उत्तर प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में वर्तमान व्यवस्था यह है कि रिक्त प्रवक्ता/एलटी के पदों पर उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा चयनित अभ्यर्थियों की ही नियुक्ति की जायेगी। अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रबन्ध तंत्रों को सीधे अपने स्तर से नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग और चयन बोर्ड अधिनियम 1982 (अधिनियम संख्या 5 सन 1982) जो कि 14 जुलाई 1982 से प्रभावी है। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का गठन हुआ। अब शिक्षकों का चयन इस चयन बोर्ड के द्वारा किया जाता। अधिनियम की मूल धारा 18 में तदर्थ नियुक्ति का प्राविधान किया गया था। प्रबंधतंत्र द्वारा आयोग को किसी रिक्ति की सूचना देने के दिनांक से एक वर्ष के भीतर यदि आयोग अभ्यर्थी की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करता है, या ऐसा पद जो दो माह से अधिक अवधि के लिए वास्तव में रिक्त रहता है वहाँ प्रबंधतंत्र को अध्यापकों और प्रधानाचार्यों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया। यह व्यवस्था 13 जुलाई 1992 तक प्रभावी रही। अध्यादेश संख्या 21 सन 1992 द्वारा प्रथम बार संशोधन हुआ और 14 जुलाई 1992 से सीधी भर्ती की सिफारिश का अधिकार जिला विद्यालय निरीक्षक की अध्यक्षता में गठित चयन समिति को दिया गया। समिति में जिला विद्यालय निरीक्षक, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, जिला बालिका विद्यालय निरीक्षक अथवा राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की ज्येष्ठतम प्रधानाचार्या को स्थान मिला था। यह व्यवस्था 6 अगस्त 1993 तक प्रभावी रही।उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम (एक्ट संख्या-1 सन 1993) यह संशोधन 7 अप्रैल 1993 को हुआ लेकिन इसका प्रभाव 7 अगस्त 1993 से स्थापित किया गया। इसके जरिये मूल अधिनियम की धारा 18 निकाल दी गयी, धारा 16 से भी धारा 18 विलुप्त की गयी। यह व्यवस्था 17 दिसम्बर 1994 तक प्रभावी रही। 14 जुलाई 1992 से लेकर 6 अगस्त 1993 तक चली व्यवस्था जिसमें जिला विद्यालय निरीक्षक की समिति को तदर्थ रूप से सीधी भर्ती की सिफारिश का अधिकार था परन्तु 7 अगस्त 1993 से 17 दिसंबर 1994 तक निरीक्षक विद्यालय निरीक्षक की समिति का अधिकार समाप्त था। 1995 में उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 15 के जरिये दिनांक 18 दिसम्बर 1994 से मूल धारा 18 और धारा 16 में भी धारा 18 पुनः स्थापित कर दी गयी तथा सीधी भर्ती से तदर्थ नियुक्तियों का चयन मंडलीय स्तर पर गठित चयन समिति द्वारा किये जाने की व्यवस्था की गयी। जिसमें संभागीय उप शिक्षा निदेशक, संभागीय उप शिक्षा निदेशक माध्यमिक संभागीय सहायक शिक्षक निदेशक बेसिक सदस्य बनाये गए और सम्भागीय संयुक्त शिक्षा निदेशक अध्यक्ष रहता। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम (अधिनियम संख्या 5 सन 2001) के जरिये 30 दिसम्बर 2000 से धारा 18 केवल प्रधानाचार्य हेतु किया गया। प्रधानाचार्य के रिक्त पद पर तदर्थ रूप से ज्येष्ठम अध्यापक की तदर्थ प्रधानाचार्य के रूप में नियुक्ति का प्राविधान किया गया। प्रवक्ता और एलटी के लिए धारा 18 का प्राविधान पूर्णतया नष्ट कर दिया गया। जबकि सत्य यह है कि धारा 18 में भी 13 जुलाई 1992 से ही प्रबंधतंत्र को प्रवक्ता और एलटी शिक्षक रखने का अधिकार नहीं है। वर्ष 2001 से उत्तर प्रदेश मध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड नियमित रूप से विज्ञापन जारी करके प्रवक्ता और एलटी शिक्षकों का चयन करके विद्यालयों में भेजने लगा। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम 1982 की धारा 10 के तहत रिक्त पदों का अधियाचन प्रबंधतंत्र और जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भेजने का प्राविधान है। उसी अधियाचन पर चयन बोर्ड विज्ञापन प्रकाशित करता है। प्रबंधतंत्र ने 30 दिसम्बर 2000 से मध्य सत्र में रिक्त हुए अल्पकालिक पद पर उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921 की धारा 16 ङ 11 का हवाला देकर अल्पकालिक शिक्षक नियुक्त करके शिक्षक के जरिये माननीय उच्च न्यायालय को बताया कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड अधिनियम 1982 में मध्य सत्र में रिक्त पद पर शिक्षक की व्यवस्था का कोई प्राविधान नहीं है इसलिए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921 की धारा 16 ङ 11 के तहत अल्पकालिक शिक्षक रखना पड़ा। उच्च न्यायालय ने वेतन का आदेश कर दिया। अधिनियम की धारा 16 ङ 11 का प्रभाव सत्र समाप्त होते ही ख़त्म हो जाता है इसलिए नए सत्र से रिक्ति मौलिक रूप से रिक्त होने के कारण उसका अधियाचन चयन बोर्ड को भेजा जाना चाहिए था लेकिन माननीय न्यायालय का हवाला देकर अनवरत वेतन जारी किया जाता रहा और उस रिक्ति का अधियाचन भी नहीं गया। जबकि नियमानुसार उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921 का प्रभाव 1982 में ही ख़त्म हो गया था लेकिन प्रबंधतंत्र ने नयी काट निकाल ली थी। वर्तमान में सरकार ने अल्पकालिक रिक्ति पर मानदेय पर सेवानिवृत शिक्षक रखने का प्राविधान बनाया गया है। अति महत्त्वाकांक्षा में प्रबंधतंत्र ने मौलिक रूप से रिक्त पद पर अधियाचन भेजकर भी तदर्थ नियुक्ति करना प्रारम्भ कर दिया। तदर्थ शिक्षक कभी जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय से तो कभी चयन बोर्ड से अपने अधियाचन को छिपवाने लगे और माननीय उच्च न्यायालय को बताया कि चयन बोर्ड शिक्षक नहीं भेज रहा है इसलिए प्रबंधतंत्र ने तदर्थ नियुक्ति की है। माननीय उच्च न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम 1982 की धारा 16 की उप धारा एक और दो में वर्णित है कि बगैर चयन बोर्ड की संस्तुति के प्रबंधतंत्र को शिक्षक नियुक्त करने का अधिकार नहीं है और यदि प्रबंधतंत्र ने तदर्थ नियुक्ति की है तो वह नियुक्ति अवैध होगी परंतु बच्चों की शिक्षा बाधित होगी इसलिए चयन बोर्ड से शिक्षक आने तक के लिए संजय सिंह समेत तमाम याचिकाओं पर वेतन का आदेश किया जाता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चयन बोर्ड से शिक्षक आने पर तदर्थ शिक्षक की सेवा तत्काल समाप्त हो जायेगी और उसे न्यायालय का संरक्षण कदापि प्राप्त नहीं होगा। यह आदेश उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने किया था। पीजीटी विज्ञापन 2013 में संजय सिंह का पद विज्ञापित होने के बावजूद भी चयन बोर्ड ने उस पद पर शिक्षक नहीं भेजा। जबकि चयन बोर्ड से शिक्षक भेजने पर किसी भी न्यायालय की रोक नहीं है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में प्रदीप कुमार ने लखनऊ पीठ के आदेश का हवाला देकर मौलिक रूप से रिक्त पद पर चयन बोर्ड से शिक्षक आने तक के लिए वेतन का आदेश मांगा तो न्यायमूर्ति अरुण टंडन ने कहा कि जब प्रबंधतंत्र को नियुक्ति का अधिकार ही नहीं है तो उसने नियुक्ति क्यों की? वेतन कदापि नहीं दिया जायेगा और याचिका खारिज कर दी। प्रतापगढ़ में लोकमान्य तिलक इंटर कॉलेज में प्रवक्ता हिंदी का पद मौलिक रूप से रिक्त हुआ परन्तु चयन बोर्ड के अभिलेखनुसार उस पद का अधियाचन चयन बोर्ड को आज तक प्राप्त नहीं है। उस पद पर प्रबंधतंत्र ने अभिषेक त्रिपाठी की तदर्थ नियुक्ति कर दी। वेतन मांगने अभिषेक त्रिपाठी लखनऊ उच्च न्यायालय गए तो न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने कहा कि लखनऊ की एकल पीठ ने वेतन का आदेश किया है और इलाहाबाद की एकल पीठ ने वेतन देने से इंकार किया है अतः इस मामले का निस्तारण दो न्यायमूर्तियों की पीठ करे। दो न्यायमूर्तियों मुख्यन्यायमूर्ति डॉ डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति श्री नारायण शुक्ला ने संजय सिंह की याचिका के फैसले को निरस्त कर दिया और प्रदीप कुमार की याचिका पर न्यायमूर्ति अरुण टंडन के फैसले को बहाल कर दिया। संजय सिंह ने दो न्यायमूर्ति के फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी है और 23 फरवरी 2018 को जिला विद्यालय निरीक्षक सुल्तानपुर ने सर्वोच्च न्यायालय में जवाब दाखिल करके बताया है कि प्रबंधतंत्र को शिक्षक नियुक्ति का अधिकार नहीं है। चयन बोर्ड अनवरत भर्ती कर रहा है और टीजीटी पीजीटी 2016 विज्ञापन प्रगति पर है। संजय सिंह को याचिका निस्तारित होने तक के लिए अथवा चयन बोर्ड से शिक्षक आने तक के लिए उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगन मिला हुआ है। जिला विद्यालय निरीक्षक सुल्तानपुर ने शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) को पत्र लिखकर सर्वोच्च न्यायालय में महाधिवक्ता से पैरवी करवाने का आग्रह किया है। प्रबंध तंत्र ने भी खंडपीठ के फैसले के विरुद्ध याचिका दाखिल की है कि उनको तदर्थ शिक्षक नियुक्त करने से न रोका जाए जबकि नियमतः तदर्थ शिक्षक नियुक्त करने का इनका अधिकार 14 जुलाई 1992 से ही ख़त्म हो चुका है और प्रबंधतंत्र सर्वोच्च न्यायालय तक मुकदमा हार चुका है। प्रबंध तंत्र ने यह याचिका मुकदमे के विचाराधीन रहने तक आगे भी नियुक्ति करने और मुकदमा लड़ रहे तदर्थ शिक्षकों का मनोबल बनाये रखने और कुछ अन्य कारणों की वजह से दाखिल किया है। सबसे महत्वपूर्ण विषय यह है कि एक अन्य मामले में विवाद उच्च न्यायालय से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंचा है जिसमें उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921 की धारा 16 ङ 11 की व्याख्या होनी है कि क्या मौलिक रूप से रिक्त पद पर इस धारा के अंतर्गत प्रबंधक 11 महीने तक के लिए नियुक्ति कर सकता है? इस प्रकार 30 दिसम्बर 2000 से अद्यतन तक अपनी मर्जी से प्रबंधतंत्र द्वारा नियुक्त शिक्षकों का भविष्य सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर टिका हुआ है।
तदर्थ शिक्षकों का विनियमितीकरण
C.A.8300 Of 2016 संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में याचिकाकर्ताओं की सूची.