अनिल सिंह अध्यक्ष युवा मंच के विनिमितिकरण पर लेख

माननीय सर्वोच्च अदालत में दाखिल याचिकाओं का विश्लेषण तथा वर्तमान परिस्थितियों में चयन बोर्ड प्रतियोगियों पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए प्रतियोगियों का कर्त्तव्य=

माननीय सर्वोच्च न्यायालय में संजय सिंह एवं 39 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य की याचिका की अंतिम सुनवाई प्रारम्भ हो गयी है। इस याचिका के साथ कई अन्य याचिकाएं भी अंतिम सुनवाई हेतु जुड़ी हुई हैं। याचिका में मुख्य रूप से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ का मुख्य न्यायमूर्ति रहे डॉ (श्री) धनञ्जय यशवंत चन्द्रचूड के आदेश को चुनौती दी गयी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने दिनांक 14 जुलाई 1982 से अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति हेतु उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग और चयन बोर्ड अधिनियम 1982 का गठन किया। शिक्षकों की नियुक्ति की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को प्राप्त हो गयी। अधिनियम की धारा 18 में अस्थाई शिक्षकों की भी नियुक्ति का प्राविधान किया गया। प्रबंधतंत्र द्वारा रिक्ति का अधियाचन भेजे जाने के बाद एक वर्ष तक यदि चयन बोर्ड शिक्षक न भेजता अथवा ऐसा पद जो दो माह से अधिक समय तक रिक्त रहता उस पर प्रबंधतंत्र तदर्थ अध्यापक और प्रधानाचार्यों की नियुक्ति का सकता था। दिनांक 14 जुलाई 1992 से तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार प्रबंधतंत्र से छीन लिया गया। दिनांक 06 अगस्त 1993 तक जिला विद्यालय निरीक्षक की चयन समिति को तदर्थ शिक्षक नियुक्ति का अधिकार था। दिनांक 07 अगस्त 1993 से दिनांक 17 दिसंबर 1994 तक के लिए तदर्थ शिक्षक नियुक्ति की धारा 18 विलुप्त रही। दिनांक 18 दिसंबर 1994 को तदर्थ शिक्षक नियुक्ति हेतु पुनः धारा 18 को अधिनियम में स्थापित करके प्राविधान किया गया। तदर्थ शिक्षक नियुक्ति का अधिकार संभागीय संयुक्त शिक्षा निदेशक की समिति को दिया गया। इस समिति ने 30 दिसंबर 2000 तक काम किया। चयन बोर्ड संशोधन अधिनियम 2001 के जरिये दिनांक 30 दिसंबर 2000 से तदर्थ शिक्षक नियुक्ति का प्राविधान ख़त्म कर दिया गया। धारा 18 का अस्तित्व मात्र तदर्थ प्रधानाचार्य/प्रधानाध्यापक तक ही सीमित रह गया। प्रबंधतंत्र प्रधानाचार्य/प्रधानाध्यापक के रिक्त पद पर वरिष्ठ शिक्षक को चयन बोर्ड से प्रधानाध्यापक/प्रधानाचार्य आने तक के लिए तदर्थ रूप से नियुक्त कर सकता था।
सरकार ने समय-समय पर तदर्थ शिक्षकों को विनियमित किया। अधिनियम की धारा 16(1) और 16(2) तदर्थ शिक्षकों के विरुद्ध है इसलिए सरकार ने अध्यादेश लाकर विनियमित किया। अध्यादेश संख्या 12 वर्ष 1985 के तहत अधिनियम की धारा 33 क सृजित करके दिनांक 12 जून 1985 को तदर्थ शिक्षकों को विनियमित किया। अध्यादेश संख्या 28 वर्ष 1991 दिनांक 6 अगस्त 1991 को विनियमित किया। इसके लिए अधिनियम की धारा 33 में उप धारा 1 क, 1 ख और 1 ग का निर्माण किया। धारा 33 च से दिनांक 06 अगस्त 1993 तक के सभी तदर्थ शिक्षक विनियमित हो गए। दिनांक 22 मार्च 2016 को दिनांक 07 अगस्त 1993 से 30 दिसंबर 2000 तक सरकार द्वारा गठित चयन समिति द्वारा चयनित तदर्थ शिक्षकों और दिनांक 07 अगस्त 1993 से दिनांक 25 जनवरी 1999 तक सरकार द्वारा गठित चयन समिति द्वारा चयनित अल्पकालिक शिक्षकों को विनियमित किया गया।
दिनांक 14 जुलाई 1992 से तदर्थ शिक्षक नियुक्त करने का अधिकार प्रबंधतंत्र से छीन लिया गया परंतु आरक्षित रिक्ति पर अनारक्षित लोगों को नियुक्त करने के लिए प्रबंधतंत्र ने भी तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति करना जारी रखा। दिनांक 30 दिसंबर 2000 को तदर्थ शिक्षक का कैडर ही ख़त्म हो गया इसके बावजूद भी प्रबंधतंत्र ने अनवरत तदर्थ शिक्षक नियुक्त करना जारी रखा। चयन बोर्ड से शिक्षक आने तक के लिए माननीय उच्च न्यायालय तदर्थ शिक्षकों को वेतन देने का आदेश कर देता था।
जब 30 दिसंबर 2000 तक के तदर्थ/अल्पकालिक शिक्षकों का विनियमितीकरण हुआ तो इस अवधि में प्रबंधतंत्र द्वारा नियुक्त तदर्थ शिक्षकों ने भी विनियमितीकरण की मांग शुरू कर दी और माननीय उच्च न्यायालय से प्रत्यावेदन निस्तारण का आदेश भी प्राप्त कर लिया।
वर्ष 2012 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ की एकल पीठ ने प्रबंधतंत्र द्वारा नियुक्त संजय सिंह समेत तमाम तदर्थ शिक्षक याचियों को चयन बोर्ड से शिक्षक आने तक के लिए वेतन का आदेश कर दिया। एकल पीठ ने कहा कि चयन बोर्ड संशोधन अधिनियम 2001 के बाद दिनांक 30 दिसंबर 2000 से तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो सकती है लेकिन चयन बोर्ड असफल है इसलिए चयन बोर्ड से शिक्षक आने तक के लिए तदर्थ शिक्षक को वेतन दिया जाये। जबकि चयन बोर्ड 2001 से अनवरत भर्ती कर रहा था। उन्ही रिक्तियों पर शिक्षक नहीं आये जिसके अधियाचन में त्रुटि थी। वर्ष 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने अधिनियम की धारा 16 (1) और 16(2) के विरूद्ध प्रबंधतंत्र द्वारा नियुक्त तदर्थ शिक्षक प्रदीप कुमार की वेतन मांग की याचिका खारिज कर दी। इस तरह दो एकल पीठ के आदेश परस्पर विरोधी हो गए।
लोकमान्य तिलक इंटर कॉलेज प्रतापगढ़ से दिनांक 30 जून 2013 को हिंदी प्रवक्ता राम कृष्ण मिश्र सेवानिवृत हो गए। पद अनुसूचित जाति आरक्षित हो गया। पद का अधियाचन चयन बोर्ड को नहीं पहुंचा और प्रबंधतंत्र ने आरक्षित की रिक्ति पर अनारक्षित अभिषेक त्रिपाठी को नियुक्त कर दिया। अभिषेक त्रिपाठी वेतन मांगने लखनऊ उच्च न्यायालय गए और बताया कि चयन बोर्ड शिक्षक नहीं भेज रहा है अतः उन्हें वेतन दिया जाए। उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने बताया कि दिनांक 30 दिसंबर 2000 तक के तदर्थ शिक्षकों को वह विनियमित कर चुकी है। इसके बाद से तदर्थ शिक्षक नियुक्ति का प्राविधान ख़त्म है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय प्रदीप कुमार को वेतन देने से इंकार कर चुकी है। न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने याचिका को दो न्यायमूर्तियों की पीठ को भेज दिया। न्यायमूर्ति डॉ धनञ्जय चन्द्रचूड ने तीन न्यायमूर्तियों की पीठ में संतोष कुमार सिंह का मामला निपटाया था जो कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921 की धारा 16 ङ 11 से सम्बंधित था। उन्हें संपूर्ण इतिहास पता था इसलिए संजय सिंह मामले का वेतन देने का आदेश निरस्त कर दिया और प्रदीप कुमार का वेतन न देने का आदेश बहाल कर दिया। संपूर्ण याचिकाओं को निस्तारण हेतु एकल पीठ भेज दिया। एकल पीठ में न्यायमूर्ति श्री राजन रॉय ने शैलेंद्र कुमार सहित सभी वेतन मांग की याचिकाएं ख़ारिज कर दी। न्यायमूर्ति डॉ चन्द्रचूड के दो न्यायमूर्तियों के आदेश को संजय सिंह ने अभिषेक त्रिपाठी सहित 39 अन्य याचियों को साथ लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी और डॉ चन्द्रचूड जी के आदेश पर स्थगन प्राप्त कर लिया। संजय सिंह के स्थगन पाने के बाद शैलेंद्र कुमार ने न्यायमूर्ति राजन रॉय के यहाँ पुनर्विचार याचिका दाखिल की लेकिन न्यायमूर्ति राजन रॉय ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
सुशील कुमार यादव, अजय कुमार अस्थाना ने 11 महीने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वेतन की मांग की तो न्यायमूर्ति श्री सुनीत कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय से संजय सिंह केस के निस्तारण के पूर्व तक के लिए 11 महीने के लिए वेतन का आदेश कर दिया। न्यायमूर्ति ने कहा कि चयन बोर्ड को अधियाचन भेजकर चयन बोर्ड से शिक्षक आने तक के लिए 11 महीने तक वेतन दे सकते हैं। संजय सिंह केस में सर्वोच्च न्यायालय से जो फैसला होगा वह इस आदेश पर प्रभावी होगा।
11 महीना बीतने पर जिला विद्यालय निरीक्षक जौनपुर श्री ब्रजेश मिश्र ने वेतन रोक दिया तो अजय कुमार अस्थाना ने अवमानना याचिका दाखिल कर दी। युवा मंच नामक प्रतियोगी छात्रों के संगठन ने अवमानना कोर्ट में जस्टिस श्री सुनीत कुमार को बताना चाहा कि चयन बोर्ड को अधियाचन नहीं भेजा जाता है जिसे चयन बोर्ड खुद स्वीकार करता है। अवमानना कोर्ट में न्यायमूर्ति ने पूरा व्यौरा तलब किया तो जिला विद्यालय निरीक्षक जौनपुर ने एकल पीठ के आदेश को खंडपीठ में चुनौती दे दी और बताया कि प्रबंधतंत्र सही क्रम में अधियाचन नहीं भेजता है। खंडपीठ में जस्टिस भारती सप्रू मैम ने पुनः से अधियाचन मंगाकर स्थायी नियुक्ति का आदेश किया और कहा कि स्थायी नियुक्ति तक के लिए तदर्थ शिक्षकों को वेतन दे दिया जाये।
सरकार ने 30 दिसंबर 2000 से अब तक नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की रिक्ति का व्यौरा मांगा तो तदर्थ शिक्षक धरने पर बैठ गए। सरकार जिला विद्यालय निरीक्षक जौनपुर को साथ लेकर सर्वोच्च न्यायालय चली गयी सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा न्यायमूर्ति डॉ (श्री) चन्द्रचूड को मिला तो जिला विद्यालय निरीक्षक जौनपुर ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि रिट कोर्ट का आदेश रद्द कर दीजिए क्योंकि उसपर अवमानना का मुकदमा चल रहा है। न्यायमूर्ति डॉ चन्द्रचूड ने अवमानना कोर्ट की सुनवाई पर रोक लगा दी। अगली तारीख को डॉ चन्द्रचूड ने मुकदमा छोड़ दिया। जस्टिस भानुमति मैम ने याचिका को संजय सिंह की याचिका से जोड़ दिया। इस तरह जो याचिका उच्च न्यायालय में संजय सिंह केस के अंतिम निस्तारण तक के लिए अस्तित्व में आयी थी वह संजय सिंह केस से ही जुड़ गयी।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति श्री संजय किशन कौल की पीठ में अंतिम सुनवाई प्रारम्भ हो चुकी है। दिनांक 19 सितम्बर 2019 को संजय सिंह आदि के वकीलों ने माननीय कोर्ट को बताया कि वर्ष 1992 से 2000 के मध्य तदर्थ रूप से नियुक्त सभी शिक्षकों का विनियमितीकरण नहीं हुआ है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से 1992 से अब तक का संपूर्ण व्यौरा तलब किया है।
वास्तव में संजय सिंह आदि के वकीलों की रणनीति है कि 13 जुलाई 1992 को ही प्रबंधतंत्र का तदर्थ शिक्षक नियुक्त करने का अधिकार ख़त्म हो गया था तब भी प्रबंधतंत्र ने तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति 30 दिसंबर 2000 तक किया तो उसी तरह तदर्थ शिक्षक का कैडर दिनांक 30 दिसंबर 2000 से ख़त्म होने के बाद भी अद्यतन तक जो तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति प्रबंधकों ने की है वह भी सुरक्षित रहे। 30 दिसंबर 2000 से अब तक नियुक्त तदर्थ शिक्षकों ने एक रणनीति के तहत लखनऊ उच्च न्यायालय में विनियमितीकरण की याचिका को दाखिल किया जिससे कि याचिका को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल करके नौकरी बचाने के साथ विनियमितीकरण भी करा लिया जाए। लखनऊ उच्च न्यायालय ने याचिका यह कहकर ख़ारिज कर दी कि अभी मामला सर्वोच्च न्यायालय में इस बात के लिए विचाराधीन है कि प्रबंधतंत्र को तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार है कि नहीं है। इस तरह यह मामला भी सर्वोच्च न्यायालय में संजय सिंह आदि ने चैलेन्ज करके मुख्य मुकदमे से जुड़वा लिया।
पिछली सुनवाई पर जब समायोजन की मांग की तो हम लोगों के द्वारा अवशेष पैनल की जुड़ी आई ए के वकील राकेश मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि आरक्षित की रिक्ति पर अनारक्षित का समायोजन कैसे हो? तब सुप्रीम कोर्ट ने प्रमुख सचिव (माध्यमिक शिक्षा) तथा सचिव चयन बोर्ड को उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है।सुप्रीम कोर्ट में चल रहे महत्वपूर्ण संजय सिंह केस में कोर्ट के आदेश के अनुपालन में राज्य सरकार द्वारा 1992 से लेकर 2019 तक की जी टी तथा पी जी टी के कुल रिक्त पदों के प्रति पीजीटी तथा टीजीटी के कुल अधियाचित पदों की संख्या तथा इस अवधि में नियमित नियुक्ति का डाटा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया । जिसके अनुसार वर्ष 1992 से लेकर 2019 तक टीजीटी पीजीटी के कुल 119851+ 40700 = 160551 पद रिक्त हुये। कुल 160551रिक्त पदों के प्रति टीजीटी तथा पीजीटी के 72162+19160=91322पदों का ही अधियाचन चयन बोर्ड को अद्यतन प्राप्त हुआ है।इस प्रकार 1992-2019तक अप्राप्त अधियाचनों की संख्या है-कुल रिक्ति160551-कुल प्राप्त अधियाचनों की संख्या 91322=कुल अप्राप्त अधियाचनों की संख्या=69229। यदि हम सभी चयन बोर्ड प्रतियोगी इन सभी 69229रिक्त पदों का अधियाचन चयन बोर्ड भेजकर तत्काल इनका विज्ञापन कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट में रिट करके करा लेते हैं तो हम सभी अच्छे प्रतियोगियों का कल्याण हो जायेगा।** प्रमाणस्वरुप सुप्रीम कोर्ट में संजय सिंह केस में जुड़े हुए अन्य केस में पार्टी बने तदर्थ/अल्पकालिक शिक्षकों की जानकारी प्राप्त करने के बाद अब शासन का पत्र आया है कि dios ने अधियाचन ही चयन बोर्ड नहीं भेजा।**इनकी संख्या 499है।
बहुत से लोगों का अधियाचन चयन बोर्ड गया तो चयन बोर्ड में अधियाचन छिपवा लिया जिससे रिक्ति विज्ञापित नहीं हुई।1992-2019तक केवल 50000नियुक्तियां ही हो पायी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में बेरोजगारों को अपना पक्ष रखना होगा।
अन्यथा लगभग 35000तदर्थ शिक्षकों को समायोजित कर दिया जाएगा। यह भी संभावना है कि बेरोजगारों को भी जो सर्वोच्च न्यायालय में रहेगा उसे भी तदर्थ शिक्षक के साथ कोर्ट राहत देने का कार्य करे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में इन प्रतियोगियों को प्राप्त होने वाले लगभग 35000 पदों पर कार्यरत तदर्थ/अल्पकालिक
शिक्षकों की ही अलग से चयन बोर्ड द्वारा औपचारिक रूप से परीक्षा कराकर स्थायीकरण करने की बात कही है।यह बहुत ख़तरनाक है। अवशेष पैनल के चयनित प्रतियोगियों
के विज्ञापित पदों पर तदर्थ/ अल्पकालिक शिक्षकों के कार्यरत होने के कारण ही विद्यालय आवंटन नहीं हो रहा है।यद्यपि हम अवशेष पैनल के प्रतियोगियों ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा विनियमितिकरण न करने का आदेश संजय सिंह केस में लिखवा लिया है किन्तु लगभग 35000तदर्थ/अल्पकालिक शिक्षकों को बचाने के लिए कोर्ट सरकार तथा चयन बोर्ड को केवल तदर्थ शिक्षकों के लिए एक अलग से औपचारिक परीक्षा कराने के लिए कहा है। न्यायालय के आदेश में 35000पदो के लिए जो परीक्षा कराने के लिए कहा गया है ,उस परीक्षा में जो नये फ्रेश कैण्डीडेट के आवेदन पर रोक की बात है,वह खतरनाक है। इससे लगभग 35000 तदर्थ/अल्पकालिक शिक्षकों के रिक्त पदों पर प्रतियोगिता करने का अवसर ही प्रतियोगी छात्रों को नहीं मिलेगा।इस प्रकार अनेक चयन बोर्ड प्रतियोगी जो 2000से लेकर 2016तक हुए अनेक विज्ञापनों में लिखित परीक्षा में भाग लिया। कुछ विज्ञापनों में साक्षात्कार भी दिया किंतु अन्तिम चयन से वंचित रहे तथा आज भी चयन हेतु प्रयासरत हैं,वह लोग इन 35000पदों पर होने वाली चयन प्रक्रिया से वंचित हो जाएंगे। इसलिए अचयनित प्रतियोगियों को सुप्रीम कोर्ट में इसे रिट करके चैलेंज करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश का अंश देखिये=


  • “Possible solution may be that all the appellants and similarly situated persons
    go through a process carried out by the Board not competing with fresh condidates
    and such those person who make a benchmark, can be permanently absorbed .” आप सभी अवशेष पैनल के चयनित लोग विद्यालय आवंटन के लिए सुप्रीम कोर्ट में तत्काल रिट करें, क्योंकि हाईकोर्ट ने तो 606 लोगों का ही विद्यालय आवंटन का आदेश करके अन्य लोगों को फंसा दिया है। अचयनित प्रतियोगियों को समस्त 69229पदों का आनलाइन अधियाचन चयन बोर्ड मंगाकर सबका विज्ञापन कराने तथा टीजीटी एवं पीजीटी के लगभग 35000 पदों पर भर्ती हेतु विज्ञापन में तदर्थ/अल्पकालिक शिक्षकों के साथ आवेदन करके प्रतियोगिता करने का अवसर देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके अपना पक्ष रखना होगा।
    आप सबका शुभेच्छु…

अनिल सिंह अध्यक्ष युवा मंच

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