार्यवाहियां उसके सदस्यों में कोई रिक्ति या रिक्तियां होने के कारण अविधिमान्य नहीं होंगी ।

36. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही किसी ऐसी बात के बारे में जो इस अधिनियम या परिनियमों या अध्यादेशों के उपबन्धों में से किसी के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई है, या की जाने के लिए आशयित है विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध नहीं होंगी ।

37. विश्वविद्यालय के अभिलेख को साबित करने का ढंग-भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण या समिति की किसी रसीद, आवेदन, सूचना, आदेश, कार्यवाही, संकल्प या अन्य दस्तावेज की जो विश्वविद्यालय के कब्जे में हैं या विश्वविद्यालय द्वारा सम्यक् रूप से रखे गए किसी रजिस्टर की किसी प्रविष्टि की प्रतिलिपि इस प्रकार पदाभिहित कुलसचिव द्वारा प्रमाणित की जाने पर, उस दशा में जिसमें उसकी मूल प्रति पेश की जाने पर साक्ष्य में ग्राह्य होती, उसमें विनिर्दिष्ट मामलों और संव्यवहारों के साक्ष्य के रूप में ग्रहण की जाएगी ।

38. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार भारत के राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबन्ध कर सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबनधों से असंगत न हों और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों :

परन्तु इस धारा के अधीन कोई ऐसा आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ से तीन वर्ष के अवसान के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।

39. संक्रमणकालीन उपबंध-इस अधिनियम और परिनियमों में किसी बात के होते हुए भी,-

(क) प्रथम कुलपति, प्रथम कुलसचिव और प्रथम वित्त अधिकारी, कुलाध्यक्ष द्वारा नियुक्त किए जाएंगे और वे परिनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट सेवा के निबन्धनों और शर्तों से शासित होंगे :

परन्तु प्रथम कुलपति परिनियमों में विनिर्दिष्ट रीति से दूसरी अवधि के लिए नियुक्ति के लिए पात्र होगा ;

(ख) प्रथम प्रबन्ध बोर्ड में पन्द्रह से अनधिक इतने सदस्य होंगे, जो कुलाध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे और     वे तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे ;

(ग) (i) प्रथम योजना बोर्ड में दस से अनधिक इतने सदस्य होंगे, जो कुलाध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे और वे तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे ;

(ii) योजना बोर्ड इस अधिनियम द्वारा उसे प्रदत्त शक्तियों और कृत्यों के अतिरिक्त विद्या परिषद् की शक्तियों का प्रयोग तब तक करेगा जब तक कि इस अधिनियम और परिनियमों के उपबन्धों के अधीन विद्या परिषद् का गठन नहीं किया जाता है और उन शक्तियों का प्रयोग करते हुए योजना बोर्ड ऐसे सदस्यों को सहयोजित कर सकेगा, जो वह विनिश्चित करे ।

40. परिनियमों, अध्यादेशों और विनियमों का राजपत्र में प्रकाशित किया जाना और संसद् के समक्ष रखा जाना-(1) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक परिनियम, अध्यादेश या विनियम राजपत्र में प्रकाशित किया जाएगा ।

                (2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक परिनियम, अध्यादेश या विनियम बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस परिनियम, अध्यादेश या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए, सहमत हो जाएं, तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह परिनियम, अध्यादेश या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु परिनियम, अध्यादेश या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

पहली अनुसूची

(धारा 4 देखिए)

विश्वविद्यालय के उद्देश्य

1. विश्वविद्यालय देश के विकास में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए, जो देश की समृद्ध परंपराओं पर आधारित हो, भारत की जनता की संस्कृति और उसके मानवीय साधनों की उन्नति और अभिवृद्धि के लिए शिक्षा, अनुसंधान, प्रशिक्षण और विस्तारण, के माध्यम से प्रयास करेगा । इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वह: –

(क) नियोजन की आवश्यकताओं से संबंधित तथा देश की अर्थव्यवस्था के, उसके प्राकृतिक और मानवीय साधनों के आधार पर, निर्माण के लिए आवश्यक उपाधि, प्रमाणपत्र और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों को प्रोत्साहित करेगा और उन्हें विविध प्रकार का बनाएगा;

(ख) जनता के बड़े भागों और विशिष्टतया सुविधा रहित समूहों को जैसे वे समूह जो दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं, जिनके अन्तर्गत श्रमजीवी जनता, घरेलू महिलाएं और अन्य ऐसे व्यस्क हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में अध्ययन के माध्यम से ज्ञान बढ़ाने और अर्जित करने की इच्छा रखते हैं उच्चतर शिक्षा तक उनकी पहुंच के लिए उपबन्ध करेगा;

(ग) शीघ्रता से विकसित और परिवर्तित होने वाले समाज में ज्ञान के अर्जन का संवर्धन करेगा और मानव प्रयास के सभी क्षेत्रों में नव परिवर्तन, अनुसंधान, खोज के संदर्भ में ज्ञान, प्रशिक्षण और कुशलता बढ़ाने के लिए लगातार अवसर प्रस्तुत करने के लिए प्रयास करेगा;

(घ) ज्ञान के नए क्षेत्रों में विद्या की अभिवृद्धि करने और उसे विशिष्टतया प्रोत्साहित करने की दृष्टि से विद्या के तरीकों और गति, पाठ्यक्रमों के मिश्रण, नामांकन की पात्रता, प्रवेश की आयु, परीक्षाओं के संचालन और कार्यक्रमों के प्रवर्तन के संबंध में लचीली और मुक्त विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा की नव पद्धति के लिए, उपबन्ध करेगा;

(ङ) औपचारिक पद्धति की अनुपूरक अनौपचारिक प्रणाली का उपबन्ध करके और विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किए गए पाठों और अन्य मृदुसामग्री का विस्तृत रूप से उपयोग करके गण्यता के अन्तरण को और अध्यापन कर्मचारिवृन्द के विनियम को प्रोत्साहित करके भारत में शैक्षणिक पद्धति के सुधार के लिए योगदान देगा;  

(च) देश की विभिन्न कलाओं, शिल्पों और कुशलताओं में, उनकी क्वालिटी में सुधार करके और जनता के लिए उनकी उपलब्धता में वृद्धि करके शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए उपबन्ध करेगा;

(छ) ऐसे कार्यकलापों या संस्थाओं के लिए अपेक्षित शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उपबन्ध या प्रबंध करेगा;

(ज) अध्ययन के यथोचित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए उपबंध करेगा और अनुसंधान को बढ़ावा देगा;

(झ) अपने छात्रों के लिए परामर्श और मार्गदर्शन के लिए उपबन्ध करेगा; और

(ञ) अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और मानव व्यक्तित्व के समन्वित विकास में वृद्धि करेगा ।

2. विश्वविद्यालय दूर और अनुवर्ती शिक्षा के विविध माध्यमों से उक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयास करेगा और उच्चतर शिक्षा के विद्यमान विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के सहयोग से कृत्य करेगा और नवीनतम वैज्ञानिक ज्ञान का और नई शैक्षणिक प्रौद्योगिकी का, ऐसी उच्च क्वालिटी की शिक्षा देने के लिए जो समकालीन आवश्यकताओं के अनुरूप हों, पूर्ण उपयोग करेगा ।   

दूसरी अनुसूची

(धारा 24 देखिए)

विश्वविद्यालय के परिनियम

1. कुलपति-

                (1) कुलपति विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक वैतनिक अधिकारी होगा ।

                (2) कुलपति की नियुक्ति खंड (3) के अधीन गठित समिति द्वारा सिफारिश किए गए कम से कम तीन व्यक्तियों के पैनल में से (नामों की व्यवस्था वर्णक्रम के अनुसार होगी) कुलाध्यक्ष द्वारा की जाएगी:

                परन्तु यदि कुलाध्यक्ष इस प्रकार सिफारिश किए गए व्यक्तियों में से किसी का अनुमोदन नहीं करता है तो वह नई सिफारिश करने के लिए कह सकेगा ।

                (3) खंड (2) में निर्दिष्ट समिति में तीन सदस्य होंगे, जिनमें से दो प्रबन्ध बोर्ड द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे और एक कुलाध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा तथा कुलाध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट व्यक्ति समिति का संयोजक होगा:

                परन्तु कोई ऐसा व्यक्ति, जो विश्वविद्यालय या किसी सहबद्ध महाविद्यालय का कर्मचारी है या विश्वविद्यालय के किसी प्राधिकरण का सदस्य है, समिति का सदस्य होने के लिए नामनिर्दिष्ट नहीं किया जाएगा ।

                (4) कुलपति उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि के लिए या जब तक कि वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है, जो भी पूर्वतर हो, पद धारण करेगा और वह पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा:

                परन्तु कुलाध्यक्ष किसी कुलपति से उसकी अवधि के पर्यवसित हो जाने के पश्चात् ऐसी अवधि के लिए, जो एक वर्ष की कुल अवधि से अधिक न हो, जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, पद पर बने रहने की अपेक्षा कर सकेगा ।

                (5) कुलपति की उपलब्धियां और सेवा की अन्य शर्तें निम्नलिखित होंगी: –

                (i) कुलपति को 3,000 रुपए प्रतिमास वेतन दिया जाएगा और वह विश्वविद्यालय की कार का मुफ्त उपयोग करने के लिए और अपनी पूर्ण पदावधि के दौरान बिना किराया दिए सुसज्िजत निवास स्थान का हकदार होगा तथा ऐसे निवास स्थान को बनाए रखने के बारे में स्वयं कुपलति को कोई प्रभार नहीं देना होगा ।

                (ii) उक्त उपखण्ड (i) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त कुलपति ऐसे अन्य भत्तों का हकदार होगा जो विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को समय-समय पर अनुज्ञेय हैं ।

                (iii) कुलपति ऐसी सेवांत प्रसुविधाओं और भत्तों का, जो प्रबन्ध बोर्ड द्वारा कुलाध्यक्ष के अनुमोदन से समय-समय पर नियत किए जाएं, हकदार होगा:

                परन्तु जहां विश्वविद्यालय या किसी महविद्यालय का या किसी अन्य विश्वविद्यालय का या ऐसे अन्य विश्वविद्यालय द्वारा चलाई जाने वाली या उससे सहबद्ध किसी संस्था का कोई कर्मचारी कुलपति नियुक्त किया जाता है वहां उसे ऐसी भविष्य निधि में, जिसका वह सदस्य है, अभिदाय करते रहने के लिए अनुज्ञात किया जा सकेगा और विश्वविद्यालय भविष्य निधि में ऐसे व्यक्ति के खाते में उसी दर से अभिदाय करेगा जिससे ऐसा व्यक्ति कुलपति के रूप में अपनी नियुक्ति के ठीक पूर्व अभिदाय कर रहा था :

                परन्तु यह और कि जहां ऐसा कर्मचारी किसी पेंशन स्कीम का सदस्य रहा है, वहां विश्वविद्यालय ऐसी स्कीम में आवश्यक अभिदाय करेगा ।

                (iv) कुलपति ऐसी दरों पर जो प्रबन्ध बोर्ड द्वारा नियत की जाएं यात्रा भत्ते का हकदार होगा ।

                (v) कुलपति अपनी सक्रिय सेवा की अवधि के ग्यारहवें भाग तक पूरे वेतन पर छुट्टी पाने का हकार होगा ।

                (vi) उपखंड (v) में निर्दिष्ट छुट्टी के अतिरिक्त कुलपति सेवा के प्रत्येक पूर्ण वर्ष प्रत्येक पूर्ण वर्ष के लिए बीस दिन प्रति वर्ष की दर से अर्ध-वेतन छुट्टी के लिए हकदार होगा और अर्ध-वेतन छुट्टी का चिकित्सीय प्रमाणपत्र पर पूरे वेतन पर परिवर्तित छुट्टी के रूप में उपभोग किया जा सकेगा ।

                (6) यदि कुलपति का पद मृत्यु, त्यागपत्र के कारण या अन्यथा रिक्त हो जाता है या वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में खराब स्वास्थ्य या किसी अन्य कारण से असमर्थ है तो ज्येष्ठतम प्रतिकुलपति कुलपति के कृत्यों का निर्वहन करेगा और यदि कोई प्रतिकुलपति नहीं है तो विश्वविद्यालय का ज्येष्ठतम निदेशक तब तक कुलपति के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा जब तक, यथास्थिति, नया कुलपति पद ग्रहण नहीं कर लेता है या वर्तमान कुलपति अपने पद के कर्तव्य नहीं संभाल लेता है ।

2. कुलपति की शक्तियां और कृत्य

                (1) कुलपति प्रबंध बोर्ड, विद्या परिषद्, योजना बोर्ड और वित्त समिति का पदेन अध्यक्ष होगा ।

                (2) कुलपति विश्वविद्यालय के किसी अन्य प्राधिकरण या अन्य निकाय के किसी अधिवेशन में उपस्थित होने और बोलने का हकदार होगा किन्तु वह तब तक जब तक वह ऐसे प्राधिकरण या निकाय का सदस्य नहीं है, उसमें मतदान करने का हकदार नहीं होगा ।

                (3) यह देखना कुलपति का कर्तव्य होगा कि इस अधिनियम, परिनियमों, अध्यादेशों और विनियमों का सम्यक् रूप से पालन किया जाए और ऐसा पालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सभी शक्तियां उसे प्राप्त होंगी ।

                (4) कुलपति विश्वविद्यालय के कार्यकलापों पर नियंत्रण का प्रयोग करेगा और विश्वविद्यालय के सभी प्राधिकरणों के विनिश्चयों को प्रभावी करेगा ।

                (5) कुलपति को विश्वविद्यालय में उचित अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक सभी शक्तियां होंगी, और वह ऐसी कोई शक्तियां ऐसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को प्रत्यायोजित कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।

                (6) कुलपति विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी को छुट्टी मंजूर करने लिए सशक्त होगा और वह ऐसे अधिकारी की अनुपस्थिति के दौरान उसके कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक प्रबंध करेगा ।

                (7) कुलपति विश्वविद्यालय के किसी कर्मचारी को नियमों के अनुसार छुट्टी मंजूर करेगा और यदि वह ऐसा चाहे तो विश्वविद्यालय के किसी दूसरे अधिकारी को अपनी ऐसी शक्तियां प्रत्यायोजित करेगा ।

                (8) कुलपति को प्रबंध बोर्ड, विद्या परिषद् और वित्त समिति के अधिवेशन बुलाने या बुलवाने की शक्ति होगी ।

                (9) कुलपति को निम्नलिखित अतिरिक्त शक्तियां होंगी: –

                (i) ऐसे आचार्यों, उपाचार्यों, प्राध्यापकों और अन्य शिक्षकों तथा शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द को, जो आवश्यक हो, प्रबंध बोर्ड के पूर्व अनुमोदन से नियुक्त करना;

                (ii) पाठ्यक्रम लेखकों, आलेखकों, परामर्शदाताओं, कार्यक्रमकों, कलाकारों और ऐसे अन्य व्यक्तियों को, जो विश्वविद्यालय के कुशल कार्यकरण के लिए आवश्यक समझे जाएं, नियुक्त करना;

                (iii) ऐसी अवधि के लिए, जो एक समय में छह मास से अधिक नहीं होगी, अपेक्षित व्यक्तियों की जो विश्वविद्यालय के कृत्यों के लिए आवश्यक समझे जाएं लघु अवधि के लिए नियुक्ति करना;

                (iv) विभिन्न स्थानों पर, जो समय-समय पर अपेक्षित हों, प्रादेशिक और अध्ययन केन्द्र स्थापित करने के लिए और उन्हें चलाने के लिए व्यवस्था करना और ऐसी शक्तियां जो उनके दक्ष कार्यकरण के लिए आवश्यक हों, किसी कर्मचारी को प्रत्यायोजित करना;

3. प्रतिकुलपति-

                (1) प्रत्येक प्रतिकुलपति, कुलपति की सिफारिश पर प्रबंध बोर्ड द्वारा नियुक्त किया जाएगा:

                परन्तु जहां कुलपति की कोई सिफारिश प्रबंध बोर्ड द्वारा स्वीकार नहीं की जाती है वहां मामला कुलाध्यक्ष को निर्देशित किया जाएगा जो या तो कुलपति द्वारा सिफारिश किए गए व्यक्ति को नियुक्त कर सकेगा या कुलपति से अनुरोध कर सकेगा कि वह प्रबंध बोर्ड द्वारा विचार के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की सिफारिश करे:

                परन्तु यह और कि प्रबंध बोर्ड, कुलपति की सिफारिश पर किसी आचार्य को आचार्य के रूप में अपने कृत्यों के अतिरिक्त प्रतिकुलपति के कृत्यों का पालन करने के लिए नियुक्त कर सकेगा ।

                (2) प्रतिकुलपति की पदावधि वह होगी जो प्रबंध बोर्ड द्वारा विनिश्चित की जाए किन्तु वह किसी भी दशा में तीन वर्ष से या जब तक कि कुलपति की पदावधि का अवसान नहीं होता है, जो भी पूर्वतर हो, अधिक नहीं होगी और वह पुर्नियुक्ति का पात्र होगा:

                परन्तु प्रतिकुलपति पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर सेवा से निवृत्त हो जाएगा:

                परन्तु यह और कि प्रतिकुलपति, परिनियम 1 के खंड (6) के अधीन कुलपति के कृत्यों का पालन करते समय, प्रतिकुलपति के रूप में अपनी पदावधि का पर्यवसान हो जाने पर भी, यथास्थिति, जब तक कि नया कुलपति पद ग्रहण नहीं कर लेता है, या जब तक कि वर्तमान कुलपति अपने पद के कर्तव्यों को संभाल नहीं लेता है, पद पर बना रहेगा ।

                (3) (क) प्रतिकुलपति का वेतन, 2,750 रुपए प्रतिमास होगा और यदि कोई आचार्य, उस रूप में अपने कृत्यों के अतिरिक्त प्रतिकुलपति के कृत्यों का पालन करने के लिए नियुक्त किया जाता है तो वह अपने मूल पद का वेतन धन, 500 रुपए प्रतिमास विशेष वेतन, जो भी कम हो, प्राप्त करेगा ।

                (ख) प्रत्येक प्रतिकुलपति अपनी पूर्ण पदावधि के दौरान बिना किराया दिए सुसज्िजत निवास-स्थान का हकदार होगा और ऐसे निवास-स्थान को बनाए रखने के बारे में स्वयं प्रतिकुलपति को कोई प्रभार नहीं देना होगा ।

                (ग) उक्त खंड (क) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त प्रतिकुलपति ऐसे अन्य भत्तों का हकदार होगा, जो विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को समय-समय पर अनुज्ञेय हों ।

                (घ) प्रत्येक प्रतिकुलपति ऐसी सेवांत प्रसुविधाओं का हकदार होगा, जो प्रबंध बोर्ड द्वारा समय-समय पर नियत की जाएं ।

                (ङ) प्रतिकुलपति विश्वविद्यालय की अभिदायी भविष्य निधि में अपनी पदावधि की समाप्ति तक अभिदाय करने का हकदार होगा:

                परन्तु जहां विश्वविद्यालय या किसी महाविद्यालय या किसी विश्वविद्यालय या ऐसे अन्य विश्वविद्यालय द्वारा चलाई जा रही या उससे सहबद्ध किसी संस्था का कोई कर्मचारी प्रतिकुलपति के रूप में नियुक्त किया जाता है वहां वह उसी सेवानिवृत्ति प्रसुविधा स्कीम द्वारा, जिसका वह प्रतिकुलपति के रूप में अपनी नियुक्ति के पूर्व हकदार था, जब तक वह उस पद पर धारणाधिकार बनाए रखता है, शासित होता रहेगा, किन्तु इस उपखंड के अधीन साधारण भविष्य निधि में अभिदाय और विश्वविद्यालय अभिदायी भविष्य निधि में अभिदाय के प्रयोजन के लिए वेतन प्रतिकुलपति के रूप में उसके द्वारा लिया गया वेतन होगा ।

                (च) प्रत्येक प्रतिकुलपति ऐसे विषयों के संबंध में जो कुलपति द्वारा इस निमित्त समय-समय पर विनिर्दिष्ट किए जाएं कुलपति की सहायता करेगा और ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन भी करेगा जो उसे कुलपति द्वारा प्रत्यायोजित किए जाएं ।

4. निदेशक-

                (1) प्रत्येक निदेशक, –

                                (i) ऐसे अभ्यर्थी की दशा में, जो पहले से ही विश्वविद्यालय का शिक्षक है, कुलपति की, और

                (ii) ऐसे अभ्यर्थी की दशा में, जो विश्वविद्यालय के बाहर से नियुक्त किया जाता है, इस प्रयोजन के लिए गठित चयन समिति की,

सिफारिश पर प्रबंध बोर्ड द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

                (2) प्रत्येक निदेशक विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक वैतनिक अधिकारी होगा:

                परन्तु निदेशकों में से एक, शिक्षकों के प्रशासनिक कार्यकलापों का भारसाधक होगा ।

                (3) निदेशक की उपलब्िधयां और सेवा की अन्य शर्तें अध्यादेशों द्वारा विहित की जाएंगी:

                परन्तु निदेशक साठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर सेवानिवृत्त हो जाएगा ।

                (4) निदेशक ऐसी शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करेगा जो अध्यादेशों द्वारा विहित किए जाएं ।

5. कुलसचिव

                (1) प्रत्येक कुलसचिव इस प्रयोजन के लिए गठित चयन समिति की सिफारिश पर, प्रबंध बोर्ड द्वारा नियुक्त किया जाएगा और वह विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक वैतनिक अधिकारी होगा ।

                (2) कुलसचिव की उपलब्धियां और सेवा की अन्य शर्तें अध्यादेशों द्वारा विहित की जाएंगी:

                परन्तु कुलसचिव साठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर सेवानिवृत्त हो जाएगा ।

                (3) प्रबंध बोर्ड द्वारा पदाभिहित कुलसचिव को ऐसे कर्मचारियों के विरुद्ध, शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के अन्य सदस्यों का अपवर्जन करते हुए, जो प्रबंध बोर्ड द्वारा आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं, अनुशासनिक कार्रवाई करने की शक्ति होगी ।

                (4) खंड (3) के अनुसरण में कुलसचिव के किसी आदेश के विरुद्ध अपील प्रबंध बोर्ड द्वारा इस प्रकार पदाभिहित किए गए किसी अधिकारी को होगी ।

                (5) उन मामलों में जहां किसी जांच से यह प्रकट होता है कि कुलसचिव की शक्तियों के बाहर का कोई दण्ड अपेक्षित है तो कुलसचिव जांच के पूरा होने पर कुलपति को रिपोर्ट अपनी सिफारिशों के साथ ऐसी कार्रवाई के लिए देगा, जो कुलपति ठीक समझे:

                परन्तु कुलपति के कोई शास्ति अधिरोपित करने वाले किसी आदेश के विरुद्ध अपील प्रबंध बोर्ड को होगी ।

                (6) ऐसा कुलसचिव जो प्रबन्ध बोर्ड द्वारा अभिहित किया जाता है: –

                                (i) प्रबन्ध बोर्ड का सचिव होगा;

                                (ii) विद्या परिषद् का सदस्य सचिव होगा;

                                (iii) योजना बोर्ड का सदस्य सचिव होगा ।

                (7) इस प्रकार पदाभिहित कुलसचिव-

                (क) अभिलेखों, सामान्य मुद्रा और विश्वविद्यालय की ऐसी अन्य संपत्ति का, जो प्रबन्ध बोर्ड उसके भारसाधन में सुपुर्द करे, अभिरक्षक होगा ।

                (ख) प्रबन्ध बोर्ड, विद्या परिषद् और योजना बोर्ड और उन प्राधिकरणों द्वारा नियुक्त की गई समितियों को सूचनाएं जारी करेगा और उनके अधिवेशन बुलाएगा ।

                (ग) प्रबन्ध बोर्ड, विद्या परिषद् और योजना बोर्ड और प्राधिकरणों द्वारा नियुक्त समितियों के अधिवेशनों का कार्यवृत्त रखेगा ।

                (घ) प्रबन्ध बोर्ड, विद्या परिषद् और योजना बोर्ड की शासकीय कार्यवाहियों और पत्र-व्यवहार का संचालन करेगा ।

                (ङ) विश्वविद्यालय के प्राधिकरणों के अधिवेशनों के कार्य की सूची की प्रति, जैसे ही वह जारी की जाए और ऐसे अधिवेशनों का कार्यवृत्त कुलाध्यक्ष को देगा ।

                (च) विश्वविद्यालय द्वारा या उसके विरुद्ध वादों या कार्यवाहियों में विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करेगा, मुख्तारनामों पर हस्ताक्षर करेगा, अभिकथनों का सत्यापन करेगा और इस प्रयोजन के लिए अपना प्रतिनिधि प्रतिनियुक्त   करेगा ।

                (छ) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करेगा जो परिनियमों, अध्यादेशों या विनियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं अथवा जिनकी प्रबन्ध बोर्ड या कुलपति द्वारा समय-समय पर अपेक्षा की जाए ।

6. वित्त अधिकारी

                (1) वित्त अधिकारी इस प्रयोजन के लिए गठित चयन समिति की सिफारिश पर, प्रबंध बोर्ड द्वारा नियुक्त किया जाएगा और वह विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक वैतनिक अधिकारी होगा और कुलपति के नियंत्रण के अधीन कार्य करेगा ।  

                (2) वित्त अधिकारी की उपलब्धियां और सेवा की अन्य शर्तें अध्यादेशों द्वारा विहित की जाएंगी:

                परन्तु वित्त अधिकारी साठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर सेवानिवृत्त हो जाएगा ।

                (3) जब वित्त अधिकारी का पद रिक्त है या जब वित्त अधिकारी, वित्त अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में खराब स्वास्थ्य, अनुपस्थिति या अन्य किसी कारण से असमर्थ है तब उसके कृत्यों का पालन ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाएगा जिसे कुलपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे ।

                (4) वित्त अधिकारी-

                (क) विश्वविद्यालय की निधियों का साधारण पर्यवेक्षण करेगा और उसकी वित्तीय नीतियों के संबंध में उसे सलाह देगा;

                (ख) ऐसे अन्य वित्तीय कृत्यों का पालन करेगा जो उसे प्रबन्ध बोर्ड द्वारा सौंपे जाएं या जो परिनियमों या अध्यादेशों द्वारा विहित किए जाएं:

                परन्तु वित्त अधिकारी एक लाख रुपए से अधिक का कोई व्यय या विनिधान प्रबन्ध बोर्ड के पूर्व अनुमोदन के बिना नहीं करेगा ।

(5) कुलपति और प्रबन्ध बोर्ड के नियंत्रण के अधीन रहते हुए वित्त अधिकारी-

                (क) विश्वविद्यालय के उद्देश्यों में से किसी की पूर्ति के लिए विश्वविद्यालय की संपत्ति और विनिधानों को, जिसके अन्तर्गत न्यास और स्थावर संपत्ति है, धारण करेगा और उसका प्रबन्ध करेगा;

                (ख) यह सुनिश्चित करेगा कि वित्त समिति द्वारा एक वर्ष के लिए नियत आवर्ती और अनावर्ती व्यय की सीमाओं से अधिक व्यय नहीं किया जाए और सभी धन का व्यय उसी प्रयोजन के लिए किया जाए जिसके लिए वह मंजूर या आबंटित किया गया था;

                (ग) विश्वविद्यालय के वार्षिक लेखा और बजट तैयार किए जाने के लिए और वित्त समिति द्वारा उन पर विचार किए जाने के पश्चात् उनको प्रबन्ध बोर्ड को प्रस्तुत करने के लिए उत्तरदायी होगा;

                (घ) नकद और बैंक अतिशेषों और विनिधानों पर बराबर नजर रखेगा;

                (ङ) आमदनी के संग्रहण की प्रगति पर नजर रखेगा और संग्रहण करने के लिए काम में लाए जाने वाले तरीकों के विषय में सलाह देगा;

                (च) यह सुनिश्चित करेगा कि विश्वविद्यालय की सम्पत्ति के रजिस्टर उचित रूप से बनाए रखे जाएं तथा विश्वविद्यालय द्वारा चलाए जाने वाले सभी अन्य कार्यालयों के, जिनके अन्तर्गत प्रादेशिक केन्द्र, अध्ययन केन्द्र, और अन्य संस्थाएं भी हैं, उपस्करों तथा खपने योग्य अन्य सामग्री के स्टाक की जांच की जाए;

                (छ) किसी अप्राधिकृत व्यय या अन्य वित्तीय अनियमितताओं की ओर कुलपति का ध्यान आकर्षित करेगा और व्यतिक्रमी व्यक्तियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई का सुझाव देगा;

                (ज) विश्वविद्यालय के किसी कार्यालय से जिसके अंतर्गत विश्वविद्यालय द्वारा चलाए जाने वाले प्रादेशिक केन्द्र, अध्ययन केन्द्र और अन्य संस्थाएं हैं ऐसी जानकारी या रिपोर्ट मांगेगा, जो वह अपने कृत्यों के पालन के लिए आवश्यक समझे ।

                (6) वित्त अधिकारी की या प्रबन्ध बोर्ड द्वारा इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत व्यक्ति या व्यक्तियों की कोई रसीद, विश्वविद्यालय को धन के संदाय के लिए पर्याप्त उन्मोचन होगी ।

7. प्रबन्ध बोर्ड की शक्तियां और कृत्य-

                (1) प्रबन्ध बोर्ड को विश्वविद्यालय की आमदनी और संपत्ति के प्रशासन और प्रबन्ध के तथा विश्वविद्यालय के सभी ऐसे प्रशासनिक कार्यकलापों के, जिनके लिए अन्यथा उपबन्ध नहीं किया गया है, संचालन की शक्ति होगी ।

                (2) अधिनियम, परिनियमों और अध्यादेशों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए प्रबन्ध बोर्ड को परिनियमों के अधीन उसमें निहित अन्य शक्तियों के अतिरिक्त निम्नलिखित शक्तियां होंगी, अर्थात्: –

                (क) अध्यापन तथा अन्य शैक्षणिक पदों का सृजन करना और विश्वविद्यालयों द्वारा नियोजित आचार्यों, उपाचार्यों, प्राध्यापकों और अन्य शिक्षकों तथा शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के कृत्य और सेवा की शर्तों को परिनिश्िचत करना;

                (ख) शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के लिए अर्हताएं विहित करना;

                (ग) ऐसे आचार्यों, उपाचार्यों, प्राध्यापकों और अन्य शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द की, जो आवश्यक हों इस प्रयोजन के लिए गठित चयन समिति की सिफारिश पर, नियुक्ति का अनुमोदन करना;

                (घ) शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द की अस्थायी रिक्तियों पर नियुक्तियों का अनुमोदन करना;

                (ङ) शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द की अस्थायी रिक्तियों पर नियुक्तियों की रीति विनिर्दिष्ट करना;

                (च) अभ्यागत आचार्यों, प्रतिष्ठित आचार्यों, अध्येताओं, कलाकारों और लेखकों की नियुक्ति के लिए उपबन्ध करना और ऐसी नियुक्तियों के निबन्धनों और शर्तों को अवधारित करना;

                (छ) विश्वविद्यालय के वित्त, लेखाओं, विनिधानों, संपत्ति और सभी अन्य मामलों का प्रबन्ध और विनियमन करना और ऐसे अभिकर्ताओं को नियुक्त करना, जो उपयुक्त समझे जाएं;

                (ज) विश्वविद्यालय के किसी धन को, जिसके अंतर्गत कोई अनुपयोजित आय है, ऐसे स्टाकों, निधियों, शेयरों या प्रतिभूतियों में विनिहित करना जो वह ठीक समझे या भारत में स्थावर संपत्ति के क्रय में विनिहित करना जिसमें ऐसे विनिधानों में समय-समय पर उसी प्रकार परिवर्तन करने की शक्ति भी हैं परन्तु इस खण्ड के अधीन कोई कार्रवाई वित्त समिति से परामर्श किए बिना नहीं की जाएगी;

                (झ) वित्त समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखने के पश्चात् प्रशासनिक, अनुसचिवीय और अन्य आवश्यक पदों का सृजन करना और उन पर नियुक्ति की रीति विनिर्दिष्ट करना; 

                (ञ) कर्मचारियों में परिनियमों और अध्यादेशों के अनुसार अनुशासन का विनियमन करना और उसका पालन कराना;

                                (ट) विश्वविद्यालय की ओर से किसी स्थावर या जंगम संपत्ति का अंतरण करना या अन्तरण स्वीकार करना; 

                (ठ) विश्वविद्यालय के ऐसे कर्मचारियों और छात्रों की, जो किसी कारण से अपने को व्यथित अनुभव करें शिकायतों को ग्रहण करना, उनका न्यायनिर्णयन करना और उन शिकायतों को दूर करना; 

                (ड) वित्त समिति से परामर्श करने के पश्चात् पाठ्यक्रम लेखकों, परामर्शदाताओं, परीक्षकों और अधीक्षकों को संदेय पारिश्रमिक और संदेय यात्रा भत्ते तथा अन्य भत्ते, नियत करना;

                (ढ) विश्वविद्यालय के लिए सामान्य मुद्रा का चयन करना और ऐसी मुद्रा के उपयोग की व्यवस्था करना;

                (ण) अपनी शक्तियों में से किसी शक्ति को कुलपति, प्रतिकुलपति, कुलसचिव, वित्त अधिकारी या विश्वविद्यालय के ऐसे अन्य अधिकारी, कर्मचारी या प्राधिकरण को या अपने द्वारा नियुक्त किसी समिति को प्रत्यायोजित करना;

                (त) अध्येतावृत्तियां, छात्रवृत्तियां, अध्ययनवृत्तियां, संस्थित करना; और

                (थ) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करना और ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना, जो इस अधिनियम या परिनियमों द्वारा उसे प्रदत्त की जाएं या उस पर अधिरोपित किए जाएं ।

                (3) प्रबन्ध बोर्ड विश्वविद्यालय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विश्वविद्यालय की ऐसी सभी शक्ितयों का प्रयोग करेगा जिनके लिए अधिनियम, परिनियमों, अध्यादेशों और विनियमों में अन्यथा उपबन्ध नहीं किया गया है । 

8. प्रबन्ध बोर्ड के अधिवेशन के लिए गणपूर्ति

                बोर्ड के अधिवेशनों के लिए गणपूर्ति प्रबंध बोर्ड के छह सदस्यों से होगी ।

9. विद्या परिषद् की शक्तियां-

                अधिनियम, परिनियमों और अध्यादेशों के अधीन रहते हुए, विद्या परिषद् को, परिनियमों के अधीन उसमें निहित सभी शक्तियों के अतिरिक्त, निम्नलिखित शक्तियां होंगी, अर्थात्: –

                (क) विश्वविद्यालय की शैक्षणिक नीतियों पर साधारण पर्यवेक्षण रखना और शिक्षण के तरीकों, अनुसंधान के मूल्यांकन या शैक्षिक स्तरों में सुधार के बारे में निदेश देना;

                (ख) साधारण शैक्षणिक अभिरुचि के विषयों पर स्वप्रेरणा से या योजना बोर्ड या अध्ययन विद्यापीठ अथवा प्रबन्ध बोर्ड द्वारा निर्देशित किए जाने पर विचार करना और उन पर समुचित कार्रवाई करना; और

                (ग) परिनियमों और अध्यादेशों से संगत ऐसे विनियम और नियम बनाना जो विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यकरण, अनुशासन, प्रवेश, अध्येतावृत्तियों और छात्रवृत्तियों के दिए जाने, फीस और शैक्षणिक अपेक्षाओं के संबंध में हों ।

10. योजना बोर्ड-

                (1) योजना बोर्ड में दस सदस्यों से अनधिक सदस्य होंगे ।

                (2) कुलपति से भिन्न योजना बोर्ड के सभी सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे ।

                (3) योजना बोर्ड का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह विश्वविद्यालय के समुचित कार्यक्रमों और क्रियाकलापों की परिकल्पना और रचना करे तथा उसे इसके अतिरिक्त प्रबन्ध बोर्ड और विद्या परिषद् को किसी अन्य विषय पर जो वह विश्वविद्यालय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक समझें, सलाह देने का अधिकार होगा:

                परन्तु यदि योजना बोर्ड और विद्या परिषद् के बीच किसी विषय पर मतभेद है तो वह विषय प्रबन्ध बोर्ड को निर्देशित किया जाएगा, जिसका विनिश्चय अन्तिम होगा ।

                (4) योजना बोर्ड, विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों की योजना बनाने और उन्हें मानीटर करने के लिए ऐसी समितियों का गठन कर सकेगा जो आवश्यक हों ।

                (5) योजना बोर्ड का अधिवेशन ऐसे अन्तरालों पर होगा, जो वह समीचीन समझे किन्तु उसका अधिवेशन एक वर्ष में कम से कम दो बार अवश्य होगा ।

11. वित्त समिति-

                (1) वित्त समिति में सात सदस्यों से अनधिक सदस्य होंगे ।

                (2) कुलपति से भिन्न वित्त समिति के सभी सदस्य उन तारीखों से जिनको वे समिति के सदस्य होते हैं, तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे । 

(3) समिति के अधिवेशन के लिए गणपूर्ति वित्त समिति के चार सदस्यों से होगी ।

                (4) लेखाओं की परीक्षा करने और व्यय की संवीक्षा करने के लिए वित्त समिति का अधिवेशन वर्ष में कम से कम तीन बार होगा ।

                (5) श्रेणी के पुनरीक्षण, वेतनमान बढ़ाने, और उन मदों से, जो बजट में सम्मिलित नहीं हैं, संबंधित सभी प्रस्तावों की, प्रबन्ध बोर्ड द्वारा उन पर विचार किए जाने के पूर्व वित्त समिति द्वारा परीक्षा की जाएगी ।

                (6) वित्त अधिकारी द्वारा तैयार किए गए विश्वविद्यालय के वार्षिक लेखे और वित्तीय प्राक्कलन वित्त समिति के समक्ष विचार और टीका-टिप्पणी के लिए रखे जाएंगे और उसके पश्चात् प्रबन्ध बोर्ड को समिति द्वारा नियत की गई अधिकतम सीमा के भीतर प्रस्तुत किए जाएंगे ।

                (7) वित्त समिति वर्ष में कुल आवर्ती और अनावर्ती व्यय के लिए सीमाएं नियत करेगी, जो विश्वविद्यालय की आय और उसके साधनों पर आधारित होगी और विश्वविद्यालय द्वारा इस प्रकार नियत की गई सीमाओं से अधिक कोई व्यय नहीं किया जाएगा । 

12. चयन समितियां-

                (1) आचार्यों, उपाचार्यों, प्राध्यापकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द तथा विश्वविद्यालय द्वारा चलाई जाने वाली संस्थाओं के प्रधानों के पदों पर नियुक्तियों के लिए प्रबन्ध बोर्ड को सिफारिश करने के लिए चयन समितियां होंगी ।

                (2) आचार्यों, उपाचार्यों, प्राध्यापकों और शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के पदों पर नियुक्ति करने के लिए प्रत्येक चयन समिति में निम्नलिखित सदस्य होंगे, अर्थात्: –

                                (क) कुपलति;

                                (ख) प्रतिकुलपति या कुलपति द्वारा नामनिर्देशित सम्बन्धित विद्यापीठ का निदेशक;

                                (ग) कुलाध्यक्ष द्वारा नामनिर्देशित व्यक्ति; और

                (घ) तीन विशेषज्ञ, जो विश्वविद्यालय से संबंधित नहीं होंगे और जो कुलपति द्वारा ऐसी रीति से, जो इन अध्यादेशों में विनिर्दिष्ट की जाए, नामनिर्देशित किए जाएंगे ।

                (3) चयन समिति के अधिवेशन के लिए गणपूर्ति चार सदस्यों से होगी, जिनमें कम से कम दो विशेषज्ञ सम्मिलित होंगे ।

                (4) सिफारिश करने में चयन समिति द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया अध्यादेशों में अधिकथित की जाएगी ।

                (5) यदि प्रबन्ध बोर्ड चयन समिति द्वारा की गई सिफारिशों को स्वीकार करने में असमर्थ है तो वह ऐसे स्वीकार न करने के लिए अपने कारणों को अभिलिखित करेगा और उस मामले को अन्तिम आदेशों के लिए कुलाध्यक्ष को प्रस्तुत करेगा ।

13. नियुक्ति का विशेष ढंग

                (1) परिनियम 12 में किसी बात के होते हुए भी, प्रबन्ध बोर्ड उच्च शैक्षिक विशिष्टिता तथा वृत्तिक योग्यता वाले व्यक्ति को ऐसे निबंधनों और शर्तों पर जो वह ठीक समझे, विश्वविद्यालय में आचार्य या उपाचार्य का पद अथवा कोई अन्य समतुल्य शैक्षणिक पद स्वीकार करने के लिए आमंत्रित कर सकेगा और उस व्यक्ति को ऐसे पद पर नियुक्त कर सकेगा ।

                (2) प्रबन्ध बोर्ड ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो बोर्ड द्वारा, परिनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट रीति के अनुसार अवधारित की जाएं, अध्यापन के लिए या किसी परियोजना अथवा किसी कार्य का जिम्मा लेने के लिए किसी अन्य विश्वविद्यालय या संगठन में कार्य करने वाले किसी शिक्षक या किसी अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द को नियुक्त कर सकेगा ।      

14. नियत अवधि के लिए नियुक्ति

                प्रबन्ध बोर्ड परिनियमों में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार चुने गए किसी व्यक्ति को नियत अवधि के लिए ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, नियुक्त कर सकेगा ।

15. मान्यताप्राप्त शिक्षक

                (1) अन्य विश्वविद्यालयों या संस्थाओं या संगठनों में कार्य करने वाले व्यक्तियों की शिक्षकों के रूप में मान्यता के लिए अर्हताएं वे होंगी, जो अध्यादेशों द्वारा विहित की जाएं ;

                (2) शिक्षकों को मान्यता देने की रीति, मान्यता की अवधि और मान्यता वापिस लेना अध्यादेशों द्वारा विहित किया जाएगा ।

16. समितियां-

                (1) विश्वविद्यालय का कोई प्राधिकरण उतनी स्थायी या विशेष समितियां नियुक्त कर सकेगा जो वह ठीक समझे, और ऐसी समितियों में ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त कर सकेगा जो उस प्राधिकरण के सदस्य नहीं हैं ।

                (2) खण्ड (1) के अधीन नियुक्त कोई समिति किसी ऐसे विषय में कार्यवाही कर सकेगी जो उसे प्रत्यायोजित किया जाए किन्तु नियुक्ति करने वाले प्राधिकरण द्वारा बाद में उसकी पुष्टि की जानी अपेक्षित होगी ।

17. विश्वविद्यालय के शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द की सेवा के निबंधन और शर्तें तथा आचरण संहिता-

                (1) विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द तत्प्रतिकूल किसी संविदा के न होने पर सेवा के ऐसे निबंधनों और शर्तों तथा आचरण संहिता द्वारा शासित होंगे जो परिनियमों और अध्यादेशों में विनिर्दिष्ट हैं ।

                (2) विश्वविद्यालय का प्रत्येक शिक्षक और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द का सदस्य लिखित संविदा पर नियुक्त किया जाएगा जिसका प्ररूप परिनियमों में विनिर्दिष्ट होगा ।

                (3) खण्ड (2) में निर्दिष्ट प्रत्येक संविदा की एक प्रति कुलसचिव के पास रखी जाएगी ।

18. विश्वविद्यालय के अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबंधन और शर्तें तथा आचरण संहिता-

                विश्वविद्यालय के शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द से भिन्न विश्वविद्यालय के सभी कर्मचारी, तत्प्रतिकूल किसी संविदा के न होने पर सेवा के ऐसे निबंधनों और शर्तों तथा आचरण संहिता द्वारा शासित होंगे, जो परिनियमों और अध्यादेशों में विनिर्दिष्ट हैं ।

19. विश्वविद्यालय के कर्मचारियों का हटाया जाना

                (1) जहां विश्वविद्यालय के किसी शिक्षक, शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के किसी सदस्य या अन्य कर्मचारी के विरुद्ध अवचार का कोई अभिकथन हो वहां शिक्षक या शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के किसी सदस्य की दशा में कुलपति और कर्मचारी की दशा में उसको नियुक्त करने के लिए सक्षम प्राधिकारी (जिसे इसमें इसके पश्चात् नियुक्ति प्राधिकारी कहा गया है) लिखित आदेश द्वारा, ऐसे शिक्षक, शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के सदस्य या अन्य कर्मचारी को निलम्बित कर सकेगा और प्रबंध बोर्ड को उन परिस्थितियों की तुरन्त रिपोर्ट देगा,   जिनमें आदेश किया गया था ।

                (2) कर्मचारियों की नियुक्ति की संविदा के निबन्धनों में या सेवा के किसी अन्य निबन्धन और शर्तों में किसी बात के होते   हुए भी, शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के संबंध में प्रबन्ध बोर्ड और अन्य कर्मचारियों के संबंध में नियुक्ति प्राधिकारी को, यथास्थिति, शिक्षक या शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के किसी सदस्य या अन्य कर्मचारी को अवचार के आधार पर हटाने की शक्ति होगी ।

                (3) यथापूर्वोक्त के सिवाय, यथास्थिति, प्रबन्ध बोर्ड या नियुक्ति प्राधिकारी किसी शिक्षक या शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के सदस्य या अन्य कर्मचारी को हटाने का तभी हकदार होगा जब उसके लिए उचित कारण हों और उसे तीन मास की सूचना दे दी गई हो या सूचना के बदले उसे तीन मास के वेतन का संदाय कर दिया गया हो ।

                (4) किसी शिक्षक, शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के सदस्य या अन्य कर्मचारी को खण्ड (2) या खण्ड (3) के अधीन तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक उसे उसके बारे में की जाने के लिए प्रस्थापित कार्रवाई के विरुद्ध कारण दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो ।

                (5) किसी शिक्षक, शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द के सदस्य या अन्य कर्मचारी का हटाया जाना उस तारीख से प्रभावी होगा जिसको हटाने का आदेश किया जाता है:

                परन्तु जहां कोई शिक्षक, शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द का सदस्य या अन्य कर्मचारी उसके हटाए जाने के समय निलंबित है वहां उसका हटाया जाना उस तारीख से प्रभावी होगा जिसको वह निलम्बित किया गया था ।

                (6) इस परिनियम के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी कोई शिक्षक, शैक्षणिक कर्मचारिवृन्द या सदस्य या अन्य कर्मचारी-

                (क) यदि वह स्थायी कर्मचारी है तो, यथास्थिति, प्रबन्ध बोर्ड या नियुक्ति प्राधिकारी को तीन मास की लिखित सूचना देने या उसके बदले तीन मास का वेतन देने के पश्चात् ही पद त्याग सकेगा;

                (ख) यदि वह स्थायी कर्मचारी नहीं है तो, यथास्थिति, प्रबन्ध बोर्ड या नियुक्ति प्राधिकारी को एक मास की लिखित सूचना देने या उसके बदले एक मास का वेतन देने के पश्चात् ही पद त्याग कर सकेगा:

                परन्तु ऐसा पद त्याग उस तारीख से प्रभावी होगा जिसको, यथास्थिति, प्रबन्ध बोर्ड या नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा वह त्यागपत्र स्वीकार किया जाता है । 

20. विश्वविद्यालय के छात्रों में अनुशासन बनाए रखना-

                (1) विश्वविद्यालय के छात्रों के संबंध में अनुशासन और अनुशासनिक कार्रवाई सम्बन्धी शक्तियां कुलपति में निहित होंगी । कुलपति अपनी सभी शक्तियां या उनमें से कोई शक्तियां, जो वह ठीक समझे, प्रत्यायोजित कर सकेगा ।

                (2) अनुशासन बनाए रखने और ऐसी कार्रवाई करने की जो उसे अनुशासन बनाए रखने के लिए समुचित प्रतीत हो, अपनी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कुलपति अपनी शक्तियों के प्रयोग में आदेश द्वारा निदेश दे सकेगा कि किसी छात्र या किन्हीं छात्रों को किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए निकाला या निष्कासित किया जाए और विश्वविद्यालय अथवा किसी मान्यताप्राप्त संस्था के पाठ्यक्रम या पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश बताई गई अवधि तक न दिया जाए या उसे उतने जुर्माने से दंडित किया जाए जो आदेश में विनिर्दिष्ट है या उसे विश्वविद्यालय अथवा किसी मान्यताप्राप्त संस्था द्वारा संचालित परीक्षा या परीक्षाओं में सम्मिलित होने से एक या अधिक वर्षों के लिए विवर्जित किया जाए अथवा संबंधित छात्र या छात्रों की किसी परीक्षा या परीक्षाओं का, जिनमें वह या वे सम्मिलित हुआ है या हुए हैं, परीक्षाफल रद्द कर दिया जाए ।

                (3) मान्यताप्राप्त संस्थाओं के प्रधानों को यह प्राधिकार होगा कि वे अपनी-अपनी संस्थाओं में छात्रों पर ऐसी सभी अनुशासनिक शक्तियों का प्रयोग करें जो उस संस्था के उचित संचालन के लिए आवश्यक हों ।


admin

Up Secondary Education Employee ,Who is working to permotion of education

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *